भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा

हिंदू धर्म में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आषाढ़ मास की द्वितीय तिथि को ये रथ यात्रा शुरू होती है और शुक्ल पक्ष के 11वें दिन भगवान की वापसी के साथ इसका समापन होता है। इस रथ यात्रा में हजारों की संख्या में भक्तगण शामिल होते हैं। मान्यता है कि रथयात्रा में शामिल होने मात्र से ही भक्तों पर भगवान की कृपा बरसती है और 100 यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है और जीवन से जुड़े सभी सुखों को भोगते हुए अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है…

हिंदू धर्म में चार धामों का विशेष महत्त्व है। इन्हीं चार धामों में से एक धाम है जगन्नाथ पुरी, जो कि ओडिशा के पुरी क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र को श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप है जगन्नाथ। जगन्नाथ का अर्थ होता है जगत का स्वामी। हिंदू धर्म में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आषाढ़ मास की द्वितीय तिथि को ये रथ यात्रा शुरू होती है और शुक्ल पक्ष के 11वें दिन भगवान की वापसी के साथ इसका समापन होता है। इस रथ यात्रा में हजारों की संख्या में भक्तगण शामिल होते हैं। हिंदू धर्म में पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने को बहुत बड़ा सौभाग्य माना गया है। मान्यता है कि रथयात्रा में शामिल होने मात्र से ही भक्तों पर भगवान जगन्नाथ की कृपा बरसती है और 100 यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है और जीवन से जुड़े सभी सुखों को भोगते हुए अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार यह रथ यात्रा 1 जुलाई से शुरू होगी।

कितने दिनों तक चलेगी यात्रा- भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी में हर साल आषाढ़ शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है। द्वितीया से लेकर दशमी तक चलने वाली इस यात्रा की मान्यता है कि इन दिनों में भगवान लोगों के बीच रहते हैं। इस यात्रा में तीन रथ होते हैं। इन रथों में बीच वाले रथ में बहन सुभद्रा और बगल वाले रथ में श्रीकृष्ण और बलराम की प्रतिमाएं होती हैं। कहा जाता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

क्यों निकाली जाती है रथयात्रा- भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को लेकर कई मान्यताएं है। लेकिन एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक जब भगवान श्री कृष्ण, राधा जी से मिलने वृंदावन पहुंचे, तो वृंदावन के गोप और गोपियां खुशी के मारे भगवान के रथ को अपने हाथों से खींचने लगे। इसके बाद उनके रथ को पूरे नगर में घुमाया गया। ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथपुरी की यह रथ यात्रा श्री कृष्ण की वृंदावन यात्रा की याद में निकाली जाती है। कहते हैं कि द्वारिकाधीश को सारे जग का नाथ मानते हुए वृंदावन के लोगों ने उन्हें भगवान जगन्नाथ नाम दिया है।

15 दिन का एकांतवास क्यों- वहीं इस रथयात्रा के 15 दिन पहले कुछ खास परंपराएं निभाई जाती हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा के मौके पर जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है। इसे सहस्रधारा स्नान कहा जाता है। इस स्नान के कारण तीनों बीमार हो गए हैं। बीमार होने की वजह से अब तीनों 14 दिनों तक एकांतवास में रहेंगे। इसके बाद वे 15वें दिन उपचार के बाद दर्शन देंगे। तब तक जगन्नाथ मंदिर के कपाट बंद रहेंगे।

सात दिन रहेंगे गुंडिचा मंदिर- जगन्नाथ जी का स्वास्थ्य ठीक होने के बाद वे आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को रथ यात्रा पर निकलेंगे। बता दें कि इस साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि 1 जुलाई को है। इस दिन तीन रथ तैयार होंगे, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और सुभद्रा जी सवार होकर अपनी मौसी के गुंडिचा मंदिर जाएंगे। वहां वे तीनों सात दिनों तक आराम करेंगे और फिर दशमी तिथि पर भगवान मुख्य मंदिर लौटेंगे। प्रति वर्ष रथ यात्रा के लिए नए रथों का निर्माण होता है। इन रथों का निर्माण पंच तत्त्वों (काष्ठ, धातु, रंग, परिधान और सजावटी सामग्री) से किया जाता है। रथ में शामिल होने वाली लकड़ी नीम की होती है, क्योंकि इसके भीतर विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फुट होती है। बलराम के रथ की ऊंचाई 45 फुट और बहन सुभद्रा का रथ 44.6 फुट ऊंचा होता है।