HP Election 2022: बार-बार हार, नहीं छूटा राजनीति से प्यार

भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों संग कई नेता कई मर्तबा चुनाव हारने के बाद ठोंकते रहे हैं सियासी ताल

ठाकुर सिंह भरमौरी पांच, कुलदीप पठानिया को चार के अलावा जगत सिंह नेगी के हिस्से आईं तीन हार

राकेश शर्मा — शिमला

हिमाचल की राजनीति में बीते तीन दशक में कई रिकॉर्ड बने और ध्वस्त हुए हैं। विधानसभा में मतों का पहाड़ बनाने की जिद्द हो या लगातार चुनाव जीतकर लोकप्रियता साबित करने की, नेताओं के खाते में ये तमाम रिकॉर्ड कायम हैं। आज हम बात एक ऐसे रिकॉर्ड की करेंगे, जिसे दर्ज करवाने के लिए भले ही नेता तैयार न हों, लेकिन सियासत की लंबी पारी ने इसे कई बड़े चेहरों के साथ जोड़ दिया है। 1990 के बाद से अब तक हुए विधानसभा के आठ चुनाव अब तक हो चुके हैं। इनमें से इस बार के विधानसभा चुनाव का परिणाम अभी सामने आने को है, जबकि बीते सात चुनाव में जो आंकड़े सामने आए हैं, उनमें सबसे ज्यादा बार चुनाव हारने वालों की फेहरिस्त भी काफी लंबी है। इस कड़ी में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के दिग्गज चार से ज्यादा बार चुनाव हार चुके हैं। जनजातीय क्षेत्र भरमौर से ठाकुर सिंह भरमौरी इस बार सबसे ज्यादा चुनाव लडऩे वाले नेता के तौर पर दर्ज हो गए हैं। ठाकुर सिंह भरमौरी ने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1977 में की थी। पहले ही चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। अब तक ठाकुर सिंह भरमौरी कुल दस चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें से नौ का परिणाम सामने आ गया है। इनमें से पांच चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है, जबकि चार चुनावों में उन्होंने जीत दर्ज की है।

चंबा जिला के ही भटियात विधानसभा से कुलदीप सिंह पठानिया ने अपनी राजनीतिक पारी 1985 में शुरू की थी। पहले चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की। अब तक विधानसभा के आठ चुनाव लड़ चुके हैं और इनमें से चार में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। राजनीतिक सफर में उनका सफलता का स्कोर 50 फीसदी रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के गढ़ रोहड़ू से उन्हें टक्कर देने वाले भाजपा के खुशी राम बालनाहटा के नाम भी चार विधानसभा चुनाव हारने का रिकॉर्ड दर्ज है। वह वीरभद्र सिंह को लगातार चुनौती देते रहे और पूरी क्षमता के साथ भाजपा की टिकट पर रोहड़ू से चार बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उनके खाते में इस विधानसभा से एक भी जीत दर्ज नहीं हो पाई। 1990 के बाद बंजार विधानसभा क्षेत्र में सत्यप्रकाश ठाकुर कांग्रेस की टिकट पर लगातार चुनाव लड़ते रहे हैं। चुनाव आयोग में जमा उनके खाते में चार हार का रिकॉर्ड दर्ज है। जगत सिंह नेगी का राजनीतिक सफर भी काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। किन्नौर जिला से लगातार दमदार तरीके से चुनाव लड़ते आए नेगी के हिस्से में तीन हार दर्ज हैं। हालांकि लगातार चुनाव लड़ते रहने और सत्ता विरोधी लहर का असर उन्हें झेलना पड़ा है। घुमारवीं से कांग्रेस के वीरू राम किशोर को अपने राजनीतिक जीवन में तीन बार पराजय झेलनी पड़ी है। नगरोटा बगवां से भाजपा के रामचंद भटिया तीन बार चुनाव हारे हैं। रामपुर से भाजपा के निंजू राम भी तीन बार चुनाव हार चुके हैं।

सक्रिय राजनीति की पारी शुरू

हालांकि 1990 या इससे भी पहले राजनीतिक पारी शुरू करने वाले बहुत से नेता अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, लेकिन कुछ चेहरे ऐसे भी हैं, जो इन जीत या हार के बीच लगातार डटे हुए हैं। भले ही इनके हिस्से हार भी आती रही हो, लेकिन बीते तीन दशक से सक्रिय राजनीति से जुदा नहीं हुए हैं। बीते 32 सालों में 2017 तक सात चुनाव हुए हैं और इनमें से चार बड़े चेहरे राजनीति का हिस्सा बनकर उभरे।

हार के बाद भी लंबा सियासी सफर

हिमाचल में सरकार बदलने का इतिहास लंबा है और इसी क्रम में विधायकों को भी क्षेत्र के लोग बदलते रहे हैं। जिन नेताओं के हिस्से सबसे ज्यादा बार हार आई है, उनका राजनीतिक सफर भी काफी लंबा है और इस सफर में एक बार हार तो दूसरी बार जीत का स्वाद चखते हुए कई नेता 2022 तक आ गए हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव कई नेताओं के जीवन का आखिरी चुनाव हो सकता है।