शहनाज खुद अपनी जन्नत बनाना चाहती थीं

जीवन एक वसंत/शहनाज हुसैन

किस्त-53

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है 53वीं किस्त…

-गतांक से आगे…

मेरी मां को अपनी आजादी का पहला सफर आज भी याद है, जब वह लखनऊ जाने के लिए रेल में सवार हुई थीं। रात को ठंडी हवा उनके चेहरे को सहला रही थी, और जैसे-जैसे ट्रेन शहर से दूर हो रही थी, उन्हें स्कूल का अहसास हो रहा था, वह शहर जहां वह घटनाओं के भंवर में धंसती जा रही थीं। लखनऊ पहुंचने का मतलब जिंदगी के एक अन्य मंथन को पार कर लेना था, जहां उन्हें अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने की आजादी थी। लखनऊ की पुरानी गलियों को पार करते हुए, शहनाज और नासिर अपने नए पते सी-9, दिलखुश पहुंच गए थे। खिड़की से बाहर देखते हुए मुस्कुरा रही थीं, यह वही खुशी थी, जिसकी जरूरत एक इनसान को अपना नया घर शुरू करने के लिए होती है। चूंकि उस घर में काफी टाइम से कोई नहीं रह रहा था, तो स्वभाविक रूप से वहां घास बढ़ गई थी और पेंट भी पपड़ी हो गया था, लेकिन वह फिर भी शहनाज के लिए जन्नत था। मैं नहीं चाहती थीं कि उन्हें बनी-बनाई जन्नत मिल जाए, बल्कि वह तो खुद अपनी जन्नत बनाना चाहती थीं।  छोटा, दो मंजिला घर का पीला रंग सदियों से चले आ रहे सरकारी घरों के जैसा ही था।

 घर के सामने का बगीचा बेहद खास था, जो अगले कई सालों तक मेरे जन्मदिन की पार्टियों का वेन्यू रहा, इस घर के मेरी मां की जिंदगी में बेहद खास मायने रहे। घर में खाली कमरे को देखकर वह बेहद रोमांचित थीं, क्योंकि इसका मतलब था कि उन्हें जिंदगी में पहली बार अपने तरीके से घर सजाने का मौका देने वाला था। उन्नीस वर्षीय हुसैन बेगम अपने तरह से घर सजाने को पूरी तरह तैयार थीं। उनकी उमंग और रचनात्मकता अब पूरी तरह स्वच्छंद थी और उन्होंने तुरंत ही ‘मॉडर्न होम्स’ से अपने पहले फर्नीचर का ऑर्डर दे दिया। हर पीज खास तौर पर तैयार किया गया था- वायलिन सैटी, सेल्वाडोर डाली के पेंटिंग की याद दिलाता डायनिंग टेबल और हिरन के सींग के आकार के पैर वाला सोफा सेट। वह छोटी से छोटी चीज भी अपनी पसंद की लगाना चाहती थीं, जो आगे चलकर उनका पर्सनल स्टाइल बनाने वाला था। साठ का दशक पूरे विश्व के लिए शानदार दशक रहा। यह वह समय था जब लोगों के दिलों पर, एल्विस और कैनेडी की जगह मार्टिन लूथर किंग राज करने वाला था। एक समय जब विद्रोह वैध करार कर दिया गया था और युद्धों की निरर्थकता और विवादों को परे करते हुए सांस्कृतिक उथल-पुथल का दौर पूरे विश्व में व्यापक हो गया था, यहां तक कि इससे लखनऊ जैसा शांत शहर भी नहीं बच पाया था।

 (ब्यूटीशियन शहनाज हुसैन की अगली कडि़यों में हम आपको नए पहलुओं से अवगत कराएंगे। आप हमारी मैगजीन के साथ निरंतर जुड़े रहें तथा इस सीरीज का आनंद उठाएं।)