किसी अजूबे से कम नहीं हैं  रामायण के पात्र

सीताजी से बिछड़कर रामजी दुःखी हुए और लक्ष्मण सहित उनकी वन-वन खोज करते जटायु तक पहुंचे। जटायु ने उन्हें सीताजी को रावण दक्षिण दिशा की ओर लिए जाने की सूचना देकर प्राण त्याग दिए। राम जटायु का अंतिम संस्कार कर लक्ष्मण सहित दक्षिण दिशा में चले। आगे चलते वे दोनों हनुमानजी से मिले जिन्होंने उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित अपने राजा सुग्रीव से मिलाया। रामजी संग मैत्री के बाद सुग्रीव ने सीताजी की खोज में चारों ओर वानरसेना की टुकडि़यां भेजीं…

-गतांक से आगे…

अपहरण पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते हुए कहा, ‘सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है।’ रावण ने अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना रची। इसके अनुसार मारीच सोने के हिरण का रूप धर राम व लक्ष्मण को वन में ले जाएगा और उनकी अनुपस्थिति में रावण सीता का अपहरण करेगा। आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिए। जब कोई सहायता नहीं मिली तो माता सीताजी ने अपने पल्लू से एक भाग निकालकर उसमें अपने आभूषणों को बांधकर नीचे डाल दिया। नीचे वन में कुछ वानर इसे अपने साथ ले गए। रावण ने सीता को लंकानगरी की अशोक वाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व में कुछ राक्षसियों को उसकी देख-रेख का भार दिया।

हनुमानजी की भेंट

सीताजी से बिछड़कर रामजी दुःखी हुए और लक्ष्मण सहित उनकी वन-वन खोज करते जटायु तक पहुंचे। जटायु ने उन्हें सीताजी को रावण दक्षिण दिशा की ओर लिए जाने की सूचना देकर प्राण त्याग दिए। राम जटायु का अंतिम संस्कार कर लक्ष्मण सहित दक्षिण दिशा में चले। आगे चलते वे दोनों हनुमानजी से मिले जिन्होंने उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर स्थित अपने राजा सुग्रीव से मिलाया। रामजी संग मैत्री के बाद सुग्रीव ने सीताजी की खोज में चारों ओर वानरसेना की टुकडि़यां भेजीं। वानर राजकुमार अंगद की नेतृत्व में दक्षिण की ओर गई टुकड़ी में हनुमान, नील, जामवंत प्रमुख थे और वे दक्षिण स्थित सागर तट पहुंचे। तट पर उन्हें जटायु का भाई सम्पाति मिला जिसने उन्हें सूचना दी कि सीता लंका स्थित एक वाटिका में है। हनुमानजी समुद्र लांघकर लंका पहुंचे। लंकिनी को परास्त कर नगर में प्रवेश किया। वहां सभी भवन और अंतःपुर में सीता माता को न पाकर वे अत्यंत दुःखी हुए। अपने प्रभु श्रीरामजी को स्मरण व नमन कर अशोक वाटिका पहुंचे। वहां ‘धुएं के बीच चिंगारी’ की तरह राक्षसियों के बीच एक तेजस्विनी स्वरूपा को देख सीताजी को पहचाना और हर्षित हुए। उसी समय रावण वहां पहुंचा और सीता से विवाह का प्रस्ताव किया। सीता ने घास के एक टुकड़े को अपने और रावण के बीच रखा और कहा ‘हे रावण! सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न हैं। राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में मेरा अपहरण कर तुमने अपनी कायरता का परिचय और राक्षस जाति के विनाश को आमंत्रण दिया है। रघुवंशियों की वीरता से अपरिचित होकर तुमने ऐसा दुस्साहस किया है। तुम्हारे लिए श्रीरामजी की शरण में जाना इस विनाश से बचने का एकमात्र उपाय है। अन्यथा लंका का विनाश निश्चित है।’ इससे निराश रावण ने राम को लंका आकर सीता को मुक्त करने को दो माह की अवधि दी। इसके उपरांत रावण व सीता का विवाह निश्चित है। रावण के लौटने पर सीताजी बहुत दुःखी हुई। त्रिजटा राक्षसी ने अपने सपने के बारे में बताते हुए धीरज दिया कि श्रीरामजी रावण पर विजय पाकर उन्हें अवश्य मुक्त करेंगे। उसके जाने के बाद हनुमान सीताजी के दर्शन कर अपने लंका आने का कारण बताते हैं। सीताजी राम व लक्ष्मण की कुशलता पर विचारण करती है। श्रीरामजी की मुद्रिका देकर हनुमान कहते हैं कि वे माता सीता को अपने साथ श्रीरामजी के पास लिए चलते हैं। सीताजी हनुमान को समझाती हैं कि यह अनुचित है। रावण ने उनका हरण कर रघुकुल का अपमान किया है। अतः लंका से उन्हें मुक्त करना श्रीरामजी का कर्त्तव्य है। विशेषतः रावण के दो माह की अवधि का श्रीरामजी को स्मरण कराने की विनती करती हैं।                            -क्रमशः