छठे वेतन आयोग से बढ़ती निराशा

यह सही है कि हिमाचल का कर्मचारियों के लिए अपना कोई अलग वेतन आयोग नहीं है और यहां पूरी तरह पंजाब के पैटर्न का अनुसरण करके लागू करने की संवैधानिक व्यवस्था है, परंतु यह भी सत्य है कि चाहे पूर्व में रही सरकार की बात हो या वर्तमान में, कर्मचारियों को पंजाब की तर्ज पर न तो वेतन दिया गया और न ही भत्ते। अभी हाल ही में कर्मचारियों के लिए जारी छठे वेतनमान की अधिसूचना के प्रारूप से स्पष्ट है कि कर्मचारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। कर्मचारियों में पच्चीस हजार संख्या में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन प्राथमिक शिक्षक संघ द्वारा अध्ययन करने के बाद पाया कि अध्यापकों का वेतन पंजाब की तर्ज पर न देकर अफसरशाही द्वारा बहुत बड़ा अन्याय इस वर्ग के साथ होने के आरोप लगते स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, जिससे कर्मचारियों के वेतन बढ़ने के बजाय वसूली जैसे हालात पैदा हुए हैं…

किसी भी राज्य एवं देश की रीढ़ कर्मचारियों को माना जाता है। यदि रीढ़ मजबूत होगी तो उस राज्य एवं देश की अर्थव्यवस्था का मजबूत होना स्वाभाविक है। आजादी से पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अपनी अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए जिस तरह उन्होंने कर्मचारियों को ढाल बनाकर सस्ते और कम दाम देकर अधिक से अधिक काम लेने की एक प्रथा थी और यदि कोई संगठन व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाता तो उसको कई प्रताड़नाएं झेलनी पड़ती थीं। कर्मचारियों को उनके हक हकूक से वंचित रखा जाता था। देश आजाद हुआ और एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना हुई। कर्मचारियों के लिए अलग-अलग आयोग बने और अलग-अलग संगठनों के माध्यम से अपनी आवाज को उठाने के लिए स्वतंत्रता दी गई। संवैधानिक प्रक्रिया के मुताबिक त्रिस्तरीय ढांचे का निर्माण हुआ जिसमें विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अलग-अलग अधिकार और कर्त्तव्य दिए गए। इन तीनों का आपस में दामन और चोली की तरह साथ है। यह सही है कि हिमाचल का अपना कर्मचारियों के लिए कोई अलग वेतन आयोग नहीं है और यह पूरी तरह पंजाब के पैटर्न का अनुसरण करके लागू करने की संवैधानिक व्यवस्था है, परंतु यह भी सत्य है कि चाहे पूर्व में रही सरकार की बात हो या वर्तमान में, कर्मचारियों को पंजाब की तर्ज पर न तो वेतन दिया गया और न ही भत्ते। अभी हाल ही में जारी कर्मचारियों के लिए छठे वेतनमान की अधिसूचना के प्रारूप से स्पष्ट है कि कर्मचारी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। कर्मचारियों में पच्चीस हजार संख्या में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन प्राथमिक शिक्षक संघ द्वारा अध्ययन करने के बाद पाया कि अध्यापकों का वेतन पंजाब की तर्ज पर न देकर अफसरशाही द्वारा बहुत बड़ा अन्याय इस वर्ग के साथ होने के आरोप लगते स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, जिससे कर्मचारियों के वेतन बढ़ने के बजाय वसूली जैसे हालात पैदा हुए हैं।

 वहीं दूसरी ओर राजकीय अध्यापक संघ हिमाचल प्रदेश के पदाधिकारियों द्वारा अलग-अलग वर्गों के संगठनों ने भी छठे वेतनमान को ठुकराने का संदेश स्पष्ट रूप से सरकार के सामने रखा है। यह दीगर है कि हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को पिछले 6 वर्षों से वर्ष 2016 से पंजाब के छठे वेतन आयोग के लागू होने का प्रदेश के लाखों कर्मचारियों को बेसब्री से इंतजार था कि उनके वेतनमान को पंजाब पे कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार लागू किया जाएगा। 5 जुलाई 2021 को छठे पंजाब पे कमीशन की अधिसूचना जारी होने के साथ ही हिमाचल प्रदेश के कर्मचारियों को भी इसी वेतन आयोग के अनुसार अपने वेतनमान में वृद्धि होने का भरोसा था, लेकिन जैसे ही हिमाचल सरकार ने 3 जनवरी 2022 को अपने कर्मचारियों के लिए पंजाब पे कमीशन को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर लागू किया है, उससे लाखों कर्मचारियों को निराशा हाथ लगने के स्पष्ट संकेत सोशल मीडिया के माध्यम से मिल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश द्वारा जारी संशोधित वेतनमान अधिसूचना में पंजाब पे कमीशन द्वारा जारी वेतनमान को कम कर दिया गया है, जहां पंजाब सरकार द्वारा छठे वेतन आयोग के अनुसार दो गुणांक दिए गए हैं और वे प्रथम 2.25 बढ़ाई गई ग्रेड पे के मामले में और दूसरा पुराने ग्रेड पे के मामले में 2.59 है और यह गुणांक कारक पंजाब पे स्केल में इनिशियल वेतन पर लागू होते हैं लेकिन न्यूनतम पे बैंड प्लस ग्रेड पे पर नहीं, जबकि हिमाचल में इसके विपरीत इनिशियल पे के स्थान पर केवल न्यूनतम पे बैंड और ग्रेड पे पर लागू किया गया है।

 ऐसे हालात में विरोधाभास उत्पन्न होना स्वाभाविक है। आवश्यकता इस बात की है कि हिमाचल सरकार अपने अलग वेतन आयोग का निर्माण करे या पंजाब वेतन आयोग को पूरी तरह अनुसरण कर अपने कर्मचारियों को लाभ पहुंचाए। कर्मचारियों का यहां तक तर्क है कि हिमाचल प्रदेश संपूर्ण राज्यों की तुलना में सबसे कम वेतन और भत्ते देने वाला राज्य इस छठे वेतन आयोग के लागू होने से बन जाएगा। आज यदि हिमाचल विकास की दृष्टि में अग्रणी राज्यों की श्रेणी में खड़ा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं कर्मचारियों की मेहनत का बहुत बड़ा हाथ है। बावजूद इसके कर्मचारियों को उनका आर्थिक अधिकार मिलना समय की प्रमुख मांग है। विशेषतः ब्यूरोक्रेट्स, जो कि नीति निर्धारक और सरकार के प्रमुख सलाहकार माने जाते हैं, को कर्मचारियों के साथ भावनात्मक रूप से सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि प्रदेश के लाखों कर्मचारियों को मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ना का शिकार न होना पड़े जिससे विकास के नए-नए आयाम स्थापित कर प्रदेश को हरा-भरा बनाया जा सके। यह बात सही है कि प्रदेश का काफी बजट कर्मचारियों व पेंशनरों पर खर्च हो रहा है, इसके बावजूद हिमाचल के कर्मचारियों की मांग जायज है। आखिर हिमाचल क्यों सरकारी कर्मचारियों को सबसे कम वेतन देने वाला राज्य बने? इसलिए कर्मचारियों की सभी मांगों पर सहानुभूति के साथ विचार किया जाना चाहिए।

तिलक सिंह सूर्यवंशी

लेखक सिहुंता से हैं