4-7 फीसदी वोट करते हैं सत्ता का फैसला

वर्ष 2007 और 2012 में 4 फीसदी वोट का था अंतर, 2017 में भाजपा-कांग्रेस में 7 फीसदी का अंतर

राज्य ब्यूरो प्रमुख — शिमला

हिमाचल जैसे छोटे पहाड़ी राज्य में सत्ता का फैसला चार से सात फ़ीसदी वोट ही कर देते हैं। यहां चुनाव दो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में होता रहा है और पिछले तीन विधानसभा चुनावों में यह अंतर चार से सात फ़ीसदी तक ही रहा है। इस बार आम आदमी पार्टी के तीसरे विकल्प के कारण गणित कितना बदलता है, इस पर नजर रहेगी। हिमाचल विधानसभा की 68 सीटों के लिए चुनाव प्रचार तेज हो गया है, लेकिन सत्ता का फैसला कितना करीब होगा, इस पर लोगों की नजर होगी। पिछले तीन चुनावों की बात करें, तो वर्ष 2007 में भाजपा और कांग्रेस के बीच चार फ़ीसदी वोट का अंतर था और इसी चार फ़ीसदी वोट के कारण भाजपा ने 41 सीटें जीत ली थीं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 23 सीटें मिली थीं। यदि हम 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो तब भी अंतर करीब चार फ़ीसदी का ही था, लेकिन कांग्रेस को 36 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा ने 26 सीटें जीत ली थीं। विपक्ष के तौर पर भारतीय जनता पार्टी का यह सबसे अच्छा प्रदर्शन था।

अब यदि पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2017 के चुनाव की बात करें, तो इस चुनाव में दोनों दलों के बीच में सात फ़ीसदी का अंतर आ गया। इस अंतर की वजह से भाजपा को 44 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट गई थी, नई बात यह है कि 2017 के चुनाव में निर्दलीय विधायकों को करीब आठ फ़ीसदी वोट मिल गए थे। यह वोट शेयर सीपीआईएम के वोट से भी ज्यादा था। निर्दलीय विधायकों ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2012 में किया था। जब 16 फ़ीसदी वोट इंडिपेंडेंट को मिल गया था। उस दौरान पांच सीटें भी यह जीत गए थे। इसी चुनाव में सीपीआईएम को पांच फ़ीसदी वोट मिला था। इससे यह भी साबित होता है कि तीसरे विकल्प के प्रति हिमाचल के मतदाताओं का रुख किया रहता है। इस बार आम आदमी पार्टी के अलावा देवभूमि पार्टी भी अपना भाग्य आजमा रही है। इसलिए वोट शेयर पर भी नजर रखनी होगी।

वोट शेयर, जीती हुई सीटें

वर्ष         भाजपा           कांग्रेस
2007 43.78%/41 39.54%/23
2012 38.83%/26 43.21%/36
2017 49.53%/44 42.32%/21