मां बगलामुखी जयंती

वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है, जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह जयंती 20 मई को मनाई जाएगी। बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। मां बगलामुखी का एक नाम पीतांबरा भी है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अतः साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं, यह स्तंभन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।

बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है ‘दुलहन’ अतः मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है। बगलामुखी देवी रत्नजडि़त सिंहासन पर विराजती हैं। रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है। पीले फूल और नारियल चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती है। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मंत्रों से दुखों का नाश होता है। विश्व का सर्वाधिक प्राचीन बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा में स्थित है।

यह श्मशान क्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के 12वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार की थी। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमशः दतिया (मध्य प्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल)तथा नलखेड़ा में हैं। हर साल कांगड़ा में मां बगलामुखी मंदिर में माता की जयंती के दिन हवन, यज्ञ और माता की पूजा आराधना बड़ी श्रद्धा से की जाती है। इस दिन मंदिर में भक्तों की बहुत भारी भीड़ होती है।