हिमाचल के किसान-मजदूर भी आज हड़ताल पर, कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन के समर्थन में हल्ला बोलेंगे संगठन

हिमाचल किसान सभा सहित कई संगठनों ने किसानों के साथ हो रहे बर्बरतापूर्ण दमन की निंदा की है। राज्य के किसान व मजदूर उग्र हो गए हैं।  इसी के चलते वे गुरुवार को एक दिवसीय हड़ताल कर किसानों के इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। हिमाचल किसान सभा ने ऐलान किया है कि कृषि कानून को वापस नहीं लिया गया, तो इस आंदोलन को उग्र रूप दिया जाएगा। सीटू, हिमाचल किसान सभा, जनवादी महिला समिति, डीवाईएफआई, एसएफआई, दलित शोषण मुक्ति मंच ने अपनी मांगों व तीन किसान विरोधी कानूनों को लेकर संघर्षरत किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है।

 इन संगठनों ने केंद्र व हरियाणा सरकार द्वारा किए जा रहे किसानों के बर्बर दमन की कड़ी निंदा की है। साथ ही ऐलान किया है कि किसानों के आंदोलन के समर्थन में तीन दिसंबर को प्रदेश भर के मजदूरों, किसानों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों व सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों द्वारा राज्यव्यापी प्रदर्शन कर किसानों के साथ एकजुटता प्रकट की जाएगी। सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा ने आरोप लगाया है कि केंद्र व हरियाणा सरकार किसानों को कुचलने पर आमादा हैं, जो कि बेहद निंदनीय है। किसान आंदोलन को दबाने से स्पष्टतः जाहिर हो चुका है कि ये दोनों सरकारें पूंजीपतियों के साथ हैं।

 उनकी मुनाफाखोरी को सुनिश्चित करने के लिए किसानों की आवाज दबाना चाहती हैं, जिसे देश का मजदूर-किसान कतई मंजूर नहीं करेगा। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार किसान विरोधी नीतियां लाकर किसानों को कुचलना चाहती है। सरकार की लाठी, गोली, आंसू गैस, सड़कों पर खड्डें खोदना, बैरिकेड व पानी की बौछारें भी किसानों के हौंसलों को पस्त नहीं कर पा रही हैं। उन्होंने मजदूरों से आग्रह किया है कि वे भारी संख्या में आंदोलन के मैदान में कूदें व तीन दिसंबर को प्रदेश भर में हजारों की संख्या में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रतिरोध की कार्रवाई करें।

कालाबाजारी-मुनाफाखोरी बढ़ेगी

आरोप है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों नए कृषि कानून पूर्णतः किसान विरोधी हैं। इस कारण किसानों की फसलों को कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए विदेशी और देशी कंपनियों और बड़ी पूंजीपतियों के हवाले करने की साजिश रची जा रही है। इन कानूनों से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की अवधारणा को समाप्त कर दिया जाएगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम के कानून को खत्म करने से जमाखोरी, कालाबाजारी व मुनाफाखोरी को बढ़ावा मिलेगा। इससे बाजार में खाद्य पदार्थों की बनावटी कमी पैदा होगी व खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। कृषि कानूनों के बदलाव से बड़े पूंजीपतियों और देशी-विदेशी कंपनियों का कृषि पर कब्जा हो जाएगा और किसानों की हालत दयनीय हो जाएगी।