सेना और सुरक्षा समिति

पिछले सप्ताह फसल के लिए किसानों तथा गर्मी से बेहाल आमजन का बेसब्री से चल रहा बहुप्रतीक्षित वर्षा का इंतजार खत्म हुआ। मेघ भी गरजे, बादल भी बरसे, नदी-नाले भी उफान में आए, पर सावन की यह झड़ी विशेषकर कांगड़ा वासियों के लिए कहर बनकर आई। वूहल, देहर, गज, मीनु, बनेर की हुंकार ने बगली और भागसू में ऐसी तबाही मचाई कि आमजन सहम गया। सरकार द्वारा ऐसी परिस्थितियों में सुविधाएं देने की दुहाई देकर करोड़ों रुपए में लिया गया मुख्यमंत्री का उड़नखटोला कहीं नहीं दिखा। एक तरफ यूपी में एक बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देने से पहले दो साजिशकर्ता पकड़े गए जिसके तार दूर तक जुड़े बताए जा रहे हैं, दूसरी तरफ बनारस में रुद्राक्ष कन्वेंशन का उद्घाटन और करोड़ों की सौगात से ऐसे लग रहा है जैसे चुनावी प्रचार का शंखनाद हो गया।

 हर बार चुनाव के समय आतंकवादी घटनाएं अचानक बढ़ जाती हैं। उससे लगता है कहीं राहत इंदौरी के शब्द कि ‘सरहद पर तनाव है, पता करो कि कहीं चुनाव है’ सार्थक तो नहीं हो रहे! आजकल एक और मुद्दा जो काफी चर्चा में है, वह है जनसंख्या नियंत्रण कानून! जनसंख्या बढ़ोतरी पर अंकुश लगाना समय की जरूरत है, पर मुझे ऐसा लगता है कि हमारे पुरुष प्रधान समाज में जहां बेटे की चाह में हम किसी भी हद तक जा सकते हैं, चाहे बेटियों की गर्भ में बार-बार भ्रूण हत्या, मां को संतान के लिंग के लिए जिम्मेदार मानना, दूसरी शादी करना आदि, इससे हो सकता है कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार बढ़ जाएं। कानून बनाना तो एक तरफ है, पर अगर जनसंख्या के प्रति लोगों को शिक्षित किया जाए तो शायद परिणाम अच्छे हो सकते हैं। इसके अलावा पिछले दिनों सुरक्षा समिति की बैठक हुई जिसमें हर पार्टी के चुनिंदा सांसदों ने हिस्सा लिया, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में सुरक्षा के मद्देनजर बनाए जाने वाली हर तरह की योजना के बारे में विस्तृत विचार विमर्श करके निष्कर्ष पर पहुंचना है।

 इसके अलावा देश की सुरक्षा के लिए अहम माने जाने वाले मुद्दों पर चर्चा करना है जैसे अंतरराष्ट्रीय सीमा पर विदेशी मुल्कों या विदेशी सैनिकों के अतिक्रमण पर चर्चा, हथियार संबंधी परियोजनाओं पर विचार विमर्श आदि। पिछले दिनों हुई समिति की बैठक में मात्र कंटोनमेंट के मुद्दे पर चर्चा को मुख्य बिंदु बनाकर जब चर्चा शुरू हुई तो कुछ सांसदों ने पूर्वी लद्दाख में चीनी सैनिकों द्वारा किए जा रहे अतिक्रमण पर चर्चा करने की गुजारिश की, जिस पर सरकार द्वारा नामित सुरक्षा समिति के सदस्यों ने मना कर दिया। मेरा मानना है कंटोनमेंट तथा बाकी मुद्दों पर तो सुरक्षा समिति को चर्चा करनी चाहिए, पर अंतरराष्ट्रीय सीमा एवं हथियारों की खरीद-फरोख्त में बनाए जाने वाली परियोजनाओं पर चर्चा सुरक्षा समिति का अहम बिंदु होना चाहिए और इस संदर्भ में लिया जाने वाला हर फैसला सुरक्षा समिति के अहम सदस्यों को पता होना चाहिए। मेरा मानना है कि अगर हम हथियार निर्माण एवं खरीद-फरोख्त की अहम परियोजनाओं पर फैसला सुरक्षा समिति की सहमति से लेंगे तो भविष्य में बोफोर्स तथा राफेल जैसे मामलों से होने वाली देश व राजनीतिक दलों की फजीहत से भी निजात मिल सकती है।

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक