पीएम का ‘मिशन संजीवनी’

प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘मिशन संजीवनी’ के निर्णायक चरण में हैं। कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में टीका ही ‘संजीवनी’ साबित हो सकता है। प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद, हैदराबाद और पुणे की तीन कंपनियों के संयंत्रों का दौरा किया। उनकी प्रयोगशालाओं का भी मुआयना किया और वैज्ञानिकों से संवाद कर थाह तक पहुंचने की कोशिश भी की कि भारत को कोरोना टीका कब उपलब्ध हो सकता है? टीके का उत्पादन करने वाली कंपनियों की प्रगति-रपट क्या है? अपने-अपने परीक्षण के विभिन्न चरणों के बाद प्रस्तावित टीके का प्रभाव और मानवीय सुरक्षा के आयाम क्या हैं? क्या ये टीके ही कोरोना महामारी की ‘अंतिम यात्रा’ तय कर सकेंगे अथवा संक्रमण के प्रभाव अभी बदस्तूर कायम रहेंगे? प्रधानमंत्री का सीधा प्रयोगशालाओं तक जाने का स्पष्ट अर्थ है कि वह स्वदेशी टीकों पर ही भरोसा करके चल रहे हैं। विदेशी टीके हमारी जेब और तापमान के अनुकूल भी नहीं हैं। भारत की इन कंपनियों में ज़ायडस-कैडिला, आईसीएमआर-बायोटिक और सीरम इंस्टीट्यूट ने परीक्षण और प्रयोग के चरण लगभग पूरे कर लिए हैं या अंतिम प्रक्रिया में हैं। चूंकि सीरम ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के शोध और परीक्षण वाले टीके का उत्पादन कर रहा है।

सीरम दुनिया में करीब 150 देशों को विभिन्न टीके मुहैया कराता है, लिहाजा विश्व के सर्वश्रेष्ठ टीका-उत्पादकों में एक है। सीरम से अपेक्षाएं ज्यादा हैं, क्योंकि उसके सरोकार और प्राथमिकताएं भी ‘भारतीय’ हैं, लिहाजा संभावनाएं हैं कि सबसे पहले उसी का टीका-कोविशील्ड-बाज़ार में आ सकता है। सीरम के सीईओ अदार पूनावाला ने एक प्रेस संवाद में खुलासा किया है कि जुलाई, 2021 तक कोरोना टीके की 30-40 करोड़ खुराक बनाने का लक्ष्य है। हर महीने 5-6 करोड़ खुराक का उत्पादन जारी है। कंपनी आपात इस्तेमाल की मंजूरी के लिए आवेदन कर चुकी है। मंजूरी मिलते ही टीका उपलब्ध कराने की शुरुआत हो जाएगी। भारत बायोटैक का टीका ‘कोवैक्सीन’ मार्च, 2021 तक और ज़ायडस-कैडिला का ‘जायकोव-डी’ टीका जुलाई, 2021 तक बाज़ार में आ सकते हैं, लेकिन ‘संजीवनी’ सरीखे इन टीकों से कई चुनौतियां भी जुड़ी हैं। व्यापक स्तर पर बंदोबस्त किए जाने हैं। यदि जनवरी,’21 में ही कोरोना वायरस के खिलाफ  टीकाकरण का अभियान शुरू करना है, तो देश में 40 लाख डॉक्टरों और नर्सों की जरूरत पड़ेगी। करीब 300 करोड़ डिस्पोजेबल सीरिंज की आवश्यकता होगी। बेशक तापमान का चिंताजनक मुद्दा भारतीय टीकों के संदर्भ में नहीं है, क्योंकि प्रस्तावित टीके फ्रिज के तापमान में ही सुरक्षित रह सकेंगे। फिर भी भारत में 4 करोड़ टन क्षमता की 27,000 कोल्ड स्टोरेज चेन हैं, जो करीब 80 लाख लोगों तक पहुंच रखती हैं। बेशक भारत को टीकाकरण में 42 लंबे सालों का अनुभव है और हमने पोलियो, चेचक, खसरा, बीसीजी, हेपेटाइटिस आदि से जुड़े सफल टीकाकरण संपन्न किए हैं और अब भी सिलसिले जारी हैं। जाहिर है कि टीके का नेटवर्क हमारे पास उपलब्ध है।

टीका अस्पताल, डिस्पेंसरी, स्कूल, आंगनवाड़ी और पंचायत केंद्रों में लगाए जा सकते हैं। लेकिन इससे भी अहम सवाल यह है कि क्या कोरोना टीका लगने के बाद हम पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगे और अंततः महामारी का खात्मा हो सकेगा? ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं होगा, यह विशेषज्ञ चिकित्सकों के निष्कर्षों का सारांश है। अमरीका, ब्रिटेन, सिंगापुर, जर्मनी और चीन में सक्रिय भारतीय डॉक्टरों के निष्कर्ष हैं कि कोरोना टीके के बावजूद यह वायरस अभी 2-3 साल तक मौजूद रह सकता है। कभी कम और कभी ज्यादा प्रभाव सामने आ सकता है। टीकों के प्रयोग और परीक्षण अभी तक नियंत्रित माहौल में किए जाते रहे हैं। जब टीके खुले बाज़ार में आएंगे और चारों तरफ  का माहौल अपेक्षाकृत विषाणुरहित नहीं होगा, तब टीके के असर और उसकी सुरक्षा की ‘अग्निपरीक्षा’ होगी। अलबत्ता सीरम ने यह दावा जरूर किया है कि कोरोना टीका लगने के बाद इतनी एंटीबॉडी बनना तय है कि व्यक्ति संक्रमण नहीं फैलाएगा और उसे अस्पताल तक जाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। स्पष्ट है कि संक्रमण दर और फिर मृत्यु दर कम होंगी, लिहाजा कोरोना वायरस का संक्रमण भी सिमटने लगेगा। बहरहाल कोरोना टीके का काउंटडाउन शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी तमाम तैयारियों के साक्ष्य बनकर लौटे हैं, लिहाजा स्वास्थ्य, रेल, डाक, संचार और कृषि विभाग भी रणनीतिक तैयारियों में जुट गए हैं। बेशक टीका हमें उपलब्ध होगा, लेकिन देश की 138 करोड़ से अधिक आबादी का संपूर्ण टीकाकरण करना भी युद्ध जीतने से कम नहीं होगा।