कैसे थमेगा यह कोरोना विस्तार?

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण की बुनियादी वजह गलतफहमी और आम लापरवाही है। चूंकि देश में संक्रमण सिकुड़ रहा था। संक्रमित मरीजों और मौतों की संख्या घट रही थी। अस्पतालों में कोविड बिस्तर खाली पड़े थे और उपचाराधीन मरीजों की संख्या 10 लाख से घटकर करीब 1.47 लाख तक लुढ़क आई थी, लिहाजा आम सोच पुख्ता होने लगी कि कोरोना का अवसान हो रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और जिम्मेदार चिकित्सक आगाह करते रहे, लेकिन सार्वजनिक तौर पर भीड़ जमा होने लगी, दो गज की दूरी बेमानी हो गई और चेहरों से रहे-सहे मास्क भी खिसकने लगे। यही लापरवाही थी और गलतफहमी भी थी, लिहाजा ‘वार्निंग सिग्नल’ साबित हुआ। अमरीका और यूरोपीय देश आज तक इस गलतफहमी को झेल रहे हैं। कई देशों में दोबारा लॉकडाउन लागू करने पड़े हैं। फिर भी संक्रमण और मौतों का सिलसिला जारी है। भारत में भी लापरवाही के नतीजे भयानक होते जा रहे हैं।

 करीब 86 फीसदी संक्रमित मामले महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात राज्यों में ही दर्ज किए गए हैं। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा आदि में भी संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। करीब 82 फीसदी मौतें सिर्फ  पांच राज्यों में ही हुई हैं। मौत का राष्ट्रीय औसत अब भी 1.42 फीसदी है। कोरोना को पराजित कर घर लौटने वालों की दर भी 97 फीसदी से अधिक है। संक्रमण की दर भी 1.33 फीसदी है। आंकड़े और औसत राहत देने वाले हैं, लेकिन सबसे बड़ी चिंता महाराष्ट्र से थी और मौजूदा हालात में भी है, जहां वासिम जिले के एक स्कूल में 229 छात्र एक साथ संक्रमित पाए गए हैं। राज्य में संक्रमण की रफ्तार 132 फीसदी से बढ़ रही है। बुधवार को अकेले महाराष्ट्र से एक ही दिन में 8800 से ज्यादा संक्रमित मरीज सामने आए। बीते 24 घंटों में देश भर में कोरोना से 104 मौतें हुई हैं, जबकि महाराष्ट्र में ही 51 मौतें दर्ज की गईं। अर्थात करीब 50 फीसदी…! चिकित्सक कोरोना संक्रमण के इस विस्तार को नैसर्गिक प्रक्रिया मानते हैं। यह वायरस के अस्तित्व का सवाल है। प्रख्यात चिकित्सकों का मानना है कि कोरोना एक भयानक, बहरूपिया और शातिर  वायरस है, जो मानव-देह में घुसने के बाद हजारों-लाखों विषाणुओं को फैलाता है। वे मरते हैं, लेकिन फिर भी सक्रिय रहते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में 7000 से अधिक कोरोना वायरस की नस्लें पैदा हो चुकी हैं, लिहाजा साउथ अफ्रीका और ब्राजील के नए प्रकार ही इतना बड़ा खतरा नहीं हैं। कोरोना का खात्मा इतना आसान नहीं है। अब जो संक्रमण फैल रहा है, वह कितना भयानक साबित होगा, फिलहाल उस पर अध्ययन किए जा रहे हैं। कोरोना का नया विस्तार सरकारों के लिए चिंता का नया सबब है। प्रधानमंत्री दफ्तर ने शीर्ष नौकरशाहों के साथ आपात बैठक की। उसी के बाद केंद्रीय टीमें 10 राज्यों में भेजी जा रही हैं।

 वे आकलन करेंगी कि प्रभावित राज्यों में नए सिरे से कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण क्या हैं और इन स्थितियों पर कैसे काबू पाया जा सकता है? आखिर यह संक्रमण कैसे थम सकेगा? इसी संदर्भ में टीकाकरण की गति को तेज करने के लिए अब निजी क्षेत्र को भी जोड़ने का फैसला किया गया है। फिलहाल देश में कोरोना टीकाकरण की औसत गति 0.8 फीसदी ही है। हम कई देशों से पिछड़े हैं। बहरहाल अब एक मार्च से 50-60 साल और उससे ज्यादा उम्र के आम नागरिकों को टीका देने का अभियान शुरू हो रहा है। उसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी भी है। टीका हमारे लिए ‘संजीवनी’ समान है। यह अनुभव दुनिया के कई देश कर चुके हैं। यदि टीका लगेगा, तो मानव-देह में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनने लगेगी। उसका भी वक्त तय है, लेकिन इलाज की शुरुआत तो होनी चाहिए। टीका लेने से परहेज या संकोच क्यों सामने आ रहे हैं? यह विष का इंजेक्शन नहीं है। हम चेचक, खसरा, हेपेटाइटिस, पोलियो आदि की रोकथाम के लिए टीके लेते रहे हैं। सिलसिले अब भी जारी हैं, लेकिन यह वयस्क टीकाकरण का हमारा पहला प्रयोग है, लिहाजा चुनौतीपूर्ण भी है। कोरोना टीकों का उत्पादन भारत में ही हो रहा है। आगामी तीन-चार महीनों में कुछ और टीके हमारे सामने उपलब्ध होंगे। फिलहाल यह टीकाकरण और मास्क पहनने की अनिवार्यता ही हमें कोरोना के नए हमले से बचा सकती है।