सावधान! कड़े पहरे में है ईवीएम

हाजी क़ौल यह सोच कर कई दिनों से परेशान हैं कि प्रशासन बार-बार जनता को क्यों याद दिला रहा है कि ईवीएम कड़े पहरे में है। लगभग हर रोज़ जि़ला चुनाव अधिकारी के हवाले से ज़ारी सरकारी प्रेस नोट में कहा जाता है कि इन्तज़ाम कड़े हैं, पहरा सख़््त है, प्रशासन चाक-चौबन्द है और ईवीएम पर चौबीस घंटे कड़ी निगऱानी रखी जा रही है। उन्हें लगता कि क्या चौकीदारों की हर बदलने वाली शिफ्ट पर प्रेस नोट ज़ारी करना ज़रूरी है। सबको पता है कि जि़ला मुख्यालय में ईवीएम को पर्याप्त सुरक्षा के तहत एक दोहरे ताले वाली प्रणाली में रखा जाता है। समय-समय पर उनकी सुरक्षा जाँची जाती है। अधिकारी स्ट्रॉंग रूम नहीं खोलते, पर वे इसकी जांच करते रहते हैं कि ये पूरी तरह सुरक्षित रहें। लेकिन ऐसा क्या है कि उन्हें बार-बार लोगों को याद दिलाना पड़ रहा है कि पहरा सख्त है, जबकि देश का स्वघोषित सबसे बड़ा चौकीदार आए दिन लोगों की सुरक्षा और हितों की रखवाली का वायदा करता रहता है।

उन्हें लगता है कि हो सकता है कि कहीं सरकार ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में माहौल खऱाब होने की वजह से प्रशासन को अलीगढ़ के मशहूर तालों को खऱीदने की अनुमति न दी हो या फिर ताला बनाने वाले विधर्मी हों और उनकी देशभक्ति पर प्रश्नचिन्ह होने की वजह से उस सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) में किसी भी सरकारी विभाग को उनके तालों की खऱीद का ऑर्डर देने पर सैद्धान्तिक मनाही हो, जिसमें सरकारी विभाग सभी वस्तुओं को प्रसन्नापूर्वक बाज़ार भाव से ड्योढ़े दामों पर खऱीदती है। पाँच महीनों के रिकॉर्ड समय में बनाई गई सरकारी ई-मार्केटप्लेस का लक्ष्य सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता, दक्षता और गति को बढ़ाना है। शायद ऐसी ही पारदर्शिता भारत ने फ्रांस से राफेल की खऱीद में भी बरती थी, तभी इन जहाज़ों की क़ीमत तीन गुणा से भी ज़्यादा बढ़ गई थी। लेकिन प्रशासन हर रोज़ लोगों को याद दिलाता रहता है कि ईवीएम उसी तरह कड़ी सुरक्षा में है जो भारत की लौह महिला कहे जाने वाली प्रधानमंत्री को दी गई थी। चौकसी तो सीमाओं पर भी है। पर अब तो वह राफेल भी काम नहीं आ रहा, जिस पर कहा जा रहा था कि राफेल से पाकिस्तान डरेगा और चीन पानी भरेगा। पाकिस्तान के दहशतग़र्द कश्मीर में धमाल मचा रहे हैं और चीन ने सीमा के अन्दर घुस कर गाँव बसा लिए हैं। लेकिन जब चौकीदार सो रहा हो तो क्या ईवीएम के अन्दर नहीं घुसा जा सकता?

परेशान होकर अपना सिर झटकने के बाद वह फिर सोचने लगते कि पहले ऐसा क्या था कि चुनावों में अक्सर हिंसा के समाचार मिलते थे या धाँधली के आरोप लगते थे। कई स्थानों पर बाहुबलियों के गुर्गे मतदान केन्द्रों को कब्ज़ाने के बाद मतपत्रों पर मोहर के गुलमोहर खिला देते थे। मतगणना में अक्सर हेराफेरी होती थी या डाक मतपत्रों पर डाका डल जाता था। क्या चुनावों में आज़ादी के बाद से होने वाली धाँधली हाल-फि़लहाल में देश के सबसे बड़े चौकीदार के आने के बाद रुक गई है। लेकिन उन्हें लाख कोशिश करने के बाद भी विगत की ऐसी कोई घटना याद नहीं आ रही थी, जिसमें मतपेटियों के कूड़े के ढेर में मिलने का जिक़़्र हो। लेकिन ईवीएम? हो सकता है कि ईवीएम में हेर-फेर संभव न हो लेकिन मशीनों के बाहर मिलने से इतना अन्दाज़ा तो लगाया ही जा सकता है कि मशीनें बदली तो जा ही सकती हैं। जब जि़न्दा आदमी कागज़़ों में मर सकता है और मरा जि़न्दा हो सकता है तो क्या मशीनें ऐसे मर या जी नहीं सकती? हाजी अपने माथे के पसीने को पौंछते हुए सोचने लगे कि क्या कोई भारतीय वैज्ञानिक ऐसी ईवीएम नहीं बना सकता जो केवल उन्हीं उम्मीदवारों के पक्ष में डाले गए वोटों को स्वीकार करे जो वास्तव में ईमानदार और कर्मठ हों। लेकिन कोई राजनीतिक दल ऐसे उम्मीदवारों को तो टिकट देगा नहीं। फिर तो सारी ईवीएम बिना पीं बोले ही पों बोल जाएंगी। यह सोचते ही उनके दबे होठों पर मुस्कान की वक्र रेखाएं खिंच आईं।

पी. ए. सिद्धार्थ

लेखक ऋषिकेश से हैं