स्कूल में खालिस सोना

स्वर्ण जयंती समारोह की बरसात में हिमाचल कितना भीगता और कितना सींचता है, अगर इस भेद में अंदाज बदल जाए तो निश्चित रूप से यह प्रदेश अगले पचास सालों का सोना उगाने का हुनर पैदा कर सकता है। यह जयराम सरकार के लिए भी एक स्वर्णिम अवसर है कि इस बहाने प्रदेश के सुन्न पड़े काफिलों को जगा दे और यह समीक्षा और मीमांसा के नए प्रयोग की प्रगतिशील कार्यशाला में स्थापित हो जाए। इस सदी के अपने प्रश्र व महत्त्वाकांक्षा है और इसी के साथ नई पीढ़ी की चेतना को समृद्ध करती सूचनाएं व क्रांतियां भी हैं। पिछले पचास सालों का इत्र उन इमारतों पर जरूर चढ़ा है, जिन्होंने पर्वतीय राज्य की मजबूरियों पर फतह पा कर हिमाचल को पढऩा, चलना और आगे बढऩा सिखाया। जिन राहों पर आंकड़ों की हर शून्यता के नहले को दहले में बदला गया होगा, वहां पुराने दस्तावेज ही आज की स्वर्णिम यात्रा हैं। ऐसे में वर्तमान राज्य सरकार समारोहों की हर परिकल्पना में भविष्य के उजाले देख सकती है। युवा हिमाचल अब आगे का सफर तय करना चाहता है। यह हिमाचल हर दिन प्रदेश से बाहर निकल कर मीलों दूर मंजिलें तलाश करता है।

उसके जीवन में बेंगलूर, मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ़ सरीखी जिंदगी के अरमान घर कर गए हैं, इसलिए वह शिक्षित होने से कहीं आगे जीवन की सफलता के लिए पढऩा चाहता है और प्रतिस्पर्धा की हर कसौटी के लिए तैयार है। ऐसे में जयराम सरकार ने प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी के लिए जो खाका तैयार किया है, उसके परिणाम प्रशंसनीय ही होंगे, लेकिन बदलते समय में प्रोफेशनल पढ़ाई के कई अन्य अनछुए आयाम रह जाते हैं। प्रदेश के बाहर और देश की अपेक्षाओं में जो करियर तैयार हो रहे हंै, वे मेडिकल और इंजीनियरिंग से इतर भी हंै। दुर्भाग्यवश शिक्षा के चबूतरे पर हिमाचल ने अपनी योग्यता का हिसाब केवल डाक्टरी व इंजीनियरिंग के लिए ही लगाया, जबकि रोजगार के नए अवसरों में खेल, नृत्य व गीत-संगीत जैसे विषय भी शामिल हैं। अत: बच्चों की प्राकृतिक क्षमता का पूर्ण दोहन एवं विकास स्कूल-कालेज के माहौल तथा शिक्षा के नवाचार से ही होगा। हिमाचली बच्चों को गैर सरकारी क्षेत्र के लिए तैयार करने की जरूरत है और यह निजी क्षेत्र में पैदा हो रहे रोजगार के मद्देनजर आवश्यक है। प्रदेश के सौ टापर्स केवल दो विधाओं में नहीं हो सकते, बल्कि एक अच्छा खिलाड़ी, अर्थ शास्त्री, विज्ञानी या समाज शास्त्री भी चुना जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग, स्कूल शिक्षा बोर्ड व अभिभावकों के सहयोग से आठवीं व दसवीं श्रेणी तक के बच्चों के दो शैक्षिक भ्रमण होने चाहिएं। एक भ्रमण में वह राज्य को जानें, जबकि दूसरे में देश को जानें।

प्रदेश की अपनी एक साइंस सिटी होनी चाहिए, ताकि बच्चों के वैज्ञानिक सोच व शोध के प्रति रुचि बढ़े। बच्चों की शारीरिक और मानसिक क्षमता को संबोधित करने की आवश्यकता में अभिभावकों को यह समझाने की कहीं अति आवश्यकता है कि केवल डाक्टरी या इंजीनियरिंग ही पढ़ाई को मुकम्मल व श्रेष्ठ नहीं बनाते। अत: छात्रों की योग्यता की खोज होती है, तो साथ ही साथ करियर के हिसाब से अकादमियां बनें। यानी प्रदेश की अनौपचारिक मैरिट से यह हिसाब लगाया जाए कि अगर सौ बच्चे नीट-जेईई की तैयारी के लिए चुने गए हैं, तो वाणिज्य, बिजनेस, इकॉनमी, विज्ञान की विभिन्न शाखाओं, आर्ट व कल्चर जैसे विषयों के लिए भी तो छात्र राष्ट्रीय स्तर की धूम मचाएं। देश की श्रेष्ठ कानूनी पढ़ाई के लिए छात्रों की तैयारी या फैशन, फिल्म उद्योग में जाने का रास्ता भी तो टेलेंट की पहचान से ही निकलेगा। स्कूल शिक्षा बोर्ड व हर विश्वविद्यालय को दसवीं से बारहवीं तक के कुछ चयनित बच्चों के लिए विषय अकादमियां चलानी चाहिएं। प्रदेश की मैरिट में हर साल पांच हजार बच्चे चमकते हैं, लेकिन सारे ही डाक्टर-इंजीनियर नहीं बनते। सौ बच्चों के प्रकाश में हम अपने सारे अंधेरे दूर नहीं कर सकते।