मां शूलिनी मेला

हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। हिमाचल प्रदेश में देवी-देवताओं के बहुत से मंदिर हैं और हर मंदिर का अपना अलग महत्त्व है। सोलन का नाम मां शूलिनी देवी के नाम पर पड़ा। माता शूलिनी सोलन की अधिष्ठात्री देवी हैं। माता शूलिनी देवी का मंदिर सोलन बाजार में स्थित है। यहा हर वर्ष जून माह में मेले का आयोजन होता है। जिसे राज्य स्तरीय मेले का दर्जा मिला हुआ है। इस वर्ष मां शूलिनी मेला 24 से 26 जून तक बड़े स्तर पर आयोजित किया जाएगा। पहले दिन मां शूलिनी की शोभायात्रा निकलेगी, शाम को वह बहन के पास रुकेंगी। मेले में पहले की तरह तीन सांस्कृतिक संध्या आयोजित होंगी। मां शूलिनी मेला कोरोना काल के दो वर्ष बाद आयोजित किया जा रहा है इसलिए इसका आयोजन बड़े स्तर पर हो रहा है। माता शूलिनी देवी के नाम से सोलन शहर का नामकरण हुआ था, जोकि मां शूलिनी की अपार कृपा से दिन-प्रतिदिन समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है।

सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करता था। इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी तदोपरांत कोटी और बाद में सोलन बनी। राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे। रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है। जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे। बदलते समय के दौरान यह मेला आज भी अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार चल रहा है। माता शूलिनी के इस मंदिर का पुराना इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। बघाट रियासत के लोग माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते थे, तभी से माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों के लिए उनकी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है।

वर्तमान समय में माता शूलिनी का भव्य मंदिर सोलन शहर के दक्षिण दिशा में बना हुआ है। इस मंदिर के अंदर माता शूलिनी के अलावा अन्य देवी-देवताओं की भी पूजा होती है जैसे कि शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि तथा मंदिर के अंदर इनकी बड़ी प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं। कहते हैं कि इस मेले के जरिये मां शूलिनी शहर के भ्रमण पर निकलती हैं और जब वापस आती हैं, तो अपनी बहन के पास दो दिन के लिए रुकती हैं। इसके बाद मां शूलिनी मंदिर वापस आती है, यही वजह है कि मेले का आयोजन किया जाता है। साथ ही पूरे शहर में भंडारों का आयोजन भी किया जाता है। हर साल मेले की शुरुआत मां शूलिनी देवी की शोभा यात्रा से होती है, जिसमें माता की पालकी के अलावा विभिन्न धार्मिक झांकियां भी निकाली जाती हैं। इस यात्रा में हजारों की संख्या में लोग माता शूलिनी के दर्शन करके सुख समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।