जानें महाशक्ति की साधनाएं

श्मशान में जाकर साधना करने का अभिप्राय भी यही है। यदि मन सांसारिक माया-मोह से एकबारगी हट जाए तो दूसरी ओर लग जाता है। यदि साधक को श्मशान उपलब्ध न हो सके तो किसी शिव मंदिर या काली मंदिर में जाकर साधना कर सकता है। यदि यह भी संभव न हो सके तो पहले दिन श्मशान में जाकर साधना का शुभारंभ करके, बाद की साधना घर में भी की जा सकती है…

-गतांक से आगे…

जिस प्रकार भोजनोपरांत पेट भर जाने पर भोजन से उपराम हो जाता है, मैथुन के बाद उस कर्म से तबीयत हट जाती है और श्मशान में किसी दाहकर्म में जाने के बाद संसार से वैराग्य हो जाता है, यह मति या बुद्धि थोड़ी देर के लिए होती है, उसी प्रकार की बुद्धि सदा बनी रहे तो यह नर साक्षात नारायण हो जाए। श्मशान में जाकर साधना करने का अभिप्राय भी यही है। यदि मन सांसारिक माया-मोह से एकबारगी हट जाए तो दूसरी ओर लग जाता है। यदि साधक को श्मशान उपलब्ध न हो सके तो किसी शिव मंदिर या काली मंदिर में जाकर साधना कर सकता है।

यदि यह भी संभव न हो सके तो पहले दिन श्मशान में जाकर साधना का शुभारंभ करके, बाद की साधना घर में भी की जा सकती है। साधना कहीं भी की जाए, इसका सर्वोत्तम समय रात्रि बारह बजे से लेकर तीन बजे तक है। घर पर साधना के समय काली जी का चित्र या मूर्ति सामने रख लेनी चाहिए तथा उसी के सम्मुख लाल रंग के पवित्रासन पर, पूरब या उत्तर की ओर बैठकर साधना करनी चाहिए। काली का चित्र या मूर्ति दक्षिण दिशा की ओर रहनी चाहिए। भगवती काली की साधना विधि इस प्रकार है ः

विनियोग

ओउम अस्य श्रीआद्याकाली मंत्रस्य ब्रह्मऋषये ऋषयो गायत्र्यादीनिच्छंदांसि श्रीआद्याकाली देवता क्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः श्रीं कीलकं मम श्रीआद्याकाली कृपाप्रसादसिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

ओउम ब्रह्मर्षिभ्य ऋषिभ्यों नमः (शिरसि)। ओउम गायत्र्याच्छंदेभ्यो नमः (मुखे)। ओउम श्रीआद्याकाली देवतायै नमः (हृदये)। ओउम क्रीं बीजाय नमः (गुह्ये)। ओउम ह्रीं शक्तये नमः (पादयो)। ओउम श्रीं कीलकाय नमः (नाभौ)। ओउम विनियोगाय नमः (सर्वांगे)।

कर-हृदयादिन्यास

ओउम ह्रां (अंगुष्ठाभ्यां नमः, हृदयाय नमः)। ओउम ह्रीं (तर्जनीभ्यां नमः, शिरसे स्वाहा)। ओउम ह्रूं (मध्यमाभ्यां नमः, शिखायै वषट्)। ओउम ह्रैं (अनामिकाभ्यां नमः, कवचाय हुम्)। ओउम ह्रौं (कनिष्ठिकाभ्यां नमः, नेत्रत्रयाय वौषट्)। ओउम ह्रः (करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः, अस्त्राय फट्)।

ध्यान

मेघांगी शशिशेखरां त्रिनयनां रक्ताम्बरं बिभ्रतीं,

पाणिभ्यामभयं वरंच विलसद् रक्तारविंद स्थिताम्।

नृत्यन्तं पुरतो निपीय मधुरं माध्वीकमध्यं महाकाल,

वी यविकासिताननवरामाद्यां भजे महाकालं।।        

(साधना की इस शृंखला में आगामी अंकों में हम आपको विभिन्न देवी-देवताओं की साधना पद्धति से अवगत कराएंगे। आप हमारी मैगजीन ‘आस्था’ से निरंतर जुड़े रहें।)