बेटे के लिए बहू की तलाश

हमारे सुपुत्र बरखुरदार चिरंजीत कुलभूषण उर्फ बंटी साहब सरकार से कहां कम हैं? जो लक्ष्य सरकार एक पंचवर्षीय योजना में नहीं प्राप्त कर पाती है, भला वे क्यों पांच वर्ष में दसवीं कक्षा पास कर लेते। फख्र का विषय तो यह है कि वे इस बार छठी बार परीक्षा देने के बाद भी वही फेल होने का खिताब ले सके हैं। मेरे विचार से अब माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को मेरे ऊपर रहम खाकर मेरे सुपुत्र को दसवीं कक्षा पास का मानद प्रमाण-पत्र बख्श देना चाहिए। बंटी साहब को तो भला क्या चिंता? खाना-पीना, घूमना-फिरना तथा फैशनेबुल कपड़ों में सज-संवर कर फिल्मी स्टाइल में इतराते फिरना। परंतु पूछे कोई मेरे दिल की लगी को। परीक्षा की तथा कॉलेज की फीस चुकाते-चुकाते जवानी में ही कमर झुकने लगी है। इसी झुकती कमर का ख्याल कर मैंने एक दिन अपनी पत्नी से बहुत ही संजीदगी से यह प्रस्ताव रखा, ‘देखो भागवान, बंटी हो गया है सरकार-दसवीं से पास होने का एकमात्र लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उसने दूसरी पंचवर्षीय योजना का शुभारंभ कर दिया है। मेरी राय में अब हमें उसके पास होने की प्रतीक्षा किए बिना, उसके हाथ पीले कर देने चाहिए।’ ‘नेकी और पूछ-पूछ सोने में सुहागा, अब तो मेरी खुद की बस की नहीं है, नहीं होता मुझसे चौका-बर्तन। बहू आ जाएगी तो कुछ आराम मुझे भी मिल सकेगा, देख लो कोई पार्टी।’ ‘पार्टी, पार्टी से तुम्हारा मतलब किसी राजनीतिक दल से है अथवा कन्या पक्ष के परिवार से है?’ मैंने पूछा। पत्नी ने कहा, ‘अजी शादी-ब्याह में क्या करेंगे राजनीतिक दल, इसमें तो बल की जरूरत है, अच्छा देन-लेने करने वाला मिल जाए तो दरिद्रता मिट जावे।’ मैं बोला-‘गरीबी की रेखा से नीचे से निकलने का हमारा सौभाग्य कहां।

बंटी ने सारे सपनों पर पानी फेर दिया है। कौन तुम्हारे जैसे सपूत को सफेद हाथी रूप में अपना जंवाई बनाना चाहेगा। मेरी तो यही अभिलाषा है कि और कुछ नही तो, बाइसवें में वह लग चुका, उसकी शादी कर देनी चाहिए। हो सकता है शादी के बाद सुधर जावे।’ ‘शादी के बाद सुधरेगा क्यों नहीं? तुम भी तो मेरे आने के बाद ही केवल्य प्राप्त कर सके थे। तुम भी तो दिनभर आवाराओं की तरह घूमा करते थे। परंतु मैंने आने के चार महीने बाद ही काम से लगा दिया। वो तुमसे कहां कम है? जिम्मेदारी डालेंगे तो कुछ काम-काज कर सकेगा।’ पत्नी ने एकदम सोलह आने सही सलाह दी। ‘लेकिन कोई लड़की वाला तो अभी तक हमारे यहां आया नहीं, फिर बातचीत शुरू कैसे हो?’ ‘अखबार में विज्ञापन देना ठीक रहेगा। चलाकर किसी से कहना तो अपमानजनक होगा।’ पत्नी ने कहा। मैं बोला-‘लेकिन शिक्षा तथा वर की आय का स्रोत विज्ञापन में क्या लिखेंगे।’ ‘वह लिखने की जरूरत नहीं है। कपड़े वगैरह पहनने के बाद तो वह बी. ए. से कम लगता नहीं है। इसलिए शिक्षा बी. ए. लिखेंगे तथा आय पिता की लिखेंगे। तुम ऐसा करो लिखो, मैं लिखाती हूं।’ मैंने कागज-पैन उठाया और लिखने लगा-‘पांच फुट दस इंच के स्वस्थ और हंसमुख बी. ए. पास युवक को सुंदर कन्या की जरूरत है। वर के पिता की आय चार अंकों में है। नौकरीशुदा कन्याओं को वरीयता दी जावेगी।’

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक