जीवन की संभाल

बाबा हरदेव

महापुरुष हर पल अपने जीवन में साधसंगत को महत्ता देते है। कोई भी मौका हो, आपके लिए सबसे पहले साधसंगत का सहारा है। साधसंगत का मिलाप ही है जो जीवन की नैया को डोलने से बचाता है। निरंतर गुरमुख इस साधसंगत की अपने मन में  कद्र बना कर रखते हैं। कद्र वही जान सकता है, जिसको इस चीज की कीमत का पता हो। जिसको कीमत का पता नहीं वे कद्र भी नहीं कर सकता। आप महापुरषों को इसकी कद्र है इसलिए आप इसकी कीमत भी जानते हैं। इसीलिए कहीं पर भी साधसंगत हो, आप भाग-भाग कर उसमें अपना पूरा योगदान देते हैं। यही संतों का कर्म हुआ करता है। कुछ लोग कहते हैं कि अब ज्ञान तो हो ही गया है, रोज-रोज सत्संग की क्या जरूरत है? लेकिन वे ऐसा क्यों नहीं सोचते कि दो दिन पहले तो मैं नहाया था आज मुझे क्यों नहाना है। जीवन में जितने भी सुख साधन, जितनी भी स्वच्छता है, उसके लिए हम किसी को नहीं कहते कि अभी तो किया है, थोड़े दिनों के बाद कर लूंगा। हम जानते हैं कि भोजन अगर नहीं किया तो यह तन निर्बल होना शुरू हो जाएगा, कमजोर पड़ जाएगा। अगर हम नहीं नहाते तो शरीर से बदबू आना शुरू हो जाएगी, इस गंदगी के कारण शरीर को रोग लग सकता है। इसी तरह मन को अगर निर्मल करना है, तो साधसंगत का सहारा, गुरमुख, महापुरुष का सहारा लेना पड़ता है। संतों की संगति प्राप्त करके ही मन निर्मल होता है और एक सहज अवस्था भी प्राप्त हो जाती है। साधसंगत की महत्ता तभी है, जब मन से विनम्र बन के संगत की जाती है।

 ऐसी भावना से साधसंगत करके ही हमें गुण प्राप्त होते हैं, विश्वास प्राप्त होता है। अगर कहीं पर भी अभिमानी हो जाएं, हम अपने आपको संपूर्ण मान बैठें, तो सीखने की भावना समाप्त हो जाती है। जहां पर यह मान लिया कि मैं तो पूर्ण हो गया हूं, वहां पर रुकावट आ जाती है, आगे बढ़ने के अवसर समाप्त हो जाते हैं और उसके बाद इनसान का पतन शुरू हो जाता है। संगत के बिना कभी इस मन को विवेक नहीं मिल सकता। यह विवेक बुद्धि नहीं बन सकती है,यह मन इस प्रभु के साथ जुड़ नहीं सकता। यह हमेशा डुलायमान रहेगा और संसार की तरफ  भाग खड़ा होगा। इस मन को इस आधार के साथ जब मनुष्य जोड़ देता है, तो हमेशा उसके जीवन में एक सहज अवस्था बनी रहती है। उसका एक सरल जीवन बना रहता है। वह उस केंद्र पर अपना निश्चय पूरा करके हमेशा आगे से आगे बढ़ता जाता है। कहने का भाव यही है कि महापुरुषों की संगत ही यह रंगत लाया करती है। यही हमारे जीवन को ऊंचा करने वाली होती है। यही हमारे मन को इस सत्य की तरफ  जोड़ती है और मिथ्या से दूर ले जाती है।  ऐसी संगत जिसको भी प्राप्त हो जाती है, उसके जीवन में निखार आ जाता है। उसके जीवन में सहज अवस्था स्वाभाविक रूप से प्रवेश कर जाती है।