वेलनेस डेस्टिनेशन की ओर

पुन: हिमाचल के सरकारी होटलों में पंचकर्म उपचार की परिपाटी जोड़ी जा रही है और इस तरह मेडिकल टूरिज्म के खाके में आशाजनक हलचल महसूस की जा सकती है। आयुष मंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान ने इस दिशा में प्रारंभिक कदम उठाते हुए हिमाचल को पंचकर्म उपचार का डेस्टिनेशन बनाने की हर संभावना को संबोधित किया है। जाहिर है पर्यटन विकास निगम की कुछ इकाइयां अपनी मेहमान नवाजी के साथ पंचकर्म उपचार पद्धति जोडक़र ऐसा आकर्षण पैदा कर सकती हैं और इस तरह साल भर एक अलग तरह का पर्यटन हिमाचल की खासियत का परिचायक बन सकता है। निजी क्षेत्र में ऐसे प्रयोग हो रहे हैं और हर साल प्रमुख पर्यटन केंद्रों में भारी तादाद में ऐसी पद्धतियों के चलते कई बाहरी एक्सपर्ट धंधा चमकाने आने लगे हैं। पालमुपर में ‘कायाकल्प संस्थान’ के जरिए ऐसी पद्धतियों के माध्यम से जिस चिकित्सा पर्यटन की शुरुआत हुई थी, उसका व्यापक आधार हिमाचल के आयुष विभाग के पास भी है। विडंबना यह है कि ऐसी किसी पहल को भी सियासी कारणों से बेदखल होना पड़ता है। धूमल सरकार के दौर में तत्कालीन मंत्री डा.राजीव बिंदल ने जो प्रयास किए वे न केवल वीरभद्र सरकार, बल्कि जयराम सरकार में भी कहीं विलुप्त हो गए, वरना अब तक हम केरल की तर्ज पर पर्यटन के मार्फत आयुर्वेद की संभावनाओं को शक्तिशाली बना चुके होते। बहरहाल आयुष मंत्री हर्ष वर्धन इस दिशा में गंभीर दिखाई देते हैं, लेकिन उन्हें प्रदेश के एकमात्र आयुर्वेदिक कालेज पपरोला की भी सुध लेनी होगी।

देश के एक दर्जन प्रमुख आयुर्वेदिक संस्थानों में शुमार पपरोला कालेज की अधोसंरचना तथा शैक्षणिक उत्कृष्टता को सशक्त करने की जरूरत काफी अरसे से महसूस की जा रही है। इसी तरह जिन आयुर्वेदिक अस्पतालों में पहले से पंचकर्म जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं, वहां कार्य संस्कृति व प्रबंधन की दृष्टि से परिवर्तन की आवश्यकता है। ये तमाम विषय हैल्थ टूरिज्म की निगाह से देखे जाएं, तो हिमाचल की पैरवी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की जा सकती है। हिमाचल के तमाम मेडिकल कालेजों, एम्स बिलासपुर और पीजीआई सेंटर ऊना के साथ-साथ आयुर्वेदिक व चिकित्सा संस्थानों के माध्यम से हम हैल्थ टूरिज्म के डेस्टिनेशन केंद्र विकसित कर सकते हैं। यह कार्य पर्यटन विकास बोर्ड के माध्यम से एक विस्तृत खाका बना सकता है। इसी के साथ मेडिकल कालेज परिसरों में हेलिपैड स्थापित करके चिकित्सा एयर टैक्सी सर्विस जोड़ी जा सकती है। सोचना यह होगा कि क्या वर्तमान में चिकित्सा संस्थान अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। आश्चर्य तो यह कि सुपर स्पेशियलिटी के नाम पर इमारतें तो खड़ी हो गईं, लेकिन उनके भीतर चिकित्सा की गुणवत्ता सामने नहीं आई। आज भी प्रमुख मेडिकल कालेजों की क्षमता में यह विश्वसनीयता दर्ज नहीं कि भरोसे से जिंदगी बचाई जा सके।

इतनी तादाद में मेडिकल इंस्टीच्यूट होते हुए भी पीजीआई व कई बाहरी राज्यों के अस्पतालों में धक्के खाने पड़ रहे हैं। हमें केरल से सीखते हुए यह तय करना है कि चिकित्सा के ढांचे से जीवन की गुणवत्ता में कैसे सुधार लाया जाए। विश्व में स्वास्थ्य सेवाओं की तलाश में भारत प्रथम छह देशों में आ गया है। निश्चित तौर पर हिमाचल ने भी अपने प्रयासों से बड़े संस्थान तो खड़े कर लिए, लेकिन चिकित्सा पेशेवर, जवाबदेह व संवेदनशील बनाने के लिए काफी कुछ करना बाकी है। दुर्भाग्यवश जिस गति से मेडिकल कालेज खड़े हुए, उस हिसाब से चिकित्सा योग्यता आगे नहीं बढ़ी। पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्तियां स्थायी न होकर केवल मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के सामने परेड बना दी गईं। वही डाक्टर जो कभी आईजीएमसी को गौरवान्वित करते थे, टीएमसी की धमनियों में अपने पदों का उपचार करते रहे और जब थोड़ी सी जवानी टांडा मेडिकल कालेज को आई तो पुन: डाक्टर विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में विभक्त हो गए। अत: मेडिकल टूरिज्म को प्रोमोट करने से पहले डाक्टरों में स्थायित्व का भाव जगाने के लिए नियम व मानिटरिंग सामने आनी चाहिए, जबकि उपकरणों की आपूर्ति भी त्वरित ढंग से होनी चाहिए। हिमाचल कम खर्चीला उपचार विकल्प तथा आयुर्वेद के जरिए स्वास्थ्य लाभ के अंतरराष्ट्रीय पैमाने तय करता है, तो यह क्षेत्र राजस्व वृद्धि की सार्थक भूमिका अदा कर सकता है। मेडिकल टूरिज्म पर आयुष, स्वास्थ्य व पर्यटन मंत्रियों का ग्रुप एक साथ प्रयास करे, तो वेलनेस डेस्टिनेशन के रूप में हिमाचल प्रमुखता दर्ज कर सकता है।