किस्सा वेलेंटाइन डे का

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

जब दिल हो हिंदुस्तानी यानी थोड़ी-सी होशियारी और थोड़ी-सी बेईमानी हो तो मैं यही तो कहूंगा कि न मिलो हमसे ज्यादा कहीं प्यार हो न जाए। यह सही भी है जो भी मुझसे ज्यादा मेलजोल बढ़ाता है मेरी गिरफ्त में आ ही जाता है। इसलिए मैं पहले ही आगाह कर देता हूं न मिलो हमसे ज्यादा। मानता हूं मेल-मिलाप बुरा नहीं है। दुनिया ही प्यार पर टिकी है। बिना प्यार के जीवन अधूरा माना गया है, लेकिन प्यार होना चाहिए नीट एंड क्लीन। किसी भी दुर्भावना को इसमें स्थान नहीं है। मैं खुद प्यार के लिए सदैव बिलबिलाता हूं। अब कोई घास नहीं डाले तो मेरा क्या कसूर। प्यार के लिए कोई सीमा व रेखा नहीं है।

 किसी भी समय और किसी भी उम्र में किया जा सकता है। मान लिया मेरी उम्र पचास है, लेकिन प्यार की मोमबत्ती अभी तक भीतर टिमटिमा रही है और अक्सर आता है तो उसकी अभिव्यक्ति का भी प्रयास हाथ-पांव बचाकर करता हूं। वेलेंटाइन डे ज्यों-ज्यों नजदीक आता है त्यों-त्यों दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं और निरंतर एक बेचैनी मेरा पीछा करती रहती है। संत वेलेंटाइन का संदेश कंठस्थ करके मैं प्यार के लिए इधर से उधर भटकता फिरता हूं। पहले जब मैं वेलेंटाइन का महत्त्व नहीं जान पाया था तब भी प्यार के लिए मन कुलांचे खा रहा था, लेकिन जबसे यह वेलेंटाइन डे जीवन में आया है और जबसे मैंने इसका महत्त्व जाना है, तब से तो मन के जैसे पंख लग गए हैं। चौदह फरवरी को कभी आप मुझे देखेंगे तो स्वयं दंग रह जाएंगे। सुबह से सजना-संवरना, इत्र-फुलेल और होंठो पर मुस्कान चिपकाए मैं दौड़ धूप करता नजर आता हूं। वेलेंटाइन डे का संदेश अखबारों में देता हूं किसी अनाम प्रेमीजन के लिए। कई बार सोचता हूं कि ऐसे कब तक चलेगा।

 यह सारे उपक्रम किसके लिए। पत्नी तो घर की मुर्गी है और दाल हो गई है और दूसरी जगह दाल गल नहीं रही। जरा सोचिए मेरी हालत वेलेंटाइन डे को क्या हुआ करती होगी। प्रेम की सबसे बड़ी बाधा पत्नी है, कई बार लगता है, लेकिन उसके साथ ही कई बार लगता है कि न मामा से एक आंख वाला मामा ही अच्छा-इस उक्ति के आधार पर प्रेम की पात्र इस दिन पत्नी बन जाती है। किसी जमाने में मैंने भी प्यारसा किया था। किया क्या था, हो गया था। सदैव किसी के क्या, वह उसी के उसी के ख्यालों में खोए रहना, भूख-प्यास एकदम नदारद। हालत यह कि देवदास बनकर मुंह फुलाए घूमने लगा तो पत्नी ने नब्ज पकड़ ली और वह बोली-‘जब जागे वहीं सवेरा। सुबह का भूला शाम को भी घर आ जाता है तो भूला नहीं माना जाता। लौट आओ अपने दड़बे में। क्यों खामख्वाह स्वास्थ्य चौपट करते हो। दूर के ढोल सुहाने लगते हैं और दूसरे की थाली में सदैव घी ज्यादा दिखाई देता है। घर में जैसी भी रूखी-सूखी मिल रही है, उसे उपहार समझ कर स्वीकार करो।’