विजया एकादशी व्रतः विजय की प्राप्ति में सहायक

विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु श्रीराम ने भी इस व्रत को धारण करके अपनी विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक व्रत से संबंधित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरूप ही फल देती हैं।

पौराणिक महत्त्व

एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है, कृपा करके आप मुझे बताइए।’ श्री भगवान बोले, ‘हे राजन, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं।’

पूजा विधि

विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्न दान और गौ दान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। व्रत पूजन में धूप, दीप, नैवेध, नारियल का प्रयोग किया जाता है। विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है। सात धान्यों में गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर हैं। इसके ऊपर विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए। व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए। एकादशी व्रत 24 घंटों के लिए किया जाता है। व्रत का समापन द्वादशी तिथि के प्रातःकाल में अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान करके किया जाता है। यह व्रत करने से दुःख दूरे होते हैं। अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है।