पौष पूर्णिमा को है स्नान का विशेष महत्त्व

पौष पूर्णिमा विक्रमी संवत के दसवें माह पौष के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास के दौरान जो लोग पूरे महीने भगवान का ध्यान कर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं,  उसकी पूर्णता पौष पूर्णिमा के स्नान से हो जाती है। इस दिन काशी, प्रयाग और हरिद्वार में स्नान का विशेष महत्त्व होता है। जैन धर्मावलंबी इस दिन शाकंभरी जयंती मनाते हैं तो वहीं छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियां पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम से छेरता पर्व मनाती हैं। ज्योतिष तथा जानकारों का कहना है कि पौष महीने में सूर्य देव ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तप करके सर्दी से राहत देते हैं।

 पौष के महीने में सूर्य देव की विशेष पूजा, उपासना से मनुष्य जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा सकता है। पौष पूर्णिमा के दिन गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान, दान और सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्त्व है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से तन, मन और आत्मा तीनों नए हो जाते हैं। इसीलिए इस दिन संगम के तट पर स्नान के लिए लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। पौष का महीना सूर्य देव का महीना माना जाता है। पूर्णिमा की तिथि चंद्रमा के अनुसार होती है। सूर्य-चंद्रमा का यह अद्भुत संयोग केवल पौष पूर्णिमा को ही मिलता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की उपासना से पूरी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ग्रहों की बाधा शांत होती है और मोक्ष का वरदान भी मिलता है।

पूजा और स्नान

पौष पूर्णिमा को सुबह स्नान के पहले संकल्प लेना चाहिए। पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें, फिर स्नान करें। साफ  कपड़े धारण करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। फिर मंत्र जाप करके कुछ दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत रखना और भी अच्छा रहता है।

मंत्र जाप

पौष पूर्णिमा पर स्नान के बाद कुछ विशेष मंत्रों के जाप से कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके लिए निम्न मंत्रों का जाप किया जा सकता है ः ओउम आदित्याय नमः, ओउम सोम सोमाय नमः, ओउम नमो नीलकंठाय, ओउम नमो नारायणाय।