मलाशय कैंसर ईलाज को IIT मंडी ने बनाया विशेष कैप्सूल, सीधे कैंसर ग्रस्त हिस्से पर पहुंचेगी दवा

दिव्य हिमाचल ब्यूरो, मंडी

मंडी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मंडी के शोधकर्ताओं ने बड़ी आंत के अंतिम हिस्से मलाशय में होने वाले कैंसर यानि के कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज को दी जाने वाली दवा के लिए एक विशेष प्रकार का कैप्सूल तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। कैपसूल के माध्यम से दवा को सीधे कैंसर ग्रस्त हिस्से में पहुंचाया जा सकेगा। ऐसा होने से कैंसर का ईलाज तेजी से होगा और दवा के साइड इफेक्ट भी मरीजों को नहीं भुगतने पड़ेंगे।

आईआईटी मंडी के वेज्ञानिकों की टीम ने प्राकृतिक पॉलीमर आधारित स्मार्ट नैनो पार्टिकल्स विकसित किए हैं। ये नैनोपार्टिकल्स केवल कैंसर ग्रस्त हिस्से में होने वाली उत्तेजनाओं के प्रतिकार में दवा रिलीज करते हैं। जिससे बड़ी आंत के
कैंसर को बढ़ने और खत्म करने में सफलता मिलेगी। शोध के निष्कर्ष कार्बोहाइड्रेट पॉलीमर नामक जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। शोध प्रमुख डॉ. गरिमा अग्रवाल सहायक प्रोफेसर स्कूल ऑफ  बेसिक साइंसेज ने अपने विद्यार्थी आईआईटी मंडी के डा. अंकुर सूद और आस्था गुप्ता के साथ यह अध्ययन किया है। उनकी टीम के साथ प्रो. नील सिल्वरमैन मैसाचुसेट्स मेडिकल
स्कूल वॉर्सेस्टर एमएए संयुक्त राज्य अमेरिका इसके सह. लेखक हैं। शोध का वित्तीयन आईआईटी मंडी के साथ विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड भारत सरकार ने किया।

बता दें कि कोलोरेक्टल कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। जिसके चलते पूरी दुनिया में मृत्यु दर बढ़ी है और यह पूरी दुनिया की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर भारी आर्थिक बोझ है। यह पुरुषों में तीसरा सबसे आम कैंसर है और पूरी दुनिया में महिलाओं को होने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है। सभी कैंसरों से मृत्यु के मामलों में 8 प्रतिशत के लिए कोलोरेक्टल कैंसर जिम्मेदार है। इस तरह यह दुनिया में कैंसर से मृत्यु का चौथा सबसे आम कारण बन गया है।

डा. गरिमा अग्रवाल ने बताया कि मटीरियल साइंस और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़े विभिन्न विषयों के परस्पर संबंध पर
कार्यरत लोगों में अक्षय संसाधनों से बायोडिग्रेडेबल नैनोपार्टिकल्स के विकास को लेकर दिलचस्पी बहुत बढ़ गई है और ये नैनो पार्टिकल्स इस तरह डिजाइन किए गए हैं कि कैंसर ग्रस्त हिस्से में होने वाली उत्तेजनाओं के प्रतिकार में दवा रिलीज करें। डा. अग्रवाल ने बताया कि डिजाईन किया गया सिस्टम पानी में अलग अलग घुलनशील दवाओं का स्पोर्ट करने में सक्षम होना
चाहिए। इसके लिए हम ने बायोडिग्रेडेबल नैनोपार्टिकल विकसित करने का सबसे सरल दृष्टिकोण अपनाते हुए चिटोसन का उपयोग किया जो कि डाइसल्फाईड रसायन के कंबिनेशन में प्राकृतिक रूप से प्राप्त पॉलीमर है।

आईआईटी मंडी की शोध विद्वान आस्था गुप्ता ने इस शोध की विशिष्टता बताते हुए कहा कि हमने थायोलेटेड चिटोसन और थियोलेटेड स्टीयरिक एसिड के हवा में ऑक्सीकरण के माध्यम से डाइसल्फाईड एसएस कॉसलिंकिंग रसायन पर आधारित नैनो पार्टिकल्स का संश्लेषन किया है। इस तरह किसी बाहरी कॉसलिंकिंग एजेंट के उपयोग से बचा जा सकता है। हमने स्थिर और समान नैनोपार्टिकल प्राप्त करने के लक्ष्य से सबसे उपयुक्त कम्बिनेशन के चयन हेतु थिओलेटेड पॉलीमर के पांच
अलग-अलग कंबिनेशंस को प्रयोग कर देखा है। डाइसल्फाइड बांड मौजूद होने से इन स्मार्ट नैनो पार्टिकल्स का अपघटन ट्यूमर ग्रस्त हिस्से में होता है, क्योंकि वहां कैंसर कोशिकाओं में ग्लूटाथियोन की मात्रा अधिक होती है।

शोधकर्ताओं ने डिजाईन किए गए सिस्टम की कैंसर कोशिका मारक क्षमता का परीक्षण इन विट्रो शोध के माध्यम से किया और चूहों पर इन विवो बायोडिस्ट्रिब्यूशन के प्रयोगों से यह भी परीक्षण किया कि यह सिस्टम कोलोन को लक्ष्य बनाने में कितना सक्षम है। इसके बाद शोध टीम की योजना कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार के लिए विकसित सिस्टम की क्षमता की गहरी सूझबूझ प्राप्त करने के लिए उसके जैविक अध्ययन करने की है।