हाइड्रोजन में बदली प्लास्टिक, आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं को बड़ी सफलता, विकसित की विशेष विधि

कार्यालय संवाददाता — मंडी

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने प्रकाश के संपर्क में प्लास्टिक को हाइड्रोजन में बदलने की विशेष विधि विकसित की है। प्लास्टिक से हाइड्रोजन बनना इसलिए भी लाभदायक है, क्योंकि हाइड्रोजन गैस भविष्य का सबसे व्यावहारिक गैर-प्रदूषक ईंधन माना जाता है। प्लास्टिक अधिकतर पेट्रोलियम से प्राप्त होते हैं। परंतु ये बायो-डिग्रेडेबल नहीं हैं। उन्हें आसानी से बिना नुकसान के अन्य उत्पादों में विघटित नहीं किया जा सकता है। कहा जाता है कि अब तक बने 4.9 बिलियन टन प्लास्टिक का अधिकांश आखिर में लैंडफिल पहुंचेगा, जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य और पर्यावरण को बड़ा खतरा है। बेकाबू हो रहे प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के प्रति उत्साहित आईआईटी मंडी के शोधकर्ता प्लास्टिक को उपयोगी रसायनों में बदलने की विशेष विधियां विकसित कर रहे हैं। इस शोध का वित्तीयन शिक्षा मंत्रालय की शिक्षा एवं शोध संवद्र्धन योजना के तहत किया गया था। शोध के निष्कर्ष हाल में जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल कैमिकल इंजीनियरिंग में प्रकाशित किए गए। शोध का नेतृत्व डा. प्रेम फेक्सिल सिरिल, प्रोफेसर स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी और डा. अदिति हालदार, एसोसिएट प्रोफेसर स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आईआईटी मंडी ने किया और इसमें उनकी पीएचडी विद्वान रितुपर्णो गोगोई, आस्था सिंह, वेदश्रीमुतम, ललिता शर्मा व काजल शर्मा ने सहयोग दिया।

हाइड्रोजन भविष्य का ईंधन, मिलेगा बड़ा फायदा

डा. प्रेम फेक्सिलसिरिल का कहना है कि प्लास्टिक से सही मायनों में छुटकारा पाने का आदर्श उपाय उसे उपयोगी रसायनों में बदलना है। प्लास्टिक से हाइड्रोजन बनाना विशेष रूप से लाभदायक है क्योंकि इस गैस को भविष्य का सबसे व्यावहारिक गैर-प्रदूषक ईंधन माना जाता है। आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने एक कैटलिस्ट विकसित किया है, जो प्रकाश के संपर्क में प्लास्टिक को हाइड्रोजन और अन्य उपयोगी रसायनों में बदलने में सक्षम है। कैटलिस्ट कठिन या असंभव प्रतिक्रियाओं को अंजाम देने वाले पदार्थ हैं और प्रकाश से सक्रिय होने पर उन्हें फोटो कैटलिस्ट कहा जाता है।

ऐसा शोध

अपने शोध के बारे में डा. प्रेम फेलिक्ससिरिल ने बताया कि हमने सबसे पहले मिथाइल ऑरेंज पर हमारे कैटलिस्ट की प्रतिक्रिया देख कर इसकी फोटो कैटलिटिक गतिविधि सुनिश्चित की, जो नारंगी से रंगहीन हो गया। यह दर्शाता है कि हमारा कैटलिस्ट किस सीमा तक इसे डिग्रेड करने में सक्षम था। उन्होंने कहा हालांकि हाइड्रोजन का बनना अपने. आपमें बहुत अच्छा है पर हम कार्बन डाइऑक्साइड के नहीं उत्पन्न होने से और भी उत्साहित हैं। प्लास्टिक से हाइड्रोजन बनाने के लिए विकसित अधिकतर अन्य फोटो कैटलिस्ट बाई-प्रोडक्ट में ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न करते हैं, परंतु आईआईटी मंडी के कैटलिस्ट ने ऐसा नहीं किया, बल्कि उपयोगी रसायन जैसे कि लैक्टिक एसिड, फॉर्मिक एसिड और एसिटिक एसिड का सह-उत्पादन किया।