माता मनसा देवी मंदिर

हिमाचल प्रदेश में कई पुरातन ऐतिहासिक और चामत्कारिक धार्मिक मंदिर हैं। जिनका इतिहास असंख्य वर्ष पुरातन है। प्राचीन काल से ही हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यदि हम कहें कि हिमाचल देवी-देवताओं का निवास स्थान है, तो बिलकुल भी गलत नहीं होगा। जिला कांगड़ा के उपमंडल जवाली की ग्राम पंचायत लाहडू में माता मनसा देवी का प्राचीन मंदिर पहाडी के शीर्ष पर है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज है। पर्वत श्रृंखलाओं का नाजारा देखते ही बनता है। मंदिर की स्थापना को लेकर कई दंतकथाएं हैं। यह क्षेत्र घने जंगल से घिरा हुआ था और अधिकांश लोग पैदल ही जंगल से होकर कोटला, त्रिलोकपुर, शाहपुर जाने के लिए यहां से गुजरते थे। खासकर कोटला व त्रिलोकपुर जाने के लिए लोग इसी मार्ग का इस्तेमाल करते थे। हरिद्वार में स्थित मां मनसा देवी मंदिर हिंदू धर्म के 52 शक्तिपीठों में से एक है। यह हरिद्वार के प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो शिवालिक पहाडिय़ों के बिलवा नामक पर्वत पर स्थित है। माता मनसा देवी के आदेश अनुसार इसी मंदिर से त्रिलोकपुर गांव के लोग हरिद्वार से माता मनसा देवी की पिंडियां लेकर वापस आ रहे थे, तो वे इस स्थान पर विश्राम करने के लिए रुक गए और उन्होंने अपने कंधों पर उठाई हुई पिंडियों को एक जगह रख दिया। विश्राम करने के बाद जब उन्होंने पिंडियों को उठाना चाहा, तो वे पिंडियों को नहीं उठा पाए, माता मनसा देवी का आदेश था कि मुझे रास्ते में कहीं भी रखा न जाए। मैं वहीं पर स्थित हो जाऊंगी। इसी भूल के कारण माता ने वहीं पर अपना स्थान ले लिया। इतने में उनके साथ जा रहे एक व्यक्ति को माता की पौंण आ गई और उसने कहा कि माता का आदेश है कि अब वह इस स्थान पर ही रहेंगी। इस दौरान दूसरे साथी भक्त ने पूछा कि देवी मां हम तो आपको अपने गांव ले जाकर मंदिर में स्थापित करना चाहते हैं। इसके जवाब में देवी ने कहा कि अब मेरा यही ठिकाना होगा और जो भी भक्त यहां आकर पूजा-अर्चना करेगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।

माता ने यह भी कहा कि त्रिलोकपुर गांव से पिंडियां लाकर यहां स्पर्श करके ले जाना, मैं वहां पर भी विराजमान रहूंगी। कहा जाता है कि इसके बाद त्रिलोकपुर के श्रद्धालु ने माता के कहे अनुसार वहां से पिंडियां लाकर यहां स्पर्श करवाकर अपने गांव में मंदिर का निर्माण करवाया। मां मनसा देवी का यह स्थान हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर के तुल्य है। यहां स्वयं माता निवास करती है और पिंडी स्वरूप में विराजमान है। मां मनसा देवी भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री हैं। इनके पति महर्षि जरत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इनके भाई-बहन गणेश जी, कार्तिकेय जी, देवी अशोकसुंदरी, देवी ज्योति और भगवान अय्यपा हैं, इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार में स्थापित है, लेकिन एक मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा की तहसील जवाली में स्थित है। समय आने पर भगवान शिव ने अपनी पुत्री का विवाह जरत्कारू के साथ किया और इनके गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ, जिसका नाम आस्तिक रखा गया। आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया। राजा नहुष और नात्सय इनके बहनोई हैं। जगदगौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तीकमाता विषहरी, महाज्ञानयुता, शिवसुता, गौरीनंदिनी आदि नामों से भी सुशोभित है। मनसा देवी मुख्यत: नाग से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं। नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं। कई बार देवी के चित्रों तथा भित्ति चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया गया है, जिसे वे गोद में लिए हैं, वह बालक देवी का पुत्र आस्तिक है। पुराणों में बताया गया है कि इनका जन्म शिव के मस्तिष्क से हुआ तथा मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी इसलिए ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा। विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है, जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अंतर्गत एक नागकन्या थी, जो शिव तथा कृष्ण की भक्त थी।

उसने कई युगों तक तप किया तथा शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया, जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ। उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए तथा उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया। जब मनसा माता को अपनी शाक्तियों पर अभिमान हो गया, तो शिव भगवान ने अभिमान का अंत कर दिया फिर मनसा माता ने भगवान शिव से माफी मागी। तब भगवान शिव ने कहा कि तुम चंद्रदर के प्राण वापस लोटा दो। मगर मनसा यह करने में समर्थ नहीं थी। तो मनसा माता को अपनी गलती का आभास हुआ और उसने भोलेनाथ से माफी मागी। फिर भगवान शिव ने चंद्रदर को जीवनदान दिया और उसके सातों पुत्रो को भी जीवित कर दिया। भगवान शिव ने मनसा को यह वरदान दिया कि आज से दुनिया में लोग तुम्हें मां मनसा देवी के नाम से पूजेंगे, उनकी हर मनोकामना पूरी होगी। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पठानकोट से जवाली 50 किलोमीटर. पहुंच कर कैहरियां चौंक से मनसा देवी मंदिर 4 किलोमीटर. की दूरी तय करने पर जा सकते हैं। वहीं पठानकोट जोगिंदर नगर रेलवे लाइन से रेलवे स्टेशन जवाली से होकर भी आ सकते हैं।

– संजीव राणा, जवाली