सियासी प्रयोगों ने बिगाड़ दी हमीरपुर बीजेपी की सेहत

प्रदेश की राजनीति में जिला की कम हुई पूछ, विधानसभा चुनावों के दौरान नहीं मिली बड़ी जिम्मेदारी

नीलकांत भारद्वाज — हमीरपुर

कभी सत्ता का केंद्र और बीजेपी का गढ़ रहे जिस हमीरपुर जिला की संगठनात्मक शैली का उदाहरण पूरे प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा दिया जाता था, वहां दस साल से किए जा रहे पोलिटिकल एक्सपेरिमेंट्स ने पार्टी की सेहत को बिगाड़ कर रख दिया है। जो रही सही कसर थी, उसे इस बार हुए विधानसभा चुनाव के टिकट आबंटन से लेकर चुनाव परिणामों ने पूरा कर दिया। लगभग दस साल से बीजेपी को माइनस हमीरपुर चलाने का जो प्रयास टॉप से बॉटम तक किया जाता रहा, उससे प्रदेश में पार्टी ने पाया कम और खोया ज्यादा है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह के बाद पहाड़ की राजनीति में प्रेम कुमार धूमल ही ऐसा नाम रहा, जिन्होंने न केवल जनता के दिल और दिमाग तक खुद को रचाने-बसाने का प्रयास किया, बल्कि पूरे प्रदेश के कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में बांधकर एक दिशा में चलाने का भी काम किया।

वह दो बार मुख्यमंत्री रहे और प्रदेश के हर कोने में अपने लोग तैयार किए, लेकिन वर्ष 2013 में जैसे ही भाजपा के शीर्ष संगठन में परिवर्तन हुआ धीरे-धीरे धूमल फैक्टर कमजोर होता नजर आया। उस वक्त जनता यहां तक की आम कार्यकर्ता भी इस बात को शायद समझ नहीं पाया, लेकिन जब वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव होने थे तो इलेक्शन अनाउंस होने के बाद प्रो. धूमल का चुनाव क्षेत्र एकाएक हमीरपुर से सुजानपुर करना और वोटिंग से मात्र कुछ दिन पहले उन्हें मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने से कार्यकर्ताओं को समझ आना शुरू हो गया था कि हमीरपुर को शायद कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। चुनावी नतीजे आए प्रो. धूमल चुनाव हारे, लेकिन उन्होंने खुद में नई ऊर्जा का संचार करते हुए फिर कदम आगे बढ़ाए और कार्यकर्ताओं को दोबारा आशा की किरण दिखाई। वहीं, इस बार विधानसभा चुनावों के ठीक पहले फिर वहीं हुआ। केंद्र से खबर आई कि प्रो. धूमल चुनाव नहीं लड़ेंगे। फिर हमीरपुर ही नहीं, प्रदेश में जो हुआ वो सबने देखा। बता दें कि वर्ष 1998 के बाद हमीरपुर में प्रो. धूमल भारतीय जनता पार्टी के पर्याय बन गए थे। (एचडीएम)

फिर से जोश भरने का हो रहा प्रयास

विधानसभा चुनावों के बाद हमीरपुर में बीजेपी ‘कोमा’ में चली गई है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के लगभग 60 दिन तक एहसास ही नहीं हुआ कि यहां बीजेपी है भी, लेकिन पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री ने एक बार फिर से कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा, नया जोश भरने का प्रयास किया। साथ ही नसीहत भी दी कि एक बार मंथन भी जरूर करें कि आखिर बीजेपी यहां पांच की पांच सीटें कैसे हार गई। अब उनकी यह बूस्टर डोज भाजपा कार्यकर्ताओं के सियासी इम्यून सिस्टम को कितना स्ट्रांग कर पाती है, यह तो अभी नहीं कह सकते, लेकिन बीजेपी हमीरपुर में टूट चुकी है इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।