पांडुपोल हनुमान मंदिर

सरिस्का का पांडुपोल हनुमान मंदिर हमेशा से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहा है। यहां हनुमान जी की शयन प्रतिमा स्थापित है। भादों शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन यहां हर साल मेला लगता है। सरिस्का टाइगर रिजर्व जहां बाघों के लिए प्रसिद्ध है, वहीं इस उद्यान में हनुमान जी का एक धाम भी विद्यमान है, जो श्रद्धालुओं के लिए बहुत पूजनीय है।

पांडव बंधुओं द्वारा स्थापित इस प्राचीन तीर्थ का नाम है पांडुपोल हनुमान मंदिर। सुंदर, मनोरम दृश्यों से गुजरते हुए यहां आने पर एक सुखद अनुभूति होती है। अलवर शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थान तक अब पक्की सड़क से वाहन द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

बजरंगबली के इस मंदिर की स्थापना के संदर्भ में एक प्राचीन कथा का उल्लेख किया जाता है। बारह वर्ष का वनवास काल व्यतीत करते हुए पांडव बंधु द्रौपदी सहित अरावली पर्वत शृंखला के वनों से गुजरते हुए विराट नगर की ओर बढ़ रहे थे।

विराट नगर ही वह स्थान था जहां पांडव अपने अज्ञातवास का साल छिप कर व्यतीत करना चाहते थे। एक रात घने जंगल से गुजरने के बाद जब वे आगे बढ़े, तो एक विशाल पर्वत उनके मार्ग में आया। इस पर्वत के पार जाने का जब कोई मार्ग न मिला, तब महाबली भीम ने अपने भ्राता युधिष्ठिर से आज्ञा लेकर गदा से पर्वत पर प्रहार किया।

इस प्रहार से पर्वत में एक पोल बन गई। उसमें से निर्मल जल की धारा फूट पड़ी। अपने इस कार्य पर भीमसेन को बहुत अभिमान होने लगा। शक्ति के अहंकार में वो अपने उद्देश्य को विस्मृत न कर दें, इस कारण प्रभु इच्छा से हनुमान जी इस क्षेत्र में प्रकट हुए। एक दिन जब भीम जंगल में कहीं जा रहे थे, तब उन्होंने रास्ते में लेटे एक वृद्ध वानर को देखा। वानर की पूंछ रास्ते में बिछी हुई थी। भीम ने वानर को अपनी पूंछ हटाने को कहा। परंतु वानर ने अपनी वृद्धावस्था के कारण हिलने में असमर्थता व्यक्त की और भीम से कहा कि वो खुद ही पूंछ हटा कर आगे बढ़ जाए।

भीम ने वानरराज की पूंछ हटाने का बहुत प्रयास किया, परंतु वह उसे टस से मस न कर सके। अब कुछ ही क्षण में भीम का गर्व चूर-चूर हो गया। उन्होंने वानरराज से अपने असली परिचय का आग्रह किया। तब हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए। मान्यता है कि पांडवों ने हनुमानजी की स्मृति में झरने के तट पर मंदिर का निर्माण किया। तभी से क्षेत्र में इस मंदिर की बहुत अधिक मान्यता है। वन्य क्षेत्र होने के कारण यहां कुछ नियमों का पालन करना होता है। मंगलवार और शनिवार को यहां लोग दूर-दूर से हनुमानजी के दर्शनों के लिए आते हैं।