अक्षय नवमी

अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल नवमी को कहते हैं। अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारंभ माना जाता है। अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्मांड की बेल हुई। इसी कारण कुष्मांड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गंध, पुष्प और अक्षतों से कुष्मांड का पूजन करना चाहिए। विधि-विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।

धार्मिक मान्यताएं- कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन जितेंद्रिय होकर तुलसी सहित सोने के भगवान बनाएं। पीछे भक्ति पूर्वक विधि के साथ तीन दिन तक पूजन करना चाहिए एवं विधि के साथ विवाह की विधि करे। नवमी के अनुरोध से ही यहां तीन रात्रि ग्रहण करनी चाहिए इसमें अष्टमी विद्धा मध्याह्न व्यापिनी नवमी लेनी चाहिए। धात्री और अश्वत्थ को एक जगह पालकर उनका आपस में विवाह कराए। उनका पुण्य फल सौ कोटि कल्प में भी नष्ट नहीं होता। श्रीकृष्ण की मुरली की त्रिलोक मोहिनी तान और राधा के नूपुरों की रुनझुन का संगीत सुनाती और प्रभु और उनकी आह्लादिनी शक्ति के स्वरूप मथुरा-वृंदावन और गरुड़ गोविंद की परिक्रमा मन को शक्ति और शांति देती है। धर्म और श्रम के सम्मिश्रण से पर्यावरण संरक्षण संदेश के साथ यह पर्व भक्तों के मंगल के लिए अनेक मार्ग खोलता है।

मथुरा-वृंदावन परिक्रमा- अक्षय नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रांति का शंखनाद किया था। इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं। मथुरा-वृंदावन एवं कार्तिक मास साक्षात राधा-दामोदर स्वरूप है। इसी मास में श्रीकृष्ण ने पूतना वध के बाद मैदान में क्रीड़ा करने के लिए नंद बाबा से गोचारण की आज्ञा ली। गुजरात में द्वारिकानाथ, राजस्थान में श्रीनाथ, मध्य प्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, पांडवों के कारण पंजाब, दिल्ली के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु ब्रज की परिक्रमा करते हैं। नियमों से साक्षात्कार कराने के लिए प्रभु ने अक्षय नवमी परिक्रमा कर असत्य का शंखनाद और एकादशी परिक्रमा करके अभय करने के लिए प्रभु ने ब्रजवासियों का वृहद समागम किया।

युद्ध आह्वान दिवस- श्रीकृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी तिथि को तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया। मंगल की प्रतिनिधि तिथि नवमी को किया। क्रांति का शंखनाद ही अगले दिन दशमी को कंस के वध का आधार बना।

आंवला पूजन– कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला कहते हैं। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। इस बार ये पर्व 23 नवंबर को है। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व है। मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने से रोगों का नाश होता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और उसकी मंगलकामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं।