श्री गोरख महापुराण

 गतांक से आगे….

सगुण-निर्गुण श्रृंगी कभी छूटने वाली नहीं। अगम-निगम का इकतारा पुखता है। मैं तन मन से लक्ष्य प्राप्त कर सुख से सोऊंगा और मोक्ष कहो या मुक्ति इसका यश चारों दिशाओं में फैलाऊंगा।’ काफी देर वार्तालाप करने के बाद सोल्ह कन्याएं और बारह रानियां मोह में आकर गोपीचंद को पकड़ कर रोने लगीं।

तब गोपीचंद ने उन्हें मारने के लिए फावड़ी उठाई। मैनावती ने भोजन का थाल लाकर अपने बेटे को भिक्षा दी और बोली, बेटा आज मैं धन्य हुई। आज भिक्षा देने के बाद तुझे तीन शिक्षाएं भी देती हूं। उन्हें न भूलना। एक-एक शिक्षा की कीमत एक-एक लाख से ज्यादा है। गोपीचंद बोले, जननी तब शिक्षा जरूर दो। शिक्षा के लिए ही तो मैंने हीरे, माल भरे खजाने को त्याग दिया है।

शिक्षा की भिक्षा माता जी अवश्य दो। मैनावती बोली, पहली शिक्षा बेटा! हरदम किले के अंदर रहना जिससे शत्रु हमला न कर सके। गोपीचंद ने कहा, माता जी! अब किला कहां? धरती पर अपना सोना और आकाश ओढ़ना होगा। मैनावती बोली, बेटा! यह रहस्यवाद है। मेरी प्रथम शिक्षा का उद्देश्य है कि ब्रह्मचर्य से बढ़कर कोई किला पक्का नहीं है। शोक, रोग, भय, व्याध किसी का हमला ब्रह्मचर्य के किले पर नहीं हो सकता। जो ब्रह्मचारी नहीं है, वह न भक्त बन सकता है और न योगी। बेटा! योगी तो ज्ञानी बन जाता है और भक्त भी। पर ब्रह्मचारी को योगी, भक्त और ज्ञानी तीनों प्रणाम करते हैं।

गोपीचंद बोले, धन्य हैं आप माता जी! आपकी  अनमोल शिक्षा को मैं कभी नहीं भूल सकता। अब आप दूसरी शिक्षा देने की दया करें। मैनावती बोली, बेटा! तुम सदा मोहन भोग का भोजन करना। गोपीचंद बोले माता जी! वहां मोहन भोग कहां रखे हैं। मुझे तो यह भी रहस्यवाद लग रहा है। मैनावती ने कहा, हां बेटा!  इसका अर्थ है चौबीस घंटे में एक बार भोजन करना। जब भूख किल किला कर लगती है तो चने चबाना भी मोहन भोग से कम नहीं है और बार-बार भोजन करने से मोहन भोग भी चने से बदतर बन जाता है।

गोपीचंद बोले माता जी! आपके अनुभव का जवाब नहीं। अब जल्दी से तीसरी शिक्षा भी सुना डालो। मैनावती बोली, बेटा! तीसरी शिक्षा यह है कि जब नींद आने लगे तो मसहरी पर सोना। गोपीचंद ने कहा, माता जी! यह भी रहस्य से भरी शिक्षा है। जो मेरी समझ से कोसों दूर है। तब मैनावती बोली,बेटा! लोग नींद को निमंत्रण देकर बुलाते है कि सोने का समय हो गया है। उन्हें मसहरी पर भी नींद नहीं आती और करवटें बदलते रहते हैं। परंतु जब अचानक जोर की नींद आती है तो मिट्टी के ढेलों पर भी मसहरी का आनंद मिलता है। बेटा जब खूब नींद सताए तभी सोना चाहिए। बाकी समय में प्रभु भजन करना चाहिए।

आलसी बनकर पड़े रहना उचित नहीं। गोपीचंद बोले, धन्य है तुम्हारे ज्ञान को माता! जननी हो तो ऐसी हो। सज्जनों! पिंगला रानी ने अपने बुरे आचरण से अपने पति को योगी बनाया और मैनावती ने अपने अच्छे आचरण से अपने बेटे को योगी बना दिया। इस संसार में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के आचरण की नारियां होती हैं।

गोपीचंद अपनी माता मैनावती से शिक्षा और भिक्षा लेकर अपने गुरु जालंधरनाथ के पास गए और गुरु के चरणों में मस्तक नवाया। जालंधरनाथ योगी ने पूछा कि बेटा! रानी से क्या शिक्षा मिली? गोपीचंद बोले, रानी ने भिक्षा में यह शिक्षा दी कि दूसरों के उपकार के लिए अपने स्वार्थ को अवश्य बलिदान करना चाहिए और माता ने तीन शिक्षाओं में भिक्षा दी।

                        – क्रमशः