तीसरी लहर भी संभव!

प्रख्यात मेडिकल शोध-पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने एक विश्लेषण प्रकाशित किया है, जिसका निष्कर्ष है कि कोविड-19 का संक्रमण हवा के जरिए तेजी से फैलता है और दूर तक संक्रमित कर सकता है। बूंदों (डॉपलेट्स) से उतनी तेजी से संक्रमण नहीं फैलता। उस थ्योरी को खारिज कर दिया गया है। ‘लैंसेट’ का विश्लेषण ब्रिटेन, कनाडा और अमरीका के छह विशेषज्ञों ने किया है। ऐसा ही शोधात्मक अध्ययन जुलाई, 2020 में 200 से अधिक विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को लिखकर भेजा था कि कोरोना संक्रमण हवा से भी फैलता है। सांस लेने और छोड़ने के जरिए वायरस एक से दूसरे मानव-शरीर में प्रवेश करते हैं। संक्रमण हवा से नहीं फैलता, इस थ्योरी के पक्ष में ठोस सबूत नहीं हैं। बहरहाल हालिया विश्लेषण में दावा किया गया है कि ऐसे संक्रमण के ठोस सबूत उपलब्ध हैं। ‘लैंसेट’ में भारत में व्यापक रूप से फैल रहे कोरोना संक्रमण की बुनियादी वजह भी हवा बताई गई है। रपट में कहा गया है कि 10 से ज्यादा लोग एक स्थान पर लंबी देर के लिए इकट्ठा न हों। यानी मेले, रैलियां, चुनाव, बंद कमरों में बसने की मजबूरी आदि ऐसे बुनियादी कारण हैं, जो संक्रमण फैला रहे हैं। रपट में चेतावनी दी गई है कि कमोबेश 2 महीने तक भीड़ और जमावड़ों से एहतियात बरतें। जिन इलाकों में संक्रमण के ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं, उन पर ही कड़ी बंदिशें लगाई जाएं।

 पूर्ण लॉकडाउन की जरूरत नहीं है। ‘द लैंसेट’ की रपट प्रकाशित होने के बाद प्रमुख चिकित्सकों और वैज्ञानिकों की टिप्पणियों का सार यह है कि भारत में कोरोना संक्रमण की मौजूदा लहर अभी लंबी चलेगी। इसका ढलान कब शुरू होगा, फिलहाल अनुमान लगाना असंभव-सा है, लेकिन संक्रमण की तीसरी लहर भी आएगी और इतनी ही भयावह हो सकती है। फिलहाल भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या 2.60 लाख से ज्यादा और मौतें करीब 1500 हो चुकी हैं। मौतें सितंबर, 2020 के पिछले ‘चरम’ से भी बेहद ज्यादा हैं, लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों का मानना है कि ये आंकड़े 14 दिन पहले के संक्रमण के हैं, लिहाजा नई संक्रमित संख्या इससे काफी अधिक है। गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर एम. वली का मानना है कि रोज़ाना संक्रमण के आंकड़े 3 लाख ही नहीं, बल्कि 4 लाख को भी पार कर सकते हैं। आने वाले दिनों में हररोज़ मौतों की संख्या 2500 से अधिक होगी। ‘लैंसेट’ रपट के एक और भाग में खुलासा किया गया है कि कोरोना संक्रमण नवजात शिशुओं को भी घेर रहा है। इसका विश्लेषण हम अलग से करेंगे, लेकिन यह बेहद गंभीर मुद्दा बनकर सामने आया है। इन हालात में किसी भी देश का स्वास्थ्य ढांचा और व्यवस्थाएं ध्वस्त हो सकती हैं। हालांकि भारत में कहीं-कहीं व्यवस्था चरमरा जरूर रही है। फोर्टिस अस्पताल के निदेशक डा. कौशल कांत के मुताबिक, देश भर के 284 कोविड अस्पतालों, केयर सेंटर्स और क्वारंटीन केंद्रों में कोविड के कुल बिस्तर 20 लाख से भी कम हैं। उनमें से करीब 5 लाख आईसीयू बेड हैं। बेशक होटलों और अन्य स्थानों को अस्पतालों से जोड़ लें, लेकिन बुनियादी सवाल है कि क्या देश की करीब 139 करोड़ आबादी के लिए बिस्तरों की यह संख्या पर्याप्त है? यह नहीं हो सकता, लिहाजा आम आदमी बीमारी और महामारी में तड़प-तड़प कर मर रहा है। राजधानी दिल्ली के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में एक ही बिस्तर पर कोविड के दो मरीज लिटाने की विवशता है।

 देश के नेताओं, अमीर लोगों और वीआईपी जमात को कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि उनके लिए बिस्तर खाली और आरक्षित रखे जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान देश भर में जो लॉकडाउन लगाया गया था, उसके दौरान सरकार और निजी क्षेत्र के स्तर पर, स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की, कोशिश नहीं की गई। हम पीपीई किट्स, वेंटिलेटर और मास्क के क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हुए। हमने कोरोना के दो टीके बनाने और उनके उत्पादन में कामयाबी हासिल की और करीब 12 करोड़ नागरिकों को टीके की खुराकें भी दी जा चुकी हैं। लेकिन इन कोशिशों के बावजूद कई विसंगतियां सामने आई हैं। सिर्फ वेंटिलेटर की ही बात करें, तो 50,000 वेंटिलेटर बनाने के ऑर्डर ज्यादातर उन कंपनियों को दिए गए, जिनके पास बुनियादी ढांचा ही नहीं था। इस तरह देश में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा मजबूत कैसे किया जा सकता है? यदि तह तक जाएं, तो वेंटिलेटर के सौदों में बड़ा घोटाला भी सामने आ सकता है! बहरहाल जब कोरोना का फैलाव भयावह स्थिति तक आ चुका है, जब भारत सरकार ने 50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने का निर्णय लिया है। यह ऑक्सीजन कब उपलब्ध होगी, क्योंकि मरीज तो आज कुलबुला रहे हैं? यदि इन हालात में ही कोरोना की तीसरी लहर भी प्रहार करती है, तो क्या होगा, सोचकर ही सिहरन होने लगती है।