खजूर के गुण…

खजूर का लैटिन नाम फीनिक्स सिल्वेट्रिक्स है तथा इस को हिंदी में खजूर कहते हैं। स्वरूप- इसका 30 से 50 फुट ऊंचा पौधा होता है। कांड सीधा धूसर वर्ण का लगभग 3 फुट मोटा होता है, पत्र 8-10 फुट लंबे होते हैं जो कि धूसर हरे, मूल भाग में कुछ कांटे तथा टहनी के दोनों ओर होते हैं।

रासायनिक संगठन– फल में वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, फाइबर, खनिज द्रव्य और कैल्शियम एवं फास्फोरस होता है। नीरा में विटामिन सी और बी पर्याप्त मात्रा में होता है। पिंड खजूर में पोषक तत्त्व अधिक होते है।

गुण- खजूर स्निग्ध भारी होता है। इसका रस मधुर होता है जो कि शीत प्रकृति या तासीर में ठंडा होता है।

कर्म व प्रयोग– यह वात पित्त शामक है इसलिए इसका पित्त व वात विकारों में प्रयोग होता है।

बाह्य प्रयोग- इसका मूल वेदनास्थापक है इसलिए दंतशूल में इसके मूल के क्वाथ से कुला करते हैं या मूल चूर्ण लगाते हैं।

आभ्यांतर प्रयोग

नाड़ी संस्थान- यह मस्तिष्क की नाडि़यों को व अन्य शरीर की नाडि़यों को बल देती है। मस्तिष्क को शीत करती है तथा शारीरिक वात को भी शांत करती है इसलिए इसका प्रयोग मस्तिष्क की  दुर्बलता तथा कमर दर्द, रीढ़ दर्द व अर्धांग वात इत्यादि वात रोगों में भी किया जाता है।

पाचन संस्थान- पेट उसकी बड़ी व छोटी आंतों का स्नेहन करती है तथा उसकी खुश्की दूर करती है व आंत की गति को क्रियमित करती है। इसलिए इसका प्रयोग तृष्णा, कास, उलटी, अफारा व अतिसार में किया जाता है। कृमि में इस के पत्र का क्वाथ भी देते हैं।