सेना और मकर संक्रांति

कर्नल (रि.) मनीष धीमान, स्वतंत्र लेखक

अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से नए वर्ष का आगमन हो चुका है। हिमालय के पश्चिम में होने की वजह से इस समय भारत में प्रचंड ठंड रहती है। भारतीय कैलेंडर के हिसाब से माघ महीने की संक्रांति, जो मकर संक्रांति के नाम से प्रसिद्ध है, से नववर्ष का आगमन माना जाता है। पूरे भारत में 13-14 जनवरी को अलग-अलग नाम से त्योहार के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा और हिमाचल में इस दिन को लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है जिसमें महीना भर बच्चे घर-घर लोहड़ी के गीत गाकर मुबारकबाद देते हैं। लोहड़ी के दिन अग्नि देवता की पूजा के बाद तिल, चावल और मूंगफली-रेवड़ी आदि से इस त्योहार को मनाया जाता है। इस दिन रंग-बिरंगी पतंगों से सजा आसमान बहुत ही सुंदर दिखता है। दक्षिण में इस दिन को पोंगल के नाम से मनाया जाता है, जिसमें औरतें रंग-बिरंगी रंगोली बनाकर घर-आंगन को सजाती हैं तथा मर्द लोग बैलों की दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं जो ‘जल्लिकटू’ के नाम से प्रसिद्ध है।

 उत्तर पूर्व में इसको बिहू के नाम से मनाया जाता है और बंगाल की बात की जाए तो इस दिन गंगा सागर के तट पर औरतें स्नान कर व्रत रखती हैं। यह मान्यता है कि इस दिन गंगा भागीरथ का पीछा करते हुए गंगासागर में मिली थी और यशोदा ने  इस दिन व्रत रखकर भगवान कृष्ण को मांगा था। मध्य भारत में इस दिन को ‘दान का पर्व’ से मनाया जाता है तथा उड़द दाल और चावल से बनी खिचड़ी का तिल के तेल के साथ सेवन किया जाता है। नेपाल में इसको फसल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस सबसे अलग सेना में देश के हर हिस्से का नुमाइंदा होने की वजह से मकर संक्रांति के त्योहार को मिले-जुले ढंग से मनाया जाता है। इस दिन यूनिट में सारे सैनिक शाम को इकट्ठा होकर अग्नि पूजा करते हैं और पौराणिक तरीके से रेवड़ी, तिल, चावल, मूंगफली आदि का प्रसाद बांटा जाता है। जबकि फैमिली क्वार्टर  जहां पर सैनिकों के परिवार रहते हैं, वहां पर मकर संक्रांति के दिन को जिस तरह से मनाया जाता है वह देखने लायक होता है।

 जहां बंगाली औरतें सुबह-सुबह अपने पारंपरिक बंगाली परिधान में सज-धज कर मां गंगा का व्रत रखते हुए आने वाले वर्ष में खुशहाली की कामना करती हैं, वही पंजाबी लोग ढोल-धमाके के साथ भंगड़ा डालते हैं तथा पतंगबाजी करते हैं। दक्षिण भारतीय औरतें दक्षिणी व्यंजनों रस्म आदि से सुसज्जित भोजन की थाली सजाती हैं। पर यह नज़ारा और भी सुंदर तब हो जाता है जब मद्रासी घर में पोंगल की रंगोली की सजावट तथा रस्म के स्वाद के चटखारे लेते पंजाबी, असामी दिखते हैं तो असामी बिहू का मध्य भारतीय आनंद लेते नजर आते हैं। उत्तर भारतीयों के साथ पतंगबाजी में पेंच लड़ाने तथा खिचड़ी, मूंगफली, तिल-चौली आदि के स्वाद का मजा लेने के लिए मद्रासी, बंगाली, नेपाली सबसे आगे मिलते हैं। अगर इस सब को देखा जाए तो सेना एक ऐसी संस्था है जहां पर हर सैनिक मिलजुल कर भाईचारे से एक-दूसरे के रीति-रिवाजों तथा संस्कारों को समझते हुए एक-दूसरे की खुशी में शामिल होता है। मेरा मानना है कि देश के हर नागरिक को सेना की इस अच्छाई से सीखते हुए मिल-जुल कर सबकी ख़ुशी में शामिल होकर भाईचारे के साथ रहना चाहिए।