‘लव जेहाद’ कानून के मायने

‘लव जेहाद’ की कोई परिभाषा नहीं है। भारत सरकार के गृह राज्यमंत्री जी.किशन रेड्डी ने संसद में यह जवाब दिया था। ‘लव जेहाद’ का एक भी केस या उदाहरण राष्ट्रीय जांच एजेंसी तक को नहीं मिला है। सर्वोच्च न्यायालय बालिग कन्या के बयान को ही ‘अंतिम सत्य’ मानता है। जीवन-साथी चुनने का विशेषाधिकार बेहद निजी है और वह भी संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अंतरंग हिस्सा है। यदि धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा और लिंग के आधार पर कानून भेदभाव करता है, तो वह भी अनुच्छेद 15 को प्रत्यक्ष तौर पर चुनौती दे रहा है। संविधान के रचनाकार डा. भीमराव अंबेडकर ने ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार’ को सर्वोच्च माना था। एक बालिग दूसरे बालिग के साथ विवाह करना चाहता है और दोनों की परस्पर सहमति भी है, तो अदालतें और सरकारें उनमें दखल देने वाली कौन हैं? सर्वोच्च अदालत ने हादिया केस में जो फैसला सुनाया है, उसका अंतर्निहित भाव भी यही है। क्या धर्म, जाति, सत्ता के ठेकेदार ही किसी के जीवन-साथी का चयन करेंगे? हमारी प्राचीन संस्कृति में ‘स्वयंवर’ की परंपरा भूल गए हैं क्या? हमारे देश में स्पेशल मैरिज एक्ट है, धर्मान्तरण और जबरन अपहरण से संबद्ध कानूनी प्रावधान हैं, तो फिर ‘लव जेहाद’ पर अलग से कानून बनाने का औचित्य क्या है?

जो कानून 1872 से हमारे देश की सामाजिक, वैयक्तिक परंपराओं को एक अनुशासन देता आया है, क्या अब उसे भी खारिज किया जाएगा? इतने कानूनों के चक्रव्यूह में कथित ‘लव जेहाद’ का कोई भी मामला फंसकर अनसुलझा ही रह सकता है। दरअसल ‘लव जेहाद’ है क्या? जब विजातीय प्रेम-विवाह करने पर युवा जोड़े की हत्या कर दी जाती है या लड़की-लड़के को जबरन अलग करने का फरमान पंचायतें सुनाती हैं, तो क्या वे कार्रवाइयां प्यार के संदर्भ में ‘जल्लादी’ व्यवहार नहीं है? क्या वे प्रेम पर हमले नहीं कर रहे हैं? दरअसल देश संविधान से चलता रहा है। हम किसी ‘केला गणतंत्र’ के नागरिक नहीं हैं। किसी धर्म, मत, समाज के पूर्वाग्रहों के आधार पर जीवन को तय नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश सरकार के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के मुताबिक, ‘लव जेहाद’ को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध घोषित करते हुए एक विधेयक विधानसभा में पारित किया जाएगा और फिर उसे कानून बनाया जाएगा। ऐसे आरोपी या अपराधी को पांच साल कठोर कारावास की सजा सुनाई जा सकेगी। हरियाणा और कर्नाटक की भाजपा सरकारें भी ‘लव जेहाद’ पर कानून बनाने की सोच रही हैं। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो ‘राम नाम सत्य’ का धमकीपूर्ण बयान दिया है। दरअसल बीते दिनों हरियाणा के बल्लभगढ़ में एक मुस्लिम युवक ने एक हिंदू लड़की की गोली मार कर हत्या कर दी थी, क्योंकि लड़की उससे शादी करने को तैयार नहीं थी। इस जघन्य और अमानवीय हरकत में न तो ‘लव’ है और न ही ‘जेहाद’ का भाव था। यह पूरी तरह हत्या की बर्बरता थी, लिहाजा उस संदर्भ में लड़के को कठोरतम कानूनी सजा दी जाए। यह मुद्दा उसी घटना के बाद उभरा और ‘लव जेहाद’ का शोर मचने लगा। यह सिर्फ  हिंदू-मुसलमान का भी मुद्दा नहीं है। मप्र के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा का सवाल है कि ‘आखिर कब तक सीता को रुबिया बनने देंगे?

पाकिस्तान और आईएसआई एजेंट सीता को रुबिया में बदलने की साजि़श रचते रहे हैं। मुझे नरगिस और सुनील दत्त की तरह सच्चा प्यार दिखाओ।’ बेशक सवाल वाजिब है, लेकिन कुतर्क के साथ है। इसे संघ-भाजपा बनाम मुस्लिम और पाकिस्तान का रंग मत दें। हमारी सरकारों ने कानून बनाने की बात कही है। भाजपा में जनसंघ के समय से एक प्रमुख मुद्दा रहा है-समान नागरिक संहिता। यानी एक देश, एक राशन कार्ड, एक टैक्स और एक ही नागरिक एवं आपराधिक संहिता। संभवतः मोदी सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने पर भी विचार कर रही हो! तो अलग-अलग कानून धर्म और संप्रदाय के आधार पर बनाने की सोच क्यों पक रही है? समान नागरिक संहिता है क्या? हाल के दौर में ऐसी कुछ घटनाएं सामने आई हैं कि संघ से जुड़े संगठनों के कार्यकर्ताओं ने हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के के विवाह को ‘लव जेहाद’ करार दिया और खासकर लड़के की मार-पिटाई की। हत्याएं भी हुई हैं। यही प्रवृत्ति ईसाइयों में भी देखी गई है। हम किसी भी घटना पर निष्कर्ष नहीं दे सकते, लेकिन जो स्थिति परिभाषित ही नहीं है और सर्वोच्च अदालत भी खारिज कर चुकी है, उस पर कानून कैसे बनाया जा सकता है? और फिर एक देश का समावेशी राष्ट्रवाद क्या होगा? यही सांप्रदायिक राजनीति है! इन पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि हर मुद्दे पर देश को हिंदू-मुसलमान में बांट कर नहीं देखा जा सकता।