कोरोना के अंत की शुरुआत

कोरोना वायरस के संदर्भ में दो समानांतर खबरें मिली हैं। एक तो ब्रिटेन ने फाइजऱ कंपनी के टीके को अधिकृत स्वीकृति दे दी है। ऐसी पहल करने वाला ब्रिटेन दुनिया का पहला देश बन गया है। वहां के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैन्कॉक ने कहा है कि क्रिसमस से पहले, आगामी सप्ताह से ही, करीब 8 लाख खुराकों के साथ ब्रिटेन के नागरिकों  में टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। वैसे फाइजऱ ने ब्रिटेन सरकार के साथ 2021 तक 4 करोड़ टीके की खुराकें उपलब्ध कराने का करार किया है। यकीनन मानव-सभ्यता के लिए यह ऐतिहासिक क्षण है और कोरोना महामारी के अंत की शुरुआत की घोषणा भी है। विज्ञान और चिकित्सा की बिरादरी का बहुत-बहुत आभार…! बहरहाल दूसरी तरफ भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण और आईसीएमआर के महानिदेशक प्रो. बलराम भार्गव ने अचानक घोषणा की है कि भारत में प्रत्येक नागरिक को कोरोना का टीका नहीं लगेगा। यदि टीकाकरण शुरू करने के बाद वायरस की कड़ी टूट जाती है, तो सभी देशवासियों को टीका लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। खासतौर से यह स्पष्ट किया गया है कि सरकार ने देश की पूरी आबादी के टीकाकरण की बात कभी नहीं कही थी। ये चौंकाने वाले और सवालिया एलान हैं। क्या स्वास्थ्य सुरक्षा देश के तमाम नागरिकों के लिए नहीं है?

क्या सरकार इतने व्यापक स्तर पर टीकाकरण का खर्च वहन करने में असमर्थ है? बिहार चुनाव के दौरान केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने, भाजपा का ‘संकल्प-पत्र’ जारी करते हुए, पूरे राज्य के टीकाकरण का जो वायदा किया था, क्या उससे भी मुंह मोड़ा जा रहा है? सवाल केंद्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों के दरमियान विरोधाभासों को लेकर भी किए जाएंगे। मसलन-दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने समानांतर घोषणा की है कि कोरोना का टीका मिलते ही दिल्ली के सभी नागरिकों को टीके की खुराक दी जाएंगी। ऐसी घोषणाएं विपक्ष की कुछ और सरकारों की तरफ  से भी की जा सकती हैं। कोरोना महामारी पर सियासत के मायने क्या हैं? ब्रिटेन ने तो खूबसूरत और मानवीय पहल की है, लेकिन अमरीका, जर्मनी, जापान, बेल्जियम और यूरोपीय संघ के देश भी फाइज़र के टीके को जल्द ही स्वीकृति देने जा रहे हैं। फिलहाल चिंता और सरोकार इनसानी जिंदगी के हैं। दुनिया में करीब 6.5 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और 15 लाख मौतें भी हुई हैं। भारत भी संक्रमण के संदर्भ में 95 लाख के करीब तक पहुंच चुका है। बेशक संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार कम हो रही है और रोजाना की औसतन मौतें भी 500 से कम हैं, लेकिन यह यथार्थ है कि कोरोना वायरस फिलहाल मौजूद है। भारत में भी कोरोना टीके के परीक्षण और उत्पादन की प्रक्रिया अंतिम चरणों में है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने जब तीन बड़ी कंपनियों के संयंत्रों और प्रयोगशालाओं में जाकर मुआयना किया था, तब भी हमने विश्लेषण किया था कि 2021 की शुरुआत कोरोना वायरस के अंत की शुरुआत होगी। उसके बाद स्वास्थ्य सचिव और आईसीएमआर के महानिदेशक सरीखे शीर्ष अधिकारियों के स्पष्टीकरण आने लगे हैं कि एक टीके के शोध, परीक्षण और उसे बाजार तक लाने में 10-12 साल लगते हैं। कुछ मामलों में तो 16 साल तक लगे हैं। फिर कहा गया कि कोरोना टीका सभी देशवासियों के लिए नहीं होगा!

 फाइज़र का टीका तो भारत सरकार और कोरोना के राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह की इच्छा-सूची में ही नहीं है। फाइज़र से हमारा कोई आंशिक करार भी नहीं किया गया है। कुछ व्यावहारिक दिक्कतें भी हो सकती हैं, लेकिन सभी देशवासियों को कोरोना के टीकाकरण का हिस्सा क्यों न बनाया जाए? सफल टीकाकरण के अनुभव और श्रेय भारत के नाम ही हैं। इनसानी जिंदगी बचाना भी सरकार के बुनियादी दायित्वों में शामिल है। फिलहाल तो संक्रमण का सिलसिला देशभर में है। कहीं ज्यादा, तो कहीं कम हो सकता है। संक्रमण की कड़ी टूटने का आकलन किस आधार पर किया जाएगा। इधर जर्मनी में नए शोध आए हैं कि कोरोना का वायरस नाक के रास्ते दिमाग तक जा सकता है। नतीजतन मरीज में न्यूरोलॉजिकल गड़बडि़यां भी देखी गई हैं। इस वायरस के कई अद्भुत आयाम सामने आए हैं, लिहाजा उचित इलाज भी जरूरी है। सरकार अपनी घोषणाओं पर पुनर्विचार करेगी, ऐसी हमारी अपेक्षा और उम्मीद है।