कोरोना रोकना है तो…!

अस्पताल प्रवास के दौरान चिकित्सकों से संवाद जारी रहा, तो उनका साफ मत सामने आया कि कोविड-19 के संक्रमण और उसके विस्तार पर लगाम कसनी है, तो चुनावी रैलियों पर रोक लगानी होगी। भीड़ भरे बाज़ारों को नियमित करना होगा। ऋषिकेश-हरिद्वार के ताज होटल में 82 संक्रमित मरीज सामने आए हैं, लिहाजा होटल बंद करना पड़ा है। न जाने संक्रमण कहां-कहां तक पहुंच गया होगा! कुंभ आस्थाओं, दैवीय स्नान और रस्मो-रिवाज़ का आध्यात्मिक आयोजन है, लेकिन मास्क और दो गज की दूरी के कोविड प्रोटोकॉल वहां भी लागू किए जा सकते हैं। कोई आध्यात्मिक चमत्कार कोरोना से नहीं बचा सकता, बेशक व्यक्ति किसी भी मुग़ालते में रहे। डॉक्टर यहां तक कहते रहे कि संक्रमण की मार और उसके प्रवाह को रोकने में प्रधानमंत्री मोदी ही सबसे अग्रिम पहल कर सकते हैं। उन्होंने विश्व और राष्ट्रीय स्तर की कई बैठकों और सम्मेलनों को ‘वर्चुअल’ आधार पर संबोधित किया है। उनका महत्त्व भी कमतर नहीं आंका जा सकता। चुनावी जनसभाओं, कुछ को छोड़ कर, को भी इसी तरह संबोधित किया जा सकता है। पांच राज्यों में चुनाव 30 अप्रैल तक चलेंगे।

 फिर दो मई को जनादेश और उसके बाद की गहमागहमी…! हरेक मौका भीड़वाला होगा। दरअसल सबसे ज्यादा चिंता वोट की है, वोट ही प्रिय है, क्योंकि उसी से सत्ता जुड़ी है। यदि प्रधानमंत्री ऐसी पहल करना व्यावहारिक नहीं मानते, तो कमोबेश कोरोना वायरस के संदर्भ में राष्ट्रीय अपील और आह्वान करना ही छोड़ दें-दवाई भी, कड़ाई भी। मास्क पहनना और दो गज की दूरी बहुत जरूरी..!! अब ये बेमानी लगने लगे हैं, क्योंकि अधिकांश जनता इन प्रोटोकॉल का महत्त्व ही नहीं जानती। उसे कोविड-19 के संक्रमण के कारणों की भी सम्यक जानकारी नहीं है, क्योंकि आम आदमी ने इस वैश्विक महामारी पर प्रख्यात वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और शोधार्थियों के निरंतर अध्ययन और आकलन को पढ़ा-सुना ही नहीं है। जिंदगी ने इतनी मोहलत और वक्त भी उसे नहीं दिया है। बीमारी, लॉकडाउन, बेरोजगारी, गरीबी, भूख, अवसाद और मौत ने आम आदमी को तोड़ दिया है। अस्पतालों में जीवन-दान नहीं है। वे क्रूर और निर्दयी हैं। आदमी ‘भेड़-बकरी’ की तरह है। मौत के आंकड़े गिने जा रहे हैं। यदि यह विद्रूप सच जानना है, तो प्रधानमंत्री अपना स्वरूप बदल कर छापे मारें। वैसे करीब 50 साल के सार्वजनिक जीवन में रहने के बाद प्रधानमंत्री यह ‘काला सच’ जरूर जानते होंगे! फिर भी हमारा आग्रह है। बहरहाल मौजूदा संदर्भ में भी डॉक्टरों ने चेताया है कि कोविड की छोटी-बड़ी लहरें 2021 में ही नहीं, बल्कि 2022-23 के सालों में भी कहर बरपाती रहेंगी। महामारी की लहर कभी तेज होकर बढ़ेगी, तो कभी कम होकर शांत होने का आभास कराएगी। यह कोरोना वायरस की नैसर्गिक प्रक्रिया है।

 हालांकि प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय उद्योगपति एवं सामाजिक उत्थान के लिए सक्रिय बिल गेट्स ने किन्हीं रपटों के आधार पर आकलन पेश किया है कि 2022 के अंत तक कोविड-19 की स्थिति का सही मूल्यांकन किया जा सकेगा, लेकिन हमारे पेशेवर, अनुभवी डॉक्टरों का व्यावहारिक निष्कर्ष है कि कोविड हमारी जिंदगी के साथ रहेगा। एक समय और सीमा के बाद हम कोरोना वायरस को भी ‘मौसमी बुखार’ या ‘इनफ्लूएंजा’ आदि करार देने लगेंगे। पुरानी महामारियों की तरह कोरोना की भयावहता भी कम होती जाएगी। इलाज बाज़ार में ‘मुक्त’ होगा। टीकाकरण हो चुका होगा अथवा अभियान जारी रहेगा, लेकिन अब यह वायरस अपने अलग-अलग प्रकारों के साथ मौजूद रहेगा। संक्रमण के जो आंकड़े हररोज़ सामने आ रहे हैं, वे 50 फीसदी से ज्यादा उस हद को छू चुके हैं, जब बीती सितंबर में देश ने एक ही दिन में 97,000 संक्रमित मरीज दर्ज किए थे। सक्रिय मरीज 10 लाख को पार कर चुके थे। अब 6 लाख तक पहुंचने की नौबत तो आ चुकी है। बेशक अभी मौतों की दर बीते अनुपात में कम है, लेकिन अभी तक इसकी थाह नहीं मिल पाई है कि आखिर महाराष्ट्र में इतना खौफनाक मंजर क्यों है? टीके की 6 करोड़ से ज्यादा खुराकें दी जा चुकी हैं। यह कोई ‘राम-बाण’ नहीं है, एक संजीवनी-सी औषधि है। उसे ग्रहण करने तक तो संक्रमण का आंकड़ा दो करोड़ को भी छू सकता है!