दिल्ली में ‘मिनी लॉकडाउन’!

नीति आयोग का आकलन है कि दिल्ली में आने वाले दिनों में कोरोना के संक्रमित मामले, 10 लाख की आबादी पर, रोजाना 500 तक बढ़ सकते हैं। यानी हररोज 10,000 संक्रमित मरीज…! अभी इतनी ही आबादी पर रोजाना का औसत 361 है। स्पष्ट है कि कोरोना वायरस 40 फीसदी मरीजों की संख्या बढ़ा सकता है। देश की राजधानी में यह अप्रत्याशित स्थिति होगी। इसका बुनियादी कारण त्योहारी मौसम में नागरिकों की निरंकुशता  और लापरवाही आंका गया है। चिकित्सकों की टिप्पणियां हैं कि आम आदमी ने खुद को ‘सुपरमैन’ मान लिया है और वह मुग़ालते में है कि उसे कोरोना नहीं हो सकता! केंद्र और दिल्ली सरकार ने भावी स्थितियों को ‘भयावह’ करार दिया है और युद्धस्तर पर वेंटिलेटर, आईसीयू वाले बेड्स का बंदोबस्त किया जा रहा है।

कुछ अन्य राज्यों से और अर्द्धसैन्य बलों से डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ  को उधार लिया जा रहा है। अजीब विरोधाभास है! जब राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना संक्रमण का आंकड़ा 30,000 से कम तक लुढ़क आया है, महाराष्ट्र और मुंबई सरीखे घोर कोरोनाग्रस्त इलाकों में स्थितियां नियंत्रण में हैं, मौतों की संख्या भी कम हो रही है, संक्रमण की औसत दर 5-6 फीसदी ही है, उसी दौर में देश की राजधानी में सब कुछ बेकाबू है। दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर रेंडम टेस्ट करने वाली टीमें बिठाई गई हैं, ताकि संक्रमण के सुराग मिल सकें। मंगलवार को दिल्ली में ही 6396 नए संक्रमित मामले सामने आए और 99 मौतें भी दर्ज की गईं। हर घंटे औसतन 4 मौंतें…! कुल मौतें 7812 हो चुकी हैं। सक्रिय मरीज भी 42,000 से ज्यादा हैं, जो विभिन्न जगहों पर उपचाराधीन हैं। कोरोना संक्रमण को लेकर बीते दो सप्ताह से दिल्ली देश में पहले पायदान पर है। ऐसी स्थितियों में भी सरकारों के विरोधाभास सामने आ रहे हैं। लानत है…! दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का दावा है कि संक्रमण की तीसरी लहर का ‘पीक’ अब कम होने लगा है, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन और एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ऐसा नहीं मानते, बल्कि आगामी दो सप्ताह ‘खतरनाक’ मान रहे हैं।

 विरोधाभास मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के बीच भी हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर आश्वासन दिया था कि दिल्ली में अब किसी भी तरह के लॉकडाउन की जरूरत नहीं है, जबकि मुख्यमंत्री ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर ‘मिनी लॉकडाउन’ की अनुमति मांगी है। जिन इलाकों में भीड़-भाड़ ज्यादा होगी, नागरिक मास्क और दो गज की दूरी का पालन नहीं करेंगे और इलाके या बाजार के कोरोना का नया हॉटस्पॉट बनने की आशंका होगी, उसे अस्थायी तौर पर बंद किया जाएगा। अभी त्योहारों के मौसम में राजधानी के प्रमुख बाजारों में तमाम कायदे-कानून और एहतियात तोड़े गए। कई दुकानदारों के मामले सामने आए, जो कोरोना संक्रमित थे, लेकिन वे बाजार में अपनी दुकान पर नियमित रूप से मौजूद थे। ऐसे लोगों ने संक्रमण को कितना विस्तार दिया होगा, अभी इसके अधिकृत आंकड़े आने शेष हैं। यह देश और दिल्ली भी लॉकडाउन के संत्रास और नुकसान झेल चुके हैं। अर्थव्यवस्था चरमरा कर नकारात्मक हो गई थी। अभी तो त्योहारी खरीददारी के कारण आर्थिक स्थिति कुछ उबरने लगी है। यदि एक बार फिर, बेशक आंशिक तौर पर ही सही, बाजार बंद किए गए, तो बाजी पलट सकती है। अर्थव्यवस्था फिर ढहने के कगार पर आ सकती है।

 दिल्ली ऐसी जगह है, जहां अनलॉक घोषित होने पर शराब के ठेके सबसे पहले खोले गए। भिनभिनाती भीड़ को देखकर अनुमान लगाया जा सकता था कि हम कोरोना वायरस से कितने सुरक्षित हैं! अब राजधानी में सार्वजनिक परिवहन भी खुल चुका है और बसों में ठुकी हुई भीड़ देखी जा सकती है। मेट्रो भी चल रही है, हालांकि उसमें भीड़ को लेकर अनुशासन देखा जा सकता है। यह शादियों का भी मौसम है, लेकिन दिल्ली सरकार ने 200 बारातियों की जो अनुमति दे रखी थी, उसे भी वापस ले लिया है और संख्या घटाकर 50 कर दी है। शादी के घरवाले और व्यापारी दोनों ही केजरीवाल सरकार को कोस रहे हैं, क्योंकि होटल, हलवाई, निमंत्रण-पत्र आदि की व्यवस्था की जा चुकी है। अब उसे वापस कैसे लें? करीब 200 व्यापारिक संघों ने ‘महापंचायत’ बुलाकर कुछ निर्णय किए हैं। वे मुख्यमंत्री से मुलाकात कर ‘लॉकडाउन’ न करने का आग्रह करेंगे। फिलहाल दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति भी ‘खतरनाक’ है। यदि प्रदूषण एक इकाई बढ़ता है, तो कोरोना से मौतें औसतन आठ फीसदी होती हैं। बहरहाल केंद्र सरकार क्या फैसला लेती है, उसी पर दिल्ली की नियति तय होगी।