स्कूल प्रांगण में धूप

वक्त कितना खोया यह मलाल रहेगा, लेकिन कुछ पाने की उम्मीदों को बस पांव चाहिएं। हिमाचल सरकार एक बार फिर स्कूली शिक्षा को उसी के पांव पर खड़ा कर रही है। दो अगस्त की सुबह धूप फिर स्कूल के प्रांगण में आएगी और चहकते किरदार में दसवीं से बारहवीं तक के छात्र अपना नाम खोजेंगे। यह साहसिक व जरूरी करवट है, जिसे अधिकांश अभिभावक, अध्यापक व छात्र लेना चाहेंगे। वास्तव में शिक्षा खुद ही अपने प्रांगण में यतीम की तरह वक्त गुजारती रही और ऑनलाइन के कटोरे में खुद को निहारती रही। स्कूल शिक्षा बोर्ड सरकारों के फैसलों में खुद की तलाशी लेता आखिर एक फार्मूला ही तो बन गया, जिसने छात्रों की सफलता को एक रुटीन बना दिया। छात्र न केवल ऑनलाइन पढ़ाई के मनोवैज्ञानिक प्रभाव से गुजरे, बल्कि परीक्षाओं के कुंभ में बार-बार नहा कर निकले। योग्यता के इस सफर में एक कालखंड गुम रहेगा, भले ही माथे पर चस्पां परीक्षा परिणाम मुस्कराता रहे। इसलिए स्कूल-कालेजों का खुलना जीवन का ऐसा अध्याय है, जिसे छात्र, अध्यापक और अभिभावक अपनी-अपनी अमानत में सुरक्षित रखना चाहते हैं। कोविड काल में अगर आर्थिकी को हर संबल चाहिए, तो शिक्षा को परिसर चाहिए। शिक्षा परिसर सिर्फ  एक इमारत या क्लास रूम का ब्लैक बोर्ड नहीं, बल्कि भविष्य की गणना का सबूत है। प्रतिस्पर्धा का मूल्यांकन और व्यक्तिव निर्माण का रेखांकन है। ऑनलाइन पढ़ाई में शिक्षक का रुतबा रुटीन बन गया, लेकिन स्कूल परिसर में वह एक आदर्श और समूची शिक्षा का अभिभावक बन जाता है। स्कूल में शिक्षा भी तो छात्रों की तरह हर पीरियड में अपने सामने अध्यापक की दृष्टि और श्रम से अपनी परवरिश करती है। पाठ्यक्रम से कहीं आगे अगर शिक्षा की जुबान हो सकती है, तो यह शिक्षक से अपेक्षा है। जाहिर है ऑनलाइन पढ़ाई के दौर में शिक्षक से अपेक्षाएं और अध्यापक की भूमिका बदल गई। वह पाठ्यक्रम के चंगुल में फंसा तोता बना, जो रटता रहा और छात्रों को रटाता रहा। शिक्षक के सामने छात्रों की प्रत्यक्ष हाजिरी और हाजिरी में प्रत्यक्ष समझदारी का प्रमाण ही शिक्षा है और इस तरह स्कूलों का खुलना, आपदा से बाहर आना है। यह कई तरह के मानसिक अवसाद से बाहर निकलने की मशक्कत है।

 बेशक स्कूल का चित्र और चरित्र बदलेगा और कोविड एसओपी के तहत सुरक्षित इंतजाम रहेगा, लेकिन शिक्षा को फिर से जन्म लेने का अवसर भी तो है। शिक्षक भी अपनी भूमिका में फिर से अवतरित होकर छात्रों के विराम को तोड़ सकता है और इस तरह ज्ञान के अवलोकन में परंपराएं फिर से सुदृढ़ होंगी। शिक्षा के दूसरे सूचना पट्ट पर कोचिंग सेंटरों के खुलने से माहौल की तैयारी में उम्मीदें शिरकत करेंगी। सोमवार से छात्र जीवन के कुछ विराम अवश्य ही टूटेंगे और फिर कारवां अपनी-अपनी मंजिल की ओर छात्रों के भविष्य का साथ देगा। प्रवेश परीक्षाओं की एक लंबी फेहरिस्त अब आजमाने को आतुर है और बच्चों के सपनों को नजदीक से निहारने के लिए शिक्षा पद्धति ने अपने कवच खोले हैं। फिर कहीं पुस्तकालय की छांव में कुछ सन्नाटे टूटेंगे और कहीं मजबूत कदम शिक्षण संस्थानों की ओर उठेंगे। सरकार का यह फैसला चिरप्रतीक्षित था और इस तरह एक शहनाई बज उठी है, लेकिन शर्तें अभी लागू हैं। यह कोविड काल के खत्म होने की सूचना नहीं है, बल्कि इसके मध्य से गुजर जाने की जरूरत है। शिक्षा और शिक्षक के लिए छात्रों के भविष्य को संवारने की इस पहल का स्वागत करते हुए यह भी देखा जाएगा कि कोरोना के तमाम दुखद आंकड़ों के बीच किस तरह सुरक्षा कवच स्थापित होते हैं। घर से स्कूल तक का फासला शायद अधिक न हो, लेकिन पढ़ाई के नए दौर में छात्र समुदाय का कोरोना संकट से अधिकतम फासला पैदा करना होगा। हिफाजत से शिक्षा और सुरक्षा से छात्रों की पढ़ाई का सेतु बन गया, तो यह इस दौर के नए मनोबल का सारथी भी होगा।