गीता रहस्य

गतांक से आगे…
परंतु सबसे बड़ा विद्वान और चारों वेदों में ज्ञान, कर्म एवं उपासना रूप विद्या दान करने वाला स्वयं, हमारा सच्चा पितर अर्थात रक्षक, वह निराकार परमेश्वर ही है। ऋग्वेद मंत्र 9/73/2 में कहा है कि जो (पवित्रवंत:) पुण्यवान साधक( प्रत्न: पिता) अनादि परमेश्वर (अभिक्षति) रक्षा करता है और (मह:समुद्रम) इस महान संसार रूपी सागर को (वरुणम) जो वरुण रूप शक्ति (जलचर) अपनी लहरों में डुबोना चाहती है उसका परमात्मा (तिरोदधे) तिरस्कार कर देता है अर्थात वेदानुकूल पुज्यवान कर्म करने वाले तपस्वी को परमेश्वर संसार रूपी महासागर (जन्म-मृत्यु रूपी दुखदायी सागर) में डुबने से बचा लेता है। इस प्रकार श£ोक कांड 10/29 का अर्थ है कि समुद्र में रहने वाले बड़े-बड़े जलचर छोटे जलचरों को खा जाते हैं। समुद्र की लहरों में ऋग्वेद में वरुण कहा है।

वरुण समुद्र का शक्तिशाली जलचर है अर्थात समुद्र में आए तूफान की लहरें तो (वरुण) न जाने कितनों को कालग्रास में निगल लेती है। अर्थात जैसे समुद्र के जलचरों में वरुण सबसे बड़ा जलचर है, ऐसे यह सृष्टि जो कि भवसागर रूप से भी जानी जाती है, इसमें आकर जीव सुख-दु:ख भोगता है। इससे भी बचाने वाला वरुण अर्थात सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। क्योंकि वेदों में कई स्थान पर वरुण शब्द परमात्मा के लिए भी आया है। जैसा कि ऋग्वेद मंत्र 1/24/15 में कहा ‘उदुत्तमं पाशामस्मत’ अर्थात (वरुण) ही स्वीकार करने योग्य परमेश्वर (उत्तमम्) दु:ख देने वाले दृढ़ (पाशम) बंधनों को (व्यवश्रथय) नष्ट कर दे। यहां वरुण का अर्थ परमेश्वर है। अत: अर्थ हुआ कि जिस तरह जलचरों में वरुण नामक लहरें (विद्युत शक्ति) सबसे महान जलचर है। – क्रमश:

स्वामी रामस्वरूप

इससे भी बचाने वाला वरुण अर्थात सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। क्योंकि वेदों में कई स्थान पर वरुण शब्द परमात्मा के लिए भी आया है। जैसा कि ऋग्वेद मंत्र 1/24/15 में कहा ‘उदुत्तमं पाशामस्मत’ अर्थात (वरुण) ही स्वीकार करने योग्य परमेश्वर (उत्तमम्) दु:ख देने वाले दृढ़ (पाशम) बंधनों को (व्यवश्रथय) नष्ट कर दे…