पंजाब का ‘नाइट वॉचमैन’!

पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, कांग्रेस के लिए, एक अस्थायी व्यवस्था हैं। वह फिलहाल बंदोबस्त या ‘नाइट वॉचमैन’ के तौर पर मुख्यमंत्री बनाए गए हैं। इतिहास में ऐसे भी कई उदाहरण हैं, लेकिन चन्नी के पास वक्त सिर्फ  पांच माह का है, जबकि ढेरों नाजुक सवाल और मुद्दे सामने हैं। चुनाव आचार संहिता की घोषणा भी काफी पहले हो जाएगी, लिहाजा मुट्ठी से वक्त खिसकता ही रहेगा। चन्नी पंजाब के प्रथम सिख दलित मुख्यमंत्री हैं और राज्य में करीब 32 फीसदी आबादी दलितों की है। यह सर्वाधिक भी है। इस लिहाज से कांग्रेस नेतृत्व ने पंजाब में एक बोल्ड प्रयोग किया है। उससे चुनाव कितना सधेगा और कितना जनमत कांग्रेस के पक्ष में धु्रवीकृत होगा, ये बेहद अहम सवाल हैं। यही चुनौतियां नए मुख्यमंत्री के सामने हैं। यह एक राजनीतिक हकीकत है कि चन्नी की गणना पंजाब के कद्दावर नेताओं में कभी नहीं रही। पंजाब कांग्रेस में कई दिग्गज हैं। सबसे बड़ा यथार्थ तो कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं। उनकी सियासत अब क्या करवट बदलेगी।

 चुनाव से पहले और दौरान उनकी प्रतिक्रिया क्या रहती है? प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के साथ उनके राजनीतिक समीकरण किस रूप में सार्वजनिक होते हैं? क्या कैप्टन अब भी पाकिस्तान, राष्ट्रीय सुरक्षा और देश-विरोध के जुमले उछालते रहेंगे? ये सवाल चुनौतीपूर्ण इसलिए भी हैं, क्योंकि कैबिनेट मंत्री रहते हुए चन्नी ने भी मुख्यमंत्री कैप्टन के खिलाफ बग़ावत का आगाज़ किया था। कैप्टन धुरंधर और व्यापक जनाधार वाले नेता हैं। हालांकि उनकी सियासी महत्त्वाकांक्षाएं अब शांत हो चुकी होंगी, लेकिन यह निश्चित है कि वह कांग्रेस में ही रहते हुए, कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को, धूमिल कर सकते हैं। बेशक चन्नी को आकस्मिक तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए चुनना पड़ा, लेकिन कांग्रेस उन्हीं के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ेगी, इसकी अभी घोषणा की जानी है। पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने मुख्यमंत्री की शपथ से पहले ही एक विवादास्पद बयान दे दिया कि अगला चुनाव सिद्धू के नेतृत्व में कांग्रेस लड़ेगी। बयान का विरोध भी शुरू हो गया। इससे साफ है कि मुख्यमंत्री फिलहाल और अंतरिम ही हैं। रावत के बयान से मुख्यमंत्री पद का अपमान भी हुआ है। कमोबेश शपथ-ग्रहण तो होने दिया होता! असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं ने कैप्टन को फोन करने शुरू कर दिए हैं।

 दरअसल कैप्टन सरकार ने अपने चुनावी वायदे पूरे नहीं किए, आम पंजाबी से मुख्यमंत्री का संपर्क बेहद कम रहा, नौकरशाही का शासन रहा है, नकली शराब, उससे मौतें और नशे के अवैध कारोबार, बेहद महंगी बिजली और किसानों की असंतुष्टि आदि मुद्दे इतने संवेदनशील हैं कि नए मुख्यमंत्री के पास उन्हें संबोधित करने का पर्याप्त वक्त ही नहीं है। दलित समुदाय भी बंटा हुआ है। अकाली दल-बसपा गठबंधन ने घोषणा की थी कि सरकार बनी, तो उप मुख्यमंत्री दलित होगा। ‘आप’ भी दलितों को साधने के एजेंडे पर सक्रिय है। बहरहाल पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन हो चुका है। उसी के साथ केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले के जरिए कैप्टन को एनडीए में आने का न्यौता भी दिया जाने लगा है। अभी कैप्टन ने पत्ते छिपा रखे हैं। वह शपथ-ग्रहण समारोह में भी नहीं गए, लिहाजा साफ है कि वह कांग्रेस के फैसलों से सहमत नहीं हैं। पंजाब सरहदी राज्य है, लिहाजा बेहद संवेदनशील भी है। पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए वहां हथियार फेंके जाते रहे हैं। नशीले पदार्थों की तस्करी का मामला अब भी अनसुलझा है। पंजाब खालिस्तान का दौर भी झेल चुका है और पाकिस्तान में खालिस्तानी चेहरे अक्सर दिखाई देते रहे हैं। एक और महत्त्वपूर्ण आरोप सामने आया है कि चन्नी पर एक महिला आईएएस अफसर को अश्लील संदेश भेजने के मद्देनजर ‘मी टू’ के आरोप हैं। महिला आयोग ने सरकार को नोटिस भेज रखा है। यह एक गंभीर दाग़ है। बहरहाल पंजाब में नया अध्याय आरंभ हो चुका है। पंजाब आर्थिक संकट में भी फंसा है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अगला चुनाव है।