भरमौर के प्रसिद्द मंदिर

हिमाचल प्रदेश के कई प्राचीन स्थलों में से एक है चंबा जिले का भरमौर। चंबा से करीब 62 किमी. दूर स्थित इस जनजातीय क्षेत्र में यूं तो जनजीवन सामान्य है, लेकिन दिसंबर-जनवरी में बर्फबारी के दौरान यहां की जिंदगी मानो ठहर सी जाती है और मौसम के करवट लेते ही फिर रौनक बढ़ती चली जाती है। खासकर अगस्त-सितंबर में तो यहां का नजारा देखते ही बनता है, जब मणिमहेश यात्रा शुरू होती है। मई-जून की तपती गर्मी में भी देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं। दोनों ओर से पहाडि़यों से घिरे भरमौर कस्बे का प्राकृतिक नजारा देखते ही हर कोई भाव-विभोर हो उठता है।

चौरासी मंदिर- भरमौर की खासियत यहां स्थापित चौरासी मंदिर हैं। इस स्थान को पहले ब्रह्मपुर कहा जाता था। मेरूवर्मन भरमौर का सबसे शक्तिशाली राजा था। मेरूवर्मन ने भरमौर में मणिमहेश मंदिर, लक्षणा देवी मंदिर, नरसिंह और गणेश मंदिर का निर्माण करवाया। इसके अलावा छतराड़ी में भी शक्ति देवी के मंदिर का निर्माण करवाया। चौरासी मंदिर परिसर में ही धर्मराज का मंदिर भी है। संसार में यह इकलौता मंदिर है, जो धर्मराज को समर्पित है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। कहा जाता है कि चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं, जो जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चौरासी मंदिर भरमौर शहर के केंद्र में स्थित है। चौरासी मंदिर परिसर में 84 बड़े और छोटे मंदिर हैं।

हड़सर का गौरी-शंकर मंदिर- भरमौर से करीब 13 किमी. दूर मणिमहेश यात्रा के आरंभिक पड़ाव हड़सर पर गौरी-शंकर मंदिर है। मणिमहेश यात्रा के दौरान तो सुबह से शाम तक मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है और अधिकांश श्रद्धालु गौरी-शंकर मंदिर में माथा टेकने के बाद ही अपनी यात्रा शुरू करते हैं। इसके साथ ही हड़सर गांव के पुजारी ही मणिमहेश स्थित गौरी कुंड और शिव कुंड में पूजा-अर्चना के लिए बैठते हैं और श्रद्धालुओं में प्रसाद आदि बांटते हैं। गांव के एक छोर पर हनुमान और दूसरे छोर पर पूर्व की ओर चोली माता का मंदिर भी है।

भरमाणी देवी मंदिर- भरमौर से 5 किमी. की दूरी पर स्थित है भरमाणी मंदिर। मणिमहेश यात्रा के दौरान यहां काफी भीड़ रहती है। लोग यहां बने कुंड में स्नान करते हैं, जिसका पानी गर्मियों में भी लोगों को कंपकंपा देता है। यह भी मान्यता है कि मणिमहेश यात्रा से पूर्व मां भरमाणी के दर्शन करना अनिवार्य है, अन्यथा यात्रा संपूर्ण नहीं हो पाती।

कार्तिक स्वामी मंदिर- जैविक गांव कुगती से करीब 5 किमी. दूर स्थित है कार्तिक स्वामी का मंदिर। यूं तो यह मंदिर नवंबर-दिसंबर में बर्फबारी के बाद बंद रहता है और परंपरा के अनुसार इसके कपाट हर साल बैसाखी के दिन 13 या 14 अप्रैल को संक्रांति के दिन खोले जाते हैं। मंदिर से करीब 500 मीटर की दूरी पर देवी मराली का मंदिर है। यहां पर लोग मन्नत पूरी होने पर त्रिशूल व कड़ाह आदि चढ़ाते हैं।