भगवान झूलेलाल जयंती

झूलेलाल जयंती एक हिंदू त्योहार है, जो सिंधी समुदाय के संरक्षक संत झूलेलाल के सम्मान में मनाया जाता है। झूलेलाल को सिंधी लोगों के बीच एकता और शक्ति के प्रतीक के रूप में माना जाता है और यह त्योहार सिंधी मूल के लोगों के लिए एक साथ आने और अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को श्रद्धांजलि देने का एक अवसर है। झूलेलाल सिंधी समाज के इष्टदेव हैं। झूलेलाल जयंती सिंधी समाज के लोग बहुत ही उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार झूलेलाल जयंती चैत्र मास की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। झूलेलाल भगवान वरुणदेव के अवतार है। भगवान झूलेलाल की जयंती को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाता है। जिसे सिंधी नववर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। चेटीचंड हिंदू कैलेंडर के अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन अर्थात चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है। सिंधी समाज में मान्यता है कि जल से ही सभी सुखों और मंगलकामना की प्राप्ति होती है इसलिए इसका विशेष महत्त्व है। सिंधी समाज के अनुसार सिंध प्रांत में मिरखशाह नामक शासक राज करता था। उसके राज्य में प्रजा पर उसके द्वारा बहुत अत्याचार होने लगा।

जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाऊंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया, जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। उस बालक ने मिरखशाह के अत्याचार से सभी की रक्षा की। चेटीचंड के दिन सिंधी समाज के लोग झूलेलाल का उत्सव मनाते हैं और मीठे चावल, उबले नमकीन चने और शरबत का प्रसाद बांटते हैं। इस बार झूलेलाल जयंती 22 मार्च को मनाई जाएगी। एक अन्य मान्यता के अनुसार जब सिंधी समाज के व्यापारी जलमार्ग से गुजरते थे, तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था। ऐसे में इस समाज की महिलाएं अपने पति की सकुशलता की कामना के लिए जल के देवता भगवान झूलेलाल से मन्नतें मांगती थी। जब पुरुष वर्ग सकुशल लौट आता था, तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था।