डबल म्यूटेंट का संक्रमण

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 55 घंटे का वीकेंड कर्फ्यू लगाया गया है। राजस्थान में भी यही निर्णय लिया गया है। नाइट कर्फ्यू पहले से ही जारी है। कर्फ्यू की अवधि को छोड़ कर शेष दिन खुले रहेंगे, क्योंकि आम आदमी की आजीविका और कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था की चिंता भी अहम सवाल है। आम दिनों में मॉल, जिम, स्पा, थियेटर, ऑडिटोरियम, खेल परिसर और पार्क आदि भी 30 अप्रैल तक बंद रहेंगे। इनसे आर्थिकी पर सीमित असर पड़ेगा। इसके अलावा, दिल्ली मेट्रो, बसें, ऑटो, टैक्सी, फैक्ट्रियां और अंतरराज्यीय परिवहन जारी रहेंगे, जो देशभर के लॉकडाउन के दौरान बंद रखे गए थे। रेस्तरां और क्लब भी पूरी तरह बंद रखे गए थे। यानी व्यापक स्तर पर तालाबंदी की गई थी। हालांकि तब कोरोना संक्रमण की मार इतनी भयावह नहीं थी, जितनी इस बार तमाम हदें पार करती जा रही है। इस 55 घंटे के कर्फ्यू का, कोरोना वायरस के फैलाव को लेकर, कितना असर होगा, उसका विश्लेषण मंगलवार या बाद के दिनों में किया जा सकता है, लेकिन हम एक बार फिर दोहरा दें कि ऐसी अल्पकालिक पाबंदियां कोरोना संक्रमण का उपचार साबित नहीं हो सकतीं।

 वायरस की गति को थामने या तोड़ने का विचार भी एक भ्रम है, ऐसा कई विशेषज्ञों का मानना है। खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तालाबंदी अथवा पाबंदियों के खिलाफ  रहे हैं, फिर भी उन्हें दिल्ली में ‘संक्षिप्त कर्फ्यू’ लगाना पड़ा है। यह प्रशासनिक विवशता हो सकती है। महाराष्ट्र में भी धारा 144 तो 24 घंटे के लिए लागू है और तालाबंदी-सी पाबंदियां लगाई गई हैं, लेकिन ‘जरूरी काम’ की परिभाषा आम नागरिक के जिम्मे छोड़ दी गई है, लिहाजा सड़कों पर यातायात के जाम अब भी दिख रहे हैं। सब्जी मंडी और दूसरे स्थानों पर भीड़ बेलगाम है। लोग टहल भी रहे हैं। इस देश का क्या होगा? नागरिक महामारी के दंश को समझने को तैयार क्यों नहीं हैं? महाराष्ट्र में संक्रमण के रोज़ाना आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। देश भर में संक्रमितों की संख्या 2.17 लाख हो गई है और मौतें 1185 तक पहुंच गई हैं। ये सिर्फ  एक दिन के आंकड़े हैं। लॉकडाउन का मुद्दा दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने भी उठाया, जब स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने एम्स का दौरा किया और डॉक्टरों की समस्याएं सुनीं। कोविड डॉक्टरों को भी चपेट में ले रहा है, लिहाजा कई डॉक्टर भी बीमार हैं। नतीजतन एम्स में भी डॉक्टरों की कमी हुई है। बहरहाल विशेषज्ञ डॉक्टरों ने कहा है कि यदि तालाबंदी या घरबंदी जैसी पाबंदियां लगानी हैं, तो कमोबेश 15 दिनों के लिए अथवा कुल 1.5 माह के लिए लगानी चाहिए। उसी से संक्रमण की चेन तोड़ना संभव है।

 अच्छी बात यह है कि दिल्ली या ज्यादातर राज्यों में ऑक्सीजन की कमी नहीं है। वैसे भी भारत सरकार ने 50,000 टन ऑक्सीजन आयात करना तय किया है। 100 नए अस्पतालों में ऑक्सीजन के प्लांट लगाए जाएंगे और उसका खर्च पीएम केयर फंड उठाएगा। इसके अलावा, महाराष्ट्र को भी ऑक्सीजन के लिए हवाई सेवा की अनुमति केंद्र सरकार ने दे दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन मॉडल पर संक्रमण की गति थामी जा सकती है, लेकिन इस बार ‘डबल म्यूटेंट’ ने इनसानों पर प्रहार किया है। पिछली लहर के संक्रमण की तुलना में इसकी गति तीन गुना है। नया खतरनाक रुझान है कि यह वायरस बच्चों  और युवाओं में ज्यादा मार कर रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक, मार्च में 10 साल या कम उम्र के 50,000 से ज्यादा बच्चे संक्रमित हुए हैं। यह ऐसा म्यूटेंट है कि जो संक्रमित हो चुके हैं, वे दोबारा भी संक्रमित हो रहे हैं। यह ‘डबल म्यूटेंट’ किस-किस वायरस का मिश्रण है। क्या इसमें ब्रिटेन नस्ल ही है अथवा साउथ अफ्रीका और ब्राजील के कोरोना प्रकार भी शामिल हैं। वायरस का केरल स्टे्रन भी सामने आया है। बहरहाल इतना तय है कि इस बार का वायरस, पहले की तुलना में, बहुत घातक और संक्रामक है। इसका समाधान तालाबंदी या घरबंदी नहीं हो सकता। ब्रिटेन मॉडल के मुताबिक, आक्रामक टीकाकरण और सख्त कंटेनमेंट बेहद जरूरी है। दोनों ही मामलों में हम फिलहाल पिछड़े हैं। इस बीच ख़बर आई है कि हरिद्वार कुंभ में विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों ने 17 अप्रैल को मेला समाप्त कर अपने-अपने स्थानों पर लौटने का फैसला लिया है। यदि यह होता है और दूसरे अनावश्यक जमावड़ों पर भी अंकुश लग जाता है, तो कमोबेश संक्रमण फैलने की संभावनाएं बहुत कम हो सकती हैं।