विश्व कुष्ठ दिवस विशेष…डरकर नहीं डटकर लड़ें

30 जनवरी को कुष्ठ रोग दिवस मनाया जाता है। इस बार का थीम है..कुष्ठ रोग को हराना, कलंक मिटाना, मानसिक खुशहाली को बढ़ाना रखा गया है।  इस दिवस को पूरी दुनिया में महात्मा गांधी जी की याद में मनाया जाता है। तीस जनवरी 1948 को उनका देहांत हुआ था। इस दिन की शुरुआत 1954 में फ्र ांस की एक साहित्यकार जनरलिस्ट ने की थी। यह उनका गांधीजी के लिए एक ट्रिब्यूट था। दुनिया में जनवरी के लास्ट रविवार को यह दिवस मनाया जाता है, पर भारत में यह यह 30 जनवरी को मनाया जाता है। गांधीजी कुष्ठ रोग से पीडि़त लोगों की सेवा करते थे। उनका हौसला बढ़ाते थे व उनके जीवन को सामान्य बनाने की कोशिश करते थे । गांधी जी की वजह से बहुत सारे कुष्ठ रोगी को नई जिंदगी मिली और वह अच्छी तरह से अपना जीवन व्यतीत कर पाए। गांधी जी जब अफ्रीका में काम कर रहे थे,तो वहां कुष्ठ रोगियों को वह अपने घर बुलाते, उनके जख्मों की मरहम पट्टी करते व उनके लिए अच्छे भोजन की व्यवस्था भी करते। संस्कृत के 1 विद्वान पर्चुर शास्त्री जी एजों कुष्ठ रोग से पीडि़त थे, उनको गांधी जी ने अपने आश्रम में रखा। ऐसा करके उन्होंने कुष्ठ रोग के प्रति छुआछूत और इन्फेक्शन के डर को खत्म करने का संदेश दिया। गौर रहे कि कुष्ठ रोग दुनिया की सबसे पुरानी बीमारी है । इसका ओरिजन अफ्रीका में पूर्वी अफ्रीका में माना जाता है, वहां से यह बीमारी चीन,भारत व यूरोप और पूर्वी दुनिया अमेरिका तक फैली थी । आज भी दुनिया में सबसे ज्यादा कुष्ठ रोग के रोगी भारत, इंडोनेशिया और ब्राजील में पाए जाते हैं। हालांकि कुष्ठ रोग डब्ल्यूएचओ ने 2005 में दुनिया से एलिमिनेट कर दिया है, फिर भी हर साल करीब दो लाख नए रोगी पाए जाते हैं। हिंदुस्तान में भी दिसंबर 2005 में कुष्ठ रोग का एलिमिनेशन हो चुका है, जिसका अर्थ यह है कि दस हजार पापुलेशन में एक से कम कुष्ठ रोगी होना। ऐसी स्थिति में यह एक पब्लिक हेल्थ प्रॉब्लम नहीं रहती। हिमाचल भी कुष्ठ रोग से एलिमिनेटेड है। यहां पर भी बहुत कम कुष्ठ रोगी पाए जाते हैं। फिर भी हमें इस बीमारी के बारे में जानना, इससे जुड़ी भ्रांतियों का निवारण करना अति आवश्यक है ।

कुष्ठ रोग के साथ जुड़ी भ्रांतियों कुछ ऐसी हैं

कई लोग कहते हैं कि कुष्ठ रोग पिछले जन्म के पापों की सजा है। यह सोचना बिल्कुल गलत है । असल में कुष्ठ रोग एक बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रमित रोग है। जिसका नाम माइकोबैक्टेरियम ले फ ्री है। कुछ कहते हैं कि किसी को कुष्ठ रोग हो जाए, तो वह जान गंवा बैठता है। यह मानना भी बिल्कुल गलत है। कुष्ठ रोग के बारे में एक पॉजिटिव न्यूज़ यह है कि इसका संपूर्ण इलाज है। मल्टी ड्रग थेरेपी जोकि डब्ल्यूएचओ, इंडिया से बिल्कुल फ्री मिलती है। इन दवाइयों को खाकर यह बीमारी बिल्कुल खत्म हो जाती है। खास बात यह है कि यह इलाज फ्री है। तीसरी गलत धारणा यह है कि कुष्ठ रोग बहुत ही तीव्र गति से फैलता है,यह मानना भी बिल्कुल गलत है । अगर किसी व्यक्ति को कुष्ठ रोग का विषाणु बैक्टीरिया इंफेक्शन कर दे, तो सिर्फ 5 लोगों में कुष्ठ रोग होने की चांसेस होते हैं जबकि 95: लोगों में यह बीमारी होती ही नहीं है। कुष्ठ रोग बुजुर्गों का रोग है, यह भी एक भ्रांति है। यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है और किसी को भी हो सकता है। कुष्ठ रोग के रोगी को परिवार से अलग रहना बहुत जरूरी है, यह भी एक बहुत बड़ी भ्रांति है। कुष्ठ रोगी जैसे ही ट्रीटमेंट शुरू करता है पहली डोज से ही वह दूसरों को इंफेक्शन नहीं फैला सकता ।अर्थात दूसरों को रोग नहीं फैला सकता, इसलिए वह अपने परिवार में अपने दोस्तों में के रह सकता है। कुष्ठ रोग अब है ही नही,ं कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है, जो कि एक भ्रांति है । आज भी दुनिया में प्रतिवर्ष दो लाख से अधिक कुष्ठ रोग के रोगी पाए जाते हैं। हमें इसके बारे में खुद को जागरूक करना है अपने परिवार और दोस्तों को जागरूक करना है और इस बीमारी से लडऩा है।

कुष्ठ रोग को कैसे पहचानें
कुष्ठ रोग का जो बैक्टीरिया होता है वह त्वचा और नव्र्स को इफेक्ट करता है, साथ ही साथ आंख, नाक भी प्रभावित कर सकता है। त्वचा में हल्के रंग के दाग देखने को मिलते हैं, जिन पर बाल कम हो जाते ह,ैं सूखापन आ जाता है और सुनपन आ जाता है। धीरे धीरे यह सुनपन हाथ पांव में बढ़ जाता है और व्यक्ति को छूने का पता नहीं लगता ।
गर्म ठंडे का पता नहीं चलता। इसकी वजह से उन्हें आसानी से चोट लग सकती है वह आसानी से जल सकते हैं और इसमें आसानी से अल्सर बन सकते हैं। सबसे ज्यादा खतरा किसी घर में उस कुष्ठ रोगी को है, जिसका इलाज शुरू नहीं किया गया है। अगर घर में बच्चे हैं, तो सबसे ज्यादा खतरा उन्हें होता है।

इंफेक्शन एक दूसरे से फैलता कैसे हैं
यह इंफेक्शन सांस और नाक से एक दूसरे से फैलता है। इसका बैक्टीरिया जब इनफेक्टेड पेशेंट के नाक के द्वारा बाहर एनवायरमेंट में निकलता है,तो दूसरे इंसान को नाक के द्वारा अंदर चला जाता है और उसके बाद पूरे शरीर में फैल कर शरीर के किसी भी अंग को अपनी चपेट में ले सकता है!

इस बीमारी में कुछ कॉम्प्लिकेशंसभी आती है आ सकती है।
इलाज के दौरान कुछ रिएक्शन भी होती है जिन्हें हम लेपरा रिएक्शन कहते हैं इसमें पेशेंट्स की नसों में दर्द तथा हाथ. पांव में सुनपन हो सकता है।  कुछ लोगों में इस बीमारी के साथ.साथ साइकेट्रिक बीमारियां भी लग जाती है मेंटल रूप से रोगी परेशान रह सकते हैं जिसमें कि 30 से 80: तक लोग परेशान हो सकते हैं। ध्यान रहे कि जिन लोगों को हल्की बीमारी है उसको हम पोसिबिसिलेरी इन्फेक्शन कहते हैं जिसमें त्वचा पर 5 या 5 से कम निशान या इनफैक्ट होना देखा जाता है उसका इलाज 6 महीने में पूरा हो जाता है। दूसरी बीमारी जिसको हम मल्टीबैकिलेरी इन्फेक्शन कहते हैं, उसका इलाज 12 महीने तक चलता है! उसके बाद व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है, अगर किसी व्यक्ति को लेपरा रिएक्शन हो तो उसका अलग से इलाज 3 से 6 महीने तक का चलता है। हम सही इलाज से कुष्ठ रोग से होने वाली अपंगता से बच सकते हैं।
आंखों की रोशनी को बचा सकते हैं
इसके इलाज के लिए एमडीटी मल्टी ड्रग थेरेपी बिल्कुल फ्री उपलब्ध रहती है। हम पेशेंट के फैमिली मेंबर्स को इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी देते हैं और पेशेंट का सही से ध्यान रखने के लिए कहते हैं। तो यह बीमारी अच्छी तरह से ठीक हो जाती है ।
यह जो एमडीटी इसमें यूज़ की जाती है इससे कुछ साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं जिसमें से एक दवाई जिसका नाम क्लोफाजिमिन ; है उससे त्वचा में ब्राउन कलर हो जाता है और पेशेंट परेशान हो जाते हैं जबकि हम पेशेंट को यह समझाते हैं कि उनकी त्वचा दवाई बंद होने से 6 महीने में बिल्कुल नॉर्मल हो जाएगी। कुछ लोगों में जॉन्डिस की प्रॉब्लम भी आ सकती है यह क्ंचेवदम नाम की एक दवाई से हो सकता है। तीसरी दवाई रिफैंपिन से सिन सपाम हो सकता है ।

इस बीमारी के बारे में जागरूकता बहुत जरूरी है इस बीमारी के लिए वैक्सीन का भी उपयोग किया जाता है। इससे रिएक्शन का खतरा कम हो जाता है। जिन लोगों को इस बीमारी का इलाज पूरा हो जाता है उसके बाद भी कुष्ठ रोग रोगियों को अपने हाथ पैर का ध्यान रखनाए अपनी त्वचा का ध्यान रखनाए अपनी आंख का ध्यान रखना के बारे में समझाया जाता है कि वह रोज अपने हाथ पैर अच्छी तरह से धोएं उसमें तेल की मालिश करें और कहीं जख्म है तो उनका उनका इलाज करें । गर्म चीजों को डायरेक्टली ना पकडें , बीड़ी- सिगरेट बंद करें। इन सब सावधानियों से कुष्ठ रोगी का जीवन र सामान्य हो जाता है। अगर किसी को मानसिक परेशानी है तो उसका भी इलाज मानसिक रोग विशेषज्ञ से करवाया जाता है। यह रोगी अपने परिवार के साथ अपने बच्चों के साथ ठीक से रह सकते हैं। आज के दिन विश्व कुष्ठ निवारण दिवस के अवसर पर हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम सब अपने आप भी इस बीमारी के बारे में जागरूक हों, अपने मित्रों को, अपने परिवार जनों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करें। ध्यान रहे कि कुष्ठ रोगियों की अपंगता की बजाय उनकी काबिलियत पर ध्यान दें और उनके साथ सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करें।

डा जीके वर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट आफ डर्माटोलॉजी,आईजीएमसी, शिमला