गीता रहस्य : स्वामी रामस्वरूप

चारों वेद हमें ईश्वर ने दिए हैं और हमारे समक्ष है परंतु यदि वेदों के अध्ययन की विधि और उसमें दी हुई सब विद्याओं का ज्ञान नहीं है तब वेद विद्या हमें सुख नहीं देती और जीव सदा दुःखी रहता है। इसलिए कहा है कि वेद ही ज्ञान है, वेद ही विद्या है जिसे सुनकर जीव ज्ञानवान होकर सुखी होता है…

गतांक से आगे…

ज्ञान तत्त्व बोध का नाम है अर्थात वेदाध्ययन द्वारा प्रथम पदार्थों का शब्दों द्वारा स्वरूप जानना और तत्पश्चात योगाभ्यास आदि द्वारा उसका दर्शन/ अनुभव प्राप्त करना तत्त्वबोध है, इसे ही ज्ञान कहते हैं। वस्तुत वेद को ही ज्ञान कहते हैं। वेद ही ज्ञान है। ज्ञान संपूर्ण विश्व में सर्वोत्तम निधि है। यदि हमें संसार के सब पदार्थ भी प्राप्त हों और उनके प्रयोग करने की विधि ठीक-ठीक ज्ञान न हो तो वह पदार्थ भी हमें सुख नहीं देंगे।

अतः ज्ञान के बिना सुख नहीं। जैसे अग्नि, जल, आटा, चूल्हा आदि के ठीक-ठीक प्रयोग करने की विधि का ज्ञान नहीं तब हमें यह पदार्थ सुख नहीं देंगे। इसी प्रकार शरीर एवं इंद्रियों के होते हुए भी यदि मानव शरीर के ठीक-ठीक प्रयोग करने की विधि का ज्ञान नहीं, सोना, उठना, सात्विक आहार करने की विधि का ज्ञान नहीं, तब यह शरीर भी हमें सुख नहीं देगा। बिलकुल ऐसे ही चारों वेद हमें ईश्वर ने दिए हैं और हमारे समक्ष है परंतु यदि वेदों के अध्ययन की विधि और उसमें दी हुई सब विद्याओं का ज्ञान नहीं है तब वेद विद्या हमें सुख नहीं देती और जीव सदा दुःखी रहता है। इसलिए कहा है कि वेद ही ज्ञान है, वेद ही विद्या है जिसे सुनकर जीव ज्ञानवान होकर सुखी होता है।

असंमोह- वेद विद्या के अध्ययन से पदार्थों के सत्य स्वरूप का ज्ञान होना और असत्य का त्याग होना विवेक कहलाता है। इसे ही असंमोह कहते है। इसमें जड़-चेतन, सत्य-असत्य आदि सबका बोध होता है।

 क्षमा- क्षमा का अर्थ है कि सामर्थ्यवान पुरुष अपने से छोटे के किए हुए अपकार आदि कर्मों को क्षमा कर देता है।

सत्य– मन, कर्म, वचन से सत्य आचरण और असत्य का त्याग करना सत्य कहलाता है।

दम- मन की वृत्तियों को साधना द्वारा रोकने का नाम दम है।

शम- इसे ही इंद्रियों का दमन करना कहते हैं। शम का अर्थ है शांति। ज्ञानेंद्रिय और मन के अनुकूल स्थिति सुख कहलाती है और विपरीत स्थिति दुःख कहलाती है।

भव- भव का अर्थ है होना अर्थात अस्तित्व में आना। जैसे प्रलयकाल में संसार का अस्तित्व नहीं होता, संपूर्ण संसार प्रकृति रूप में होता है, जो दृष्टिगोचर नहीं होता।    – क्रमशः