विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

तुम्हीं सब कुछ तो नहीं हो, मारने वाले से बचाने वाला ईश्वर बड़ा है, यह क्यों भूल जाते हैं। चूहों से कैसे निपटा जाए, यह बड़ा पेचीदा प्रश्न है। इस दिशा में मनुष्य का बुद्धि कौशल लगातार मात खाता चला आता है। चूहेदान पिंजरे दो-चार दिन काम करते हैं। अपने साथियों की दुर्गति देख कर वास्तविकता समझने में उन्हें देर नहीं लगती…

-गतांक से आगे…

छोटी छिपकलियां जब किसी बलवान शत्रु से घिर जाती हैं, तो अपनी पूंछ फटकार कर, उसे तोड़कर अलग कर देती हैं। तेजी से हिलती हुई उस कटी पूूंछ को ही शत्रु पूरी छिपकली समझ लेता है और उसी से गुंथ जाता है, उसी बीच छिपकली भाग खड़ी होती है और अपनी प्राण रक्षा कर लेती है। आश्चर्य यह है कि उस कटी पूंछ के स्थान पर फिर नई पूंछ उग आती है और कुछ ही दिन में पहले जैसी बन जाती है। शत्रुओं से निपटने के लिए मनुष्य युद्ध सामग्री सैन्य-सज्जा के अनेकानेक अस्त्र-शस्त्र का निर्माण कर रहा है, जिनमें विषाक्त गैसें और अणु आयुध भी सम्मिलित हैं। एक देश दूसरे को अपना शत्रु मानता है। उसका अस्तित्व मिटा देने के लिए बढ़े-चढ़े दावे पेश करता है, क्या यह धमकियां सफल हो सकती हैं, यह पूछने के लिए चूहा चुनौती देता है और अंगूठा दिखाता है कि तुम मनुष्य प्राणी मुझे अपना शत्रु मानते हो और मेरी हस्ती दुनिया मिटा देने के लिए पीढि़यों से सिर तोड़ प्रयत्न कर रहे हो, पर कुछ नहीं बिगाड़ सकते, तो शत्रु देशों का क्या कर लोगे। तुम्हीं सब कुछ तो नहीं हो, मारने वाले से बचाने वाला ईश्वर बड़ा है, यह क्यों भूल जाते हैं। चूहों से कैसे निपटा जाए, यह बड़ा पेचीदा प्रश्न है। इस दिशा में मनुष्य का बुद्धि कौशल लगातार मात खाता चला आता है। चूहेदान पिंजरे दो-चार दिन काम करते हैं।

अपने साथियों की दुर्गति देखकर वास्तविकता समझने में उन्हें देर नहीं लगती। पीछे पिंजरे में कुछ भी रखते रहिए। एक भी उसमें नहीं फटकेगा, जो उधर ललचा रहा होगा, उसे भी साथी लोग सावधान कर देते हैं। अजनबी घर में पहुंचकर बिल्ली उन्हें दबोच सकती है, पर जब वह उसी घर में रहने लगते हैं, तो चूहे वे दांव-पेंच निकाल लेते हैं, जिनसे उन पर कोई विपत्ति न आए। कहीं-कहीं तो मजबूत चूहे मिलकर कमजोर बिल्ली से डरते नहीं, वरना अंगूठा दिखाते हुए आंख-मिचौनी खेलते रहते हैं। गोदामों की सुरक्षा के लिए नेवले-सांप, बीजल, फेरेट पाले गए, ताकि वे चूहों से निपट सकें, पर इसका भी कोई बहुत अच्छा परिणाम न निकला। चूहों से फैलने वाली बीमारी पिछले दिनों प्लेग ही मानी जाती थी, पर अब पता चला है कि वे टाइफसट्रिक्रिना सेप्टास्पाइरोसिस सरीखे अन्य कई भयानक रोग भी पैदा करते हैं। चूहों को मारने के लिए पिछले दिनों कई विष प्रयुक्त होते रहे हैं। स्ट्रिक्लीन-जिंक, फास्फाइड वारफैरिन आदि का प्रयोग किया जाता रहा है। इन्हें उपयुक्त मात्रा में खा लेने पर तो वे मर जाते हैं, पर यदि थोड़ी मात्रा में ही खाएं, तो उनका शरीर इन विष रसायनों से आत्मरक्षा करने में अभ्यस्त हो जाता है। फिर वे मजे से उसे खाते रहते हैं। उनकी पीढि़यां इस प्रकार की बन जाती हैं कि इन घातक विषों का भी उन पर कुछ अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)