चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी समभाव अपनाएं : यश गोरा, लेखक कांगड़ा से हैं

हिमाचल में कुछ जगह पंचायत चुनाव हो गए हैं और कुछ जगह अभी होने हैं। धीरे-धीरे सब परिणाम भी आ ही जाएंगे। एक-एक पद, जिनके लिए उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी पेश की थी, उनकी हार-जीत का फैसला जनता कर रही है। पंचायत चुनाव में सभी उम्मीदवार और मतदाता एक ही गांव के होते हैं। ऐसे में जब एक पद के लिए कोई अपना नामांकन दर्ज करवाता है तो उसकी इच्छा होती है कि सभी उसका समर्थन करें। परंतु जब उसी पद के लिए उसके प्रतिद्वंद्वी सामने आते हैं तो वह थोड़ा बहुत विचलित हो ही जाता है। प्रत्येक उम्मीदवार स्वयं को उस पद के लिए अन्य सभी से बेहतर समझता है। जहां एक तरफ पुराने उम्मीदवार स्वयं को अनुभव की पराकाष्ठा पर मापते हैं, वहीं दूसरी तरफ  नए उम्मीदवार अपने में नई सोच और जोश का दम भरते हैं। ऐसे में जनता को बहुत सतर्कता से काम लेना होता है। परंतु साथ ही चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी को भी सब के हितों का ध्यान रखना चाहिए। उसे सबके प्रति समभाव रखना चाहिए। चाहे वह एक बहुत बड़े बहुमत के अंतराल से जीता हो, या एक-दो वोटों के अंतर से ही उसने विजय माला पहनी हो। यहां तक कि अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रति भी उसके मन में किसी प्रकार का द्वेष भाव न हो। इसके साथ ही उसे अपने मत क्षेत्र को भी अपने कार्यकाल में नहीं भूलना चाहिए। अक्सर नेताओं के बारे में यह सुनने में आता है कि चुनाव प्रचार के समय यह लोग हाथ जोड़कर घरों में पहुंच जाते हैं, परंतु चुनाव जीतने के बाद पूरे कार्यकाल में इनकी सूरत भी देखने को नहीं मिलती।

विजेताओं को इस दूरी को भी समाप्त करना चाहिए। किसने मेरा समर्थन किया, किसने नहीं किया, किसने मुझे मत दिया, किसने नहीं दिया, इन सब बातों को छोड़कर अगर विजेता अपनी जीत की खुशी में सब को शामिल कर ले तो उसे पंच परमेश्वर का दर्जा प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता। जिन्होंने उसका सीधे तौर पर विरोध भी किया हो, उनके जायज कार्य करके वह उनके दिलों पर भी राज कर सकता है। ऐसा उदाहरण पेश करने पर वह अपनी अगली जीत भी सुनिश्चित कर सकता है। परंतु इतना आगे का सोचने के बजाय उसे वर्तमान में अपनी जनता और गांव के विकास के विषय में ही सोचना चाहिए। उसे यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि उससे उसके गांव को बहुत उम्मीदें हैं और अब उसका जीवन निजी नहीं रह गया है। अपितु जनकल्याण ही उसका ध्येय होना चाहिए। बिना किसी स्वार्थ या फल की इच्छा किए उसे अपना कर्म सही ढंग से करना चाहिए। गीता में श्री कृष्ण ने कहा भी है कि हे मनुष्य, कर्म करता जा और फल की इच्छा मत कर। चुनाव जीतने के बाद हरेक प्रत्याशी को समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधि बनकर उनके हित में काम करना चाहिए।