आज मैं और मेरी आजादी अक्सर सोचते हैं

सच कहूं, अगर मैं आजाद न होता तो क्या सरेआम वेतन लेने के बाद भी काम के दाम ले पाता? नहीं न। मुझे वे बंधुआ मजदूर की तरह दिन-रात यूज करते। साल भर गधे की तरह काम करवाते और साल बाद जो हाथ जोड़े पगार की मांग करता तो दो ठुड्ड मार परे कर देते। यह आजादी का ही कमाल है कि मैं बिन काम के कुर्सी पर पसरा लाखों का कमा रहा हूं। आंखें मूंदे गुनगुनाता हुआ कर कभी इस जेब तो कभी उस जेब हाथ डाल दनदना रहा हूं। अगर जो हम आजाद न होते तो क्या श्रीमंत जनता से दिलफेंक झूठ बोल बोल कर इतने सालों तक उल्लू बना सकते? कदापि नहीं। झूठ बोलने के जुर्म में तय था उनकी अब तक खुद ही जुबान गल सड़ चुकी होती। पर वे आजाद हैं तो सौ सौ किराए की जुबानों से दिल खोलकर बड़ी शिद्दत से झूठ बोले जा रहे हैं। मित्रो! अगर जो हम आजाद नहीं होते तो सिर से पांव तक दागी होने के बाद भी क्या हम जन सेवा की पगड़ी सिर पर बांधे जेल से भी जीतते रहते?

आजादी ने हमें अपने दागों का  महत्व समझाया है। आजादी ने ही हमें दागी आम से लेकर केला तक धांसू रैपर में लपेट आंखें बद कर चटकारे ले ले चाटना सिखाया है। जो हम आजाद न होते तो क्या हम कानून की टोपी सिर पर धरे सरेआम गाड़ी को हाथ दे गर्व से सिर ऊंचा किए पंद्रह अगस्त मनाने को हर वाहन से सौ सौ रुपए साधिकार वसूल पाते? क्या मजाल होती उनकी जो हम गुलाम होते और ऐसा कर लेते। अगर हम आजाद न होते तो क्या वे आटे में इस तरह दिल खोलकर मिलावट कर पाते क्या? बिल्कुल नहीं। पर यह आजादी ही है जिसने उन्हें आटे में मिलावट करने की संडयाली परमिशन दी है। पूछो तो साफ कहे देते हैं, भाई साहब! आटे पर एक आपका ही हक नहीं है। आटे की बोरी बिकने के लिए  मिल से बाहर निकलती बाद में है, उसमें से अपना अपना हिस्सा लेने ऊपर से नीचे वाले तक सब पहले जेब लेकर खड़े हो जाते हैं।

अब उसमें रेत न मिलाएं तो खुद क्या खाएं? अगर हम आजाद न होते तो क्या हम अपना दीन ईमान इस तरह से बाजार में एक के साथ एक फ्री बेच पाते? नहीं न! आजाद है तो सीना चौड़ा कर कह सकते हैं, रे भैये! तुम कौन होते हो हमारे दीन ईमान की सेल के बारे में कुछ कहने वाले। ये हमारा है। हम आजाद हैं। हम जो चाहें अपना सेल में सजा दें। सेल में सेल पर लगा दें। हमारी मर्जी, हम इसे बेचें या रखें, हम उसे बेचें या रखें। माल हमारा है। उत्तर हमारा है, सवाल हमारा है। लेना है तो लो, वरना फुटदी रखो। घर में कबाड़ रखने की आदत तुम्हारी हो तो होती रहे। हमें तो न घर में, न चरित्र में कबाड़ रखने की कतई आदत नहीं। पहुंचे हुए कहते हैं कि कहते हैं दीन ईमान जो अपने पास रखो तो इससे नेगेटिव वाइब्रेशन निकलती हैं जो आदमी के विकास में बाधा उत्पन्न करती है। अंग्रेजों ने तो हमें विकसित नहीं होने दिया। अब तो आजाद हैं भैये आजाद!  अपना विकास करके ही दूसरों का चैन छीनेंगे। अब कितने उदाहरण दूं आपको आजादी  के? अरे भैया! छोड़ो लुटने पर कब तक रोना, एक दूसरे को आंखें मूंद कर खाने वाली आजादी का जश्न कुर्ता खोल महा बचत के ठग बाजार में अपनी बोली लगवाते गाओ-चुगता फिरूं बन के गिद्ध प्रदूषित गगन में, आजाद हम आजाद हैं लुटते चमन में। जय हिंद।! जय भारत! आजादी की आजादी से आपको ढेर सारी शुभकमानाएं। दूधो नहाओ, पूतो फलो। एक दूसरे को पूरी ईमानदारी से दलते हुए आगे बढ़ो।

अशोक गौतम

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