जीवन की तकनीक

श्रीश्री रवि शंकर

जब यह तकनीक काम न करे तो आप दूसरी तकनीक पर जाएं, जिसे दान कहते हैं, जिसका अर्थ है इसे होने देना, क्षमा कर देना, स्थान देना। यदि लोग आपकी उदारता को नहीं पहचान पाते हैं तो तीसरी तकनीक भेद काम में आती है। इसका अर्थ है तुलना करना, दूरी उत्पन्न करना। यदि कोई व्यक्ति आपसे उलझता है तो पहले आप उससे बात करें…

एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास चार तकनीक होती हैं, जो कि आंतरिक और बाह्य दोनों ही हैं। साम- दाम, भेद और दंड। दुनिया के लोगों से व्यवहार के लिए बुद्धिमतापूर्ण जीवन जीने के लिए पहली तकनीक साम है, जिसका अर्थ है शांति और समझदारी भरा मार्ग। जब यह तकनीक काम न करे तो आप दूसरी तकनीक पर जाएं, जिसे दान कहते हैं, जिसका अर्थ है इसे होने देना, क्षमा कर देना, स्थान देना। यदि लोग आपकी उदारता को नहीं पहचान पाते हैं तो तीसरी तकनीक भेद काम में आती है। इसका अर्थ है तुलना करना, दूरी उत्पन्न करना। यदि कोई व्यक्ति आपसे उलझता है तो पहले आप उससे बात करें।

यदि इससे बात न बने तो प्रेम से उनकी उपेक्षा कर दें। उन्हें स्वयं को ही समझने का अवसर दें। आपकी उदारता और उपेक्षा उनको उनकी गलती का अनुभव करवा देगी। लेकिन यदि वे उस पर ध्यान न दें तो उनसे भेद कर लें और उनसे दूरी बना लें। यदि वहां पर दो व्यक्ति हैं, तो आप उनमें एक के थोड़ा निकट हो जाएं। ऐसा करने से दूसरा व्यक्ति उसको अनुभव करने लगेगा और उसे अपनी गलती का अनुभव हो जाएगा। यदि अब भी कोई बात नहीं बनी तो अंतिम है, डंडा।

यही चारों तरीके आप अपने स्वयं के साथ भी अपनाएं। आंतरिक जीवन के लिए यह उसी तरह एक के बाद एक नहीं है। साम का अर्थ है समानता बनाना। यदि सुखद क्षण आ रहे हैं तो उनको देखें। यदि दुखद क्षण आ रहें हैं तो उनको भी देखें। अपने में समानता रखें। दान का अर्थ है छोड़ देना। उनको छोड़ देना, जो आपको विघ्नता दे रहे हैं। वे विचार जो आपको समानता जैसे राजसी सिंहासन पर आसीन नहीं होने दे रहे हैं, उनको छोड़ देना चाहिए। इसका अर्थ है। वे बातें जो आपके मन को दुख पहुंचाने वाली, समस्याएं और परेशान करने वाली बातें हैं, उनको समर्पित कर देना। मन कहता है, यह आपने अच्छा किया। तो आप ऊपर उछलने लगते हैं और जब मन कहता है, यह आपने गलत काम किया, तो आप नीचे बैठ जाते हैं।

नकारात्मक कार्य आपको पीड़ा देते हैं, लेकिन ये नकारात्मकता हमेशा नहीं रहती है। अच्छे कार्य आपको सुखद अनुभव देते हैं, लेकिन कुछ समय बाद वे गायब हो जाते हैं। हर कार्य और उसका फल समाप्त हो जाता है। ये हमेशा नहीं रहने वाले। दान का अर्थ है देना। इसमें क्षमा भी सम्मिलित है। जब आपका मन इधर-उधर भागे तो उसे भागने दो। इसे पकड़ कर मत बैठो। इसके पीछे जाओ और इसे वापस लाओ। ऐसा मत कहो, मैं अपने मन से परेशान हो गया हूं, थक गया हूं। इसमें ईर्ष्या और ऐसा करना गलत है। अपने मन से घृणा मत करो। अपने मन को क्षमा कर दो। ऐसा कहें, अज्ञानता से मेरा मन इन मूर्ख विषयों के पीछे भागता है।