ये आदमी हैं या चूहे?

सुरेश सेठ

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मत समझिए कि हम इस देश की तेज़ी से बढ़ती हुई आबादी को असंख्य बता उसकी तुलना इस देश के बेहिसाब चूहों से करने जा रहे हैं। वैसे तो इस देश के चूहों ने बढ़-चढ़ कर लोगों की चूहापंथी का मुकाबला करने का प्रयास किया है। भ्रष्ट नौकरशाही अगर अच्छे भले अनाजों के गोदाम में सेंध लगाए उसे सड़ा-गला बता कर उसकी गाडि़यां भर बेच जाती है तो इस देश के चूहे भी इन माल गोदामों के चोर बिलों में प्रवेश करके उसका कम से कम दस प्रतिशत चट कर जाते हैं। पिछले दिनों देश के सुप्रीम कोर्ट को चिंता हो गई कि वर्षों से सरकारी खरीद का अनाज गोदामों में पड़ा-पड़ा सड़ रहा है, क्यों न इसे भूखे, संत्रस्त और गरीब लोगों में बांट दिया जाए? यह सुझाव अफसरशाही ने इन चूहों की आड़ में ही नहीं माना था। कहा पांच वर्ष से अनाज गोदामों में बंद है। दस प्रतिशत के हिसाब से आधा तो चूहे ही खा गए। अब बाकी बचा अनाज सस्ते आटा-दाल की दुकानों में बेच दीजिए।

 यह इतना खराब होगा कि लोग खरीदेंगे नहीं और बाकी बचे को खराब कहकर काला बाज़ार में खपाने की आसानी हो जाएगी। देखिए ये चूहा वृत्ति कहां-कहां न काम कर गई। नशा माफिया पर लगाम कसने के लिए सरकार ने न जाने कितनी कसमें खाई थीं। छापामारी हुई, नाके लगे, चिट्टा, सफेद पाऊडर, चरस, गांजा, नकली तस्कर, शराब सब पकड़ी जाती रही है। माफिया डॉन के नाम पर बेचारे नशेड़ी पकड़े, जाकर नशा छुड़ाओ केन्द्रों में बन्द हो गए हैं। यहां उन्हें सुधर कर नए आदमी बनने की जगह मारपीट से कुहनियां घुटने तुड़वाने परलोक सिधारते हैं। खुदाई खिदमतगारों ने बरामद नशे के पाऊच जितने गिने थे, उतने जमा नहीं हुए। जितने जमा हुए उतने गिनती में निकले नहीं। पता लगा इन गोदामों का माल बाबा आदम के ज़माने की दरारों में पलते चूहे उन्हें निगल गए। अब सरकार के पास दो काम हैं, एक तो इन मदमस्त नशेड़ी चूहों की तलाश कीजिए और दूसरा नशों के कारोबार के पीछे सूत्रधार बड़ी मछलियों पर हाथ डालिए।

देखिए, साहब मछलियां तो आपके हाथ आने से रहीं, क्योंकि वे बड़ी हो गई हैं और अब अगला चुनाव लड़ने या लड़वाने की तैयारी में व्यस्त हैं। जहां तक नशेड़ी चूहों को पकड़ने का सवाल है, उन्हें क्यों न उन गोदामों की खोखली दीवारों में तलाश करने की बजाय उसी छापामार पुलिस की जेब में तलाश कर लिया जाए। ये लोग नशा बरामद करने जाएं या चोरी का माल, हमेशा लाठियों के गजों से नापते हैं, पाते ज्यादा हैं, लिखते कम हैं। दोषी पकड़ कर लाने के लिए कहो तो इन बेचारे चूहों की तलाश शुरू कर देते हैं। बाद में ‘जा रे जमाना’ कह कर तलाश छोड़ दी जाती है। जब सरकार ने इन कानूनी कोठरियों के कायाकल्प के लिए आई हर ग्रांट लौटा दी, ‘खजाना खाली है’ का कारण बताकर! तो चूहे क्यों न इन दरारों में छिप जाएं? जब सरकार समाज बदलने के ओजस्वी भाषण करें या कि कोठरियां सुधारने का बोरिंग और दकियानूस काम सिर पर ले? क्यों न यह काम उन ठेकेदारों के हवाले कर दिया जाए जिन्हें एक दिन में एक किलोमीटर सड़क बनाने का अनुभव है। बारिश पड़ी ही नहीं और सड़कें दरारग्रस्त हो गड्ढे बनने लगीं। अफसर से पूछा तो कहते हैं, सरकार बिल पास करने और बिल भुगतान करते समय तो ठीक थीं, बाद में इन चूहों ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा, इन्हें भी चट कर गए।