…आखिर मिल गई दारा शिकोह की कब्र

वर्ष 1659 से चले आ रहे रहस्य पर से अब पर्दा उठ गया है। मुगल बादशाह शाहजहां के युवराज बेटे दारा शिकोह की कब्र की आखिर 361 वर्ष बाद निशानदेही हो गई। इस कब्र की तस्दीक केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की सात सदस्यीय टीम के छह सदस्यों ने कर दी है।

वैसे इस कब्र की सही खोज दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के ‘हैरिटेज सेल’ के एक सहायक इंजीनियर संजीव कुमार द्वारा की गई और उसके द्वारा प्रस्तुत प्रमाणों व ब्यौरों को केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है। इतिहास में सिर्फ इतना ही उल्लेख मिलता है कि दारा शिकोह को उसकी नृशंसतापूर्वक हत्या के बाद हुमायूं के मकबरे के मकबरे में ही किसी स्थान पर दफन कर दिया गया था। दारा शिकोह का सिर काटकर आगरा भेजा गया था और धड़ के लिए यहीं एक कब्र बना दी गई थी। कैसे थे उस समय के कुछ मुगल शहंशाह, जो निर्मम भी थे व इस हद तक संवेदनहीन भी थे। दारा शिकोह पूरी जिंदगी सूफी-जीवन मूल्यों और आध्यात्मिक चिंतन में डूबा रहा। उसने 52 के लगभग पुराणों एवं उपनिषदों का संस्कृति से फारसी में अनुवाद किया था।

श्रीमद्भगवत गीता के अनुवाद का भी श्रेय उसी के नाम है। उसका मकसद धार्मिक आस्थाओं के मध्य पारस्परिक समझदारी व सहिष्णुता को बढ़ावा देना था। अब भी उस काल की कुछ पांडुलिपियां कश्मीरी गेट के समीप स्थित इंद्रप्रस्थ कालेज (श्रीगुरु गोबिंद सिंह कालेज) में एक संग्रहालय में देखने को मिल जाएंगी।दारा शिकोह को अध्यात्म-चर्चा का दीवानगी की हद तक शौक था। वह सिख धर्म-गुरु गुरु हरसहाय जी के पास और मियांमीर की दरगाह पर प्रायः अध्यात्म चर्चा के लिए जाया करता था। कुरुक्षेत्र में भी शेख चेहली के पास आध्यात्मिक चर्चा के लिए उनका आना जाना था। संजीव कुमार बताते हैं कि हुमायूं के मकबरे में 140 से अधिक कब्रें हैं।

हुमायूं के मकबरे में पश्चिम दिशा की ओर से जब भूतल से सीढि़यों के ऊपर चढ़ते हैं, तो बाईं ओर तीसरे कक्ष से दारा शिकोह की कब्र की ओर जाने का रास्ता है। इसमें सबसे पहले कक्ष में पांच कब्र हैं, जिसमें से मुख्य व्यक्ति की कब्र का प्रारूप ऊपरी हिस्से में बना हुआ है। फिर यहां से आगे बढ़ने पर एक खाली कक्ष आता है, उस जगह से संकरा रास्ता दूसरे कक्ष में दारा शिकोह की कब्र पर पहुंचता है। यहां पर पहले दारा शिकोह, फिर अकबर के बेटे मुराद और दानिवाल को दफन किया गया था। इन तीनों की कब्र के प्रारूप गुंबद के नीचे बने हैं, जिसका जिक्र आलमगीरनामा में किया गया है। संजीव कुमार सिंह ने बताया कि दारा शिकोह की मृत्यु 1659 में हुई थी, जबकि मुराद और दानिवाल की मौत दारा शिकोह से पहले हो गई थी। आलमगीर नामा में जिस प्रकार से गुंबद के नीचे तीन पुरुषों की कब्र के प्रारूप एक साथ होने के बारे में जानकारी दी गई है, वैसी तस्वीर गुंबद के नीचे किसी दूसरे कक्ष में नहीं दिखती है। संजीव ने बताया कि वह चार साल से दारा शिकोह की कब्र खोज रहे थे।

1688 में औरंगजेब के इतिहासकार मोहम्मद काजिम ने आलमगीर नामा पुस्तक लिखी थी, जिसमें दारा शिकोह की कब्र हुमायूं के मकबरे में गुंबद के नीचे तहखाने में होने को लेकर जिक्र किया था। अन्य पुस्तकों में भी इतनी सटीक जानकारी नहीं है। संजीव ने बताया कि आलमगीरनामा पुस्तक में यह साक्ष्य फारसी में लिखा था। डीयू के फारसी भाषा के विभागाध्यक्ष ने अनुवाद कर इसकी जानकारी दी। इससे पहले उन्होंने मुगल शासकों की कब्र की वास्तुकला का भी अध्ययन किया था, जिससे कब्र की बनावट, उस पर लगने वाले पत्थर व डिजाइन के संबंध में जानकारी जुटाई जा सके। दारा शिकोह की कब्र का एक संदर्भ यह भी है कि अब इतिहासकार उस काल के इतिहास को नए नजरिए से भी देखने लगे हैं। अधिकांश इतिहासकारों की यह मान्यता है कि यदि उस समय दारा शिकोह को शासन का मौका मिला होता, तो देश का इतिहास बिलकुल अलग होता। धर्मनिरपेक्षता के मामले में कुछ पहलकदमी अकबर के समय में हुई थी, लेकिन अकबर न तो विद्वान था और न ही अध्यात्म-दर्शन की बारीकियों से अधिक वाकिफ था। उसकी धर्मरिपरेक्षता कहीं न कहीं उसकी राजनीतिक कूटनीति का भी हिस्सा बन जाती थी। मगर दारा शिकोह विशुद्ध अध्यात्मवादी था। ऐसा नहीं था कि वह नमाजी नहीं था, मगर अन्य धर्मों के मर्म को समझना और सांझे सूत्र तलाश करना उसकी चिंतन शैली का एक हिस्सा था। कब्र के संबंध में यह भी स्पष्ट कर दें कि पिछले वर्ष केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने कब्र की तलाश व निशानदेही के लिए भारतीय पुरातत्वविदों की एक सात सदस्यीय समिति गठित की थी, जो इस दिशा में शोधरत थी। संजीव कुमार ने जो रिपोर्ट तैयार की, उसे सात में से छह सदस्यों ने स्वीकार कर लिया। अब यही रिपोर्ट, एसआई के जर्नल में भी छापी जा रही है। दारा शिकोह के विषय में नए-नए विवरण मीडिया में प्रस्तुत हो रहे हैं।

            —डा. चंद्र त्रिखा

शाहजहां और बेगम मुमताज का बेहद लाड़ला था दारा 

दारा अपने पिता शाहजहां और बेगम मुमताज का बेहद लाड़ला था। शाहजहां यथा संभव उसे तीरों, तलवारों व नेजों की दुनिया से भी बचाकर रखता था। दारा की दिलचस्पी रामायण, महाभारत के अलावा योग वशिष्ठ व पुराणों और उपनिषदों में भी थी। उसने इनमें कुछ अनुवाद स्वयं किए और कुछ अन्य समकालीन विद्वानों से भी कराए। वैसे यह भी एक विशिष्ट तथ्य है कि शाहजहां के तीन बेटे किसी न किसी रूप में धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हुए थे। दारा का झुकाव सूफी मत की तरफ था, तो शुजा कट्टर शिया मुसलमान था। औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था, जबकि चौथा बेटा मुराद सिर्फ जंग के तौर तरीकों से ज्यादा जुड़ा हुआ था। औरंगजेब दमन की नीति को आत्मरक्षा का सबसे बड़ा कवच मानता था। दारा शिकोह की निर्मम हत्या और उससे पूर्व उसे सार्वजनिक रूप में अपमानित करने के प्रसंग उसकी जीवनशैली का सुलगता हुआ प्रमाण थे। कालांतर में दारा शिकोह अनेक कृतियों में महानायक के रूप में प्रस्तुत हुआ और उसके आध्यात्मिक रुझान भी सदियों से चर्चा में बने हुए हैं।