मोदी आशीर्वाद में जयराम

एक छोटे से राज्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार दौरे अपनी करवटों में सबसे बड़ा आशीर्वाद दे रहे हैं, तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर इस श्रेय के पात्र माने जाएंगे। ये रिश्ते राज्य से कहीं ऊपर एक मुख्यमंत्री की गणना कर रहे हैं, तो हिमाचल समझ सकता है कि असल में हो क्या रहा। हर बड़ी रेखा खींची जा रही है, इसलिए प्रदेश सरकार की यात्रा को आगे बढ़ाने का मंतव्य शीर्षासन कर रहा है। धर्मशाला में सभी राज्यों के मुख्यसचिवों की बैठक का न्योता देती केंद्र सरकार और मेहमाननवाजी में हिमाचल सरकार के आतिथ्य में देश के प्रधानमंत्री। मुख्य सचिवों ने गौर से सुना होगा और प्रधानमंत्री ने भी राष्ट्रीय भावना के लफ्जों में हर बिंदु को छुआ ताकि आने वाले समय में पांच ट्रिलियन डालर की आर्थिकी की गंगा बहा दें। खबरें छनती रहीं और देश के लक्ष्य अपना सीना फुलाते रहे, लेकिन इस इजहार की पलकों पर सवार देश आने वाले समय में कई चुनाव देख रहा है। आंख का तारा यूं तो भाजपा के लिए हर चुनावी राज्य है, मगर हिमाचल रिश्तों में प्यारा बना रहे, इसकी कोशिश हो रही है।

 कभी अटल बिहारी वाजपेयी प्रीणी में आकर देश के सबसे बड़े विश्राम में देवभूमि की मिट्टी का स्पर्श करते थे, तो क्या मोदी ने धर्मशाला विश्राम की नई रीत में अपनी प्रीत की पींगें बढ़ाई हैं। कम से कम रोड शो में उभरा सियासी दस्तूर और वापसी में गगल की भीड़ में प्रधानमंत्री का शरीक हो जाना, कुछ तो नया आगाज है। धर्मशाला आकर प्रधानमंत्री ने अपना राजनीतिक इंतजार बढ़ा दिया है, लेकिन राज्य की महत्त्वाकांक्षा को अभी संबोधित नहीं किया गया। ऐसे में प्रधानमंत्री के सात दौरों का लगातार जिक्र होने के बावजूद पूछा यह जा रहा कि मोदी जी आखिर क्या दे रहे हैं। अब तो हर मंच एक सा लगने लगा है, सरकारी समारोह भी तरफदारी करने लगा है। सफलताओं के नए पैमानों पर ऐसी बैठकें कारगर सिद्ध होंगी। यह रुतबा बता रहा है कि मुख्यमंत्री का निमंत्रण कितनी गंभीरता से पढ़ा जा रहा है। माहौल की जादूगरी में हिमाचल जिन प्राथमिकताओं की सूची बना रहा है, वहां केंद्रीय सरकार के कदमों की आहट सुनी जा रही है। कमोबेश हर मंत्रालय अब सूचीबद्ध होकर अगर शिरकत करेगा, तो राज्य की तासीर में एक अलग तरह का प्रभाव देखा जाएगा। ऐसे में सोचना होगा कि कौन सा पत्ता कहां काम कर गया।

 शिमला के साहित्यक समारोह में आगंतुकों की पदचाप और केंद्र के राज्य तक की विभागीय अनुगूंज के बीच परिदृश्य यह भी है कि चिंतन की विचारधारा में आलेख एक बड़ा फ्रेम तैयार कर रहे हैं। समारोहों की निरंतर आगे बढ़ती पायदान पर हिमाचल अपने लिए कुछ हासिल करे या न करे, यह तय है कि चुनावी सफर का कारवां निकल पड़ा है। कम से कम चुनाव की आचारसंहिता से पूर्व के तीन-चार महीने मोमबत्तियां जलाने के हैं और जहां कुनबा यह आत्मसात करेगा कि केंद्र का दिल है हिमाचली तथा यह मुख्यमंत्री की श्रेष्ठता का प्रमाण है कि दिल्ली अब दूर नहीं है। खैर कई खत अभी आने बाकी हैं। बल्क ड्रग पार्क, मेडिकल डिवाइस पार्क, हवाई अड्डों तथा फोरलेन परियोजनाओं के दस्तावेज जब बंटेंगे तो चुनाव की शिरकत में वादों की मंजिलें दिखाई देंगी। ऐसे में प्रदेश के कोटे से बने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के हिस्से कितने मैदान आएंगे और क्या वह अपनी पसंद के मैदान बना पाएंगे, यह कशमकश फिलहाल चुनाव की कसौटी में दिखाई नहीं दे रही। यह दीगर है कि अब एम्स बिलासपुर के नाम पर कुछ दीये जलेंगे, लेकिन हिमाचल को नितिन गडकरी का उनकी ही याददाश्त के आंकड़ों में इंतजार है, जो प्रदेश को साबित कर सकें। बहरहाल हिमाचल इसलिए प्रसन्न हो सकता है, क्योंकि बार-बार हिमाचल का नारा बुलंद हो रहा है। इसी नारे के नायकवाद में देश के प्रधानमंत्री का आशीर्वाद राज्य के मुख्यमंत्री को मिल रहा है। अब जनता अपने लिए प्रशंसनीय शब्दों के मोहजाल में मंच देखेगी या यथार्थ के रास्तों पर बिछी अपनी अभिलाषा से विश्लेषण करेगी, यह कहा नहीं जा सकता। फिलहाल अगले किसी कार्यक्रम में आशीर्वाद के नए श्लोक का इंतजार करें।